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संदेश

कतका झन देखे हें-

खुशी मनाओ भई आज खुशी मनाओं

भादो के महीना घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे रात कारी कारी । कंस के कारागार बड़ रहिन पहेरेदार, चारो कोती चमुन्दा हे खुल्ला नईये एकोद्वार । देवकी वासुदेव पुकारे हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये करलव सनाथ । एक एक करके छैय लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे कइसे अपभ्रंस । आठवईंया के हे बारी कइसे करव तइयारी, ऐखरे बर होय हे आकाशवाणी हे खरारी । मन खिलखिवत हे फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल बड़ जोर के निदं आगे । देखत हे देवकी वासुदेव त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटक भर म होइस परमपिता के ऊंहला भान, नाना भांति ले करे लगिन ऊंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइवा अव जम्मो जीव के देखइया अव, धरती के भार हरइया अऊ जीवन नइया के खेवइया अव । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान, बालक रूप म प्रगटे आज तो भगवान । प्रगटे आज

धरे कलम गुनत हंव का लिखंव

धरे कलम गुनत हंव का लिखंव लइकामन बर संस्कार के गीत लिखंव, कचरा बिनईया लइकामन के चित्र खिचंव । कोनो कोनो लइका विडि़यो गेम खेलय, कोनो कोनो लइका ठेला पेलय । कोनो कोनो कतका महंगा स्कूल म पढ़य, कोनो कोनो बचपन म जवानी ल गढ़य । कोखरो कोखरो के संस्कार ल, ददा दाई मन दे हे बिगाड़। कोखरो कोखरो ददा दाई मन, भीड़ा दे हे जिये के जुगाड़ । बड़ आंगाभारू लइकामन के संसार ऐमा मै नई सकंव, धरे कलम गुनत हंव अब का लिखंव । धरे कलम गुनत हंव का लिखंव लिखथे सब मया मिरीत के बोल, रखदंव महू अपन हिरदय ल खोल । करेन बिहाव तब ले मया करे ल जानेन, ददा दाई कहिदेइस तेने ल अपन मानेन । अब तो बर न बिहाव देखावत हे दिल के ताव, बाबू मन रंग रूप ल त नोनी मन धन दोगानी ल देवत हे कइसन के भाव । जेन भाग के करे बिवाह तेखर मन के दशा ल विचार, न ददा के न दाई के घिरर घिरर के जिये बर लाचार । बड़ आंगाभारू हे मया पिरित के संसार ऐमा मै नई सकंव, धरे कलम गुनत हंव अब का लिखंव । धरे कलम गुनत हंव का लिखंव कतको झन लिखत हे नेतागिरी म व्यंग, महू लिखतेव सोच के रहिगेव दंग । ऐ नेतामन कोन ऐ करिया अक्षर भईंस बरोबर, जम्मो झन

हरेली हे आज

हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई - लइका सियान जुरमिल के खुशी मनाव हरेली हे आज । अब आही राखी तिजा पोरा अऊ जम्मो तिहार हो गे अगाज । चलव संगी धो आईय नागर कुदरा अऊ जम्मो औजार । बोवईय झर गे निदईय झर गे झर गे बिआसी के काज । हमर खेती बर देवता सरीखे नागर गैती हसिया, इखर पूजा पाठ करके चढ़ाबो चिला रोटी के ताज । लिम के डारा ले पहटिया करत हे घर के सिंगार । लोहार बाबू खिला ले बनावत हे मुहाटी के साज ।। ढाकत हे मुड़ी ल मछरी जाली ले गांव के मल्लार । ये छत्तीसगढ़ म हर तिहार के हे छत्तीस अंदाज ।। बारी बखरी दिखय हरियर, हरियर दिखय खेत खार । चारो कोती हरियर देख के हमरो मन हरियर हे आज ।। तरूवा के पानी गोड़इचा म आगे आज । माटी के सोंधी सोंधी महक के इही हे राज । गांव के अली गली म ईखला चिखला । चलव सजाबो गेडी के सुघ्घर साज ।। जम्मो लइका जवान मचलहीं अब तो , बजा बजा के गेड़ी के चर चर आवाज ।। चलो संगी खेली गेड़ी दउड अऊ खेली नरियर फेक, जुर मिल के खेली मन रख के हरियर हरियर आज । ................‘‘रमेश‘‘...........

गुड़ म माछी कस

दूध बेचईया गली गली रेंगय मदिरा बेचईया बइठे सजाये साज रे । बहुत झन ल ऐखर ले कोई मतलब नइये कोनो कोनो पूछय राज रे ।। मोर गांव के मरार बारी के भाटा धरे बइठे रहिगे हाट म । परदेशिया कोचिया के कड़हा कोचरा भाटा बेचागे आज रे ।। गाया गरूवा बर ठऊर नइये कहां बनाई गऊठान । गांव के जम्मो सरकारी परीया घेरे हे गिद्ध अऊ बाज रे । नेता  मन नेतेच ऐ फेर चमचा मन बन गेहे बाप रे । गांव के कोनो मनखे ल चिंता नइये कइसे होही काज रे । कोनो कोनो भ्रष्टाचारी होतीन त कोई  बात नही । गुड़ म माछी कस झुम गे हे जम्मो झन आज रे ।। ...........‘‘रमेश‘‘................

