सिंहिका छंद ये बैरी अपने घर मा. आगी तो लगाय । मनखे होके मनखे ला. अब्बड़ के सताय ।। अपने ला धरमी कहिथे. दूसर ला न भाय ।। जन्नत के ओ फेर परे, जन्नत ला डहाय ।।
पुस्तक:छत्तीसगढ़ी काव्यकाव्य एक वृहंगम दृष्टि- रामेश्वर शर्मा
-
क्यों पढ़ें यह पुस्तक छत्तीसगढ़ी काव्य: एक विहंगम दृष्टि छत्तीसगढ़ की
साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल संग्रह है, जो पाठकों को इस
क्षेत्र की समृद्...
1 दिन पहले