भला-बुरा तै सोच के, करले अपने काम । बिगड़य झन कुछु कोखरो, कुछ मत मिले हराम ।। कुछ मत मिले हराम, कमा ले जांगर टोरे । दूसर के कुछु दोस, ताक मत आंखी बोरे ।। अपने अंदर झांक, नेकि के हवस खुरा तै । करले सुघ्घर काम, सोच के भला-बुरा तै ।।
दत्त, दयाध्वं और दम्यत ही क्यों?-डॉ. अर्जुन दुबे
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-डॉ. अर्जुन दुबेअंग्रेजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर,मदन मोहन मालवीय
प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,गोरखपुर (यू.पी.) 273010भारतफोन. 9450886113
बीसवीं शताब्दी के मह...
21 घंटे पहले