मोरो मन हरियर

तोर मया के छांवे म, गोरी मोरो मन हे हरियर । चंदा कस तोर बरन, देख मोरो मन हे हरियर ।। करिया हिरा कस चुन्दी, पाटी पारे लगाये फुन्दी, तोर खोपा के बगिया म, भवरा कस मन हे हरियर । तरिया म फूले कमल, ओइसने हे तोर नयन, देख कमल सरोवर ल, गावय मोर मन ये हरियर । ओट तोर गुलाब के पंखुडी, करत हे महक झड़ी, ये गुलागी महक म, झुमय मोरो मन हरियर । माथे के टिकली, टिमटिमात हे मोर अंतस भितरी, ऐखर ऐ अंजोर म, दमकत हे मोर मन हरियर । कभू कान म झुमका, कभू येमा डोलय बाली, विश्मामित्र के मेनका कस, डोलावय मोरो मन हरियर । कनिहा के करधनिया, अऊ गोडे के पैयजनिया, बोलय छुम छुम छनानना, नाचय गावय मोर मन हरियर । कोयल कस गुतुर बोली, अऊ गुतुर गुतुर तोर ठिठोली, बोली अऊ ठिठोली के, समुदर म गोता खावय मोर मन हरियर । तै कही सकथस मोला कुछु कुछु, तै तो मोरे सबे कुछु, तोर बिना नई जानव काहीं कुछु मोर मन हरियर । ..........‘‘रमेश‘‘.........................

सपना म तैं

देखत हव, कब ले गोरी तोला, आंखी पिरागे । काबर कहे, आवत हव मै ह, ले मुरझागे । हाथ के फूल, संजोय रहेव मै, बिहनीया के । होगे रे सांझ, मन मीत आबे रे, सपना म तैं । ..‘‘रमेश‘‘....

अब का देखव

मोर मन ल इही ह भाये हे कोनो परी ल अब का देखव । ओखर सिरत ले मन गदगदाये हे सुरत ल अब का देखव ।। जब ले जाने हव ओला अपन सुरता कहां हे मोला .. मोर अंतस म होही समाय हे मुहाटी ल अब का देखव ।। जइसे मोर छांव मोर संग रेंगथे सुटुर सुटुर......... मोर मन करथे धुकुर धुकुर ओखर मन ल अब का देखव ।। चंदा के संगे संग चांदनी चंदा ल देखे चकोर.... पतंगा के दिया संग जरई अपन जरई ल अब का देखव ।। मोर मया ओखर बर ओखर मया मोर बर. मया घुर गे जस शक्कर म पानी अपन पानी ल अब का देखव ।। ............‘‘रमेश‘‘.......................

मीठ -मीठ सुरता

ये मीठ -मीठ सुरता, नई बनतये कुछु कहासी रे । कभू कभू आथे मोला हासी, कभू आथे रोवासी रे ।। दाई के कोरा, गोरस पियेव अचरा के ओरा । कइसन  अब मोला आवत हे खिलखिलासी रे ।। दाई  के मया, पाये पाये खेलाय खवाय । अपन हाथ ले बोरे अऊ बासी रे ।। दाई ल छोड़के, नई भाइस मोला कहूं जवासी रे । लगत रहिस येही मथुरा अऊ येही काषी रे ।। ददा के अंगरी, धर के रेंगेंव जस ठेंगड़ी । गिरत अपटत देख ददा के छुटे हासी रे ।। ददा कभू बनय घोड़ा-घोड़ी , कभू करय हसी ठिठोली । कभू कभू संग म खेलय भौरा बाटी रे ।। कभू कभू ददा खिसयावय कभू दाई देवय गारी रे । करेव गलती अब सुरता म आथे रोवासी रे ।। निगोटिया संगी, संग चलय जस पवन सतरंगी । पानी संग पानी बन खेलेन माटी संग माटी रे ।। आनी बानी के खेल खेलेन कभू बने बने त कभू कभू झगरेन । कभू बोलन कभू कभू अनबोलना रह करेन ठिठोली रे ।। ओ लइकापन के सुरता अब तो मोला आथे मिठ मिठ हासी रे । गय जमाना लउटय नही सोच के आवत हे रोवासी रे ।। .-रमेशकुमार सिंह चैहान

छत्तीसगढ़ी हाइकु

अरे पगली, मै होगेव पगला, तोर मया म । तोर सुरता, निंद भूख हरागे, मया म तोर । रात के चंदा, चांदनी ल देखव, एकटक रे । कब होही रे, मया संग मिलाप , गुनत हव । मया नई हे, गोरी के अंतस म, सुर्रत हव । एक नजर, देख तो मोरो कोती, मया के संगी । ....‘रमेश‘...

मिलईया हे मोला पगार

गुतुर गुतुर भाखा बोलय, अंतस म मधुरस घोलय, मोर सुवारी करे सिंगार, मिलईया हे मोला पगार । कईसे लगहूं जी कहू होही, कान म खिनवा, कनिहा म करधनिया, अऊ गर म होही सोनहा हार, मिलईया हे मोