बसदेवा गीत-देखव कतका जनता रोठ
(चौपई छंद)
सुनव सुनव गा संगी मोर । जेला देखव तेने चोर
नेता अउ जनता के गोठ । काला कहि हे दूनों पोठ
नेता रहिथे केवल चार । जनता होथे लाख हजार
खेत बेच के लड़े चुनाव । पइसा बांटे गॉंवों गॉंव
ओखर पइसा झोकय कोन । जनता बइठे काबर मोन
दारू बोकरा कोने खाय । काला फोकेट ह बड़ भाय
देवइया भर कइसे चोर । झोकइया के मंसा टोर
देही तेन ह लेही काल । झोकइया के जीजंजाल
नेता जनता के हे जाय । ओखर गोठ कोन सिरजाय
जब जनता म आही सुधार । मिटजाही सब भ्रष्टाचार
नेता के छोड़व अब गोठ । देखव कतका जनता रोठ
जनतामन के करथन बात । ऊँखर मन मा का जज्बात
बीता-बीता ठउर सकेल । गली-खोर मा घर ला मेल
खेत तीर के परिया जोत । नदिया-नरवा सब ल रपोट
फोकट के पाये बर जेन । झूठ लबारी मारय तेन
सरकारी चाउर झोकाय । दू के सोलह ओ ह बनाय
नाम गरीबी रेखा देख । बड़हर मन के नाम सरेख
सबले ऊँपर ओखर नाम । होथे पहिली ऊँखर काम
आघू रहिथे बड़हर चार । पाछू बइठे हे हकदार
मरगे नैतिकता के बात । जइसे होगे दिन मा रात
काखर-काखर गोठ बतॉंव । काखर-काखर गारी खॉव
दिखय न ओला अपने काम । लेथे ओ हर दूसर के नाम
केवल कागज के दरकार । बने आदमी हे झकमार
अपने साबुत ऑंखी फोर । करय नौकरी कतको चोर
जेखर लइका हावय चार । दू लइका ला जिंदा मार
करय नौकरी बेच इमान । पइसा होगे अब भगवान
सबझन अइसन नइ हे यार । फेर हवय इंखर भरमार
लोभ मोह अउ लालच छोड़ । दइइमान ले नाता जोड़
जनता मा जब होही सुधार । नेता खुदे सुधर जाही यार
जनता ले नेता के टेस । जनता सुधरय, सुधरय देश
-रमेश चौहान
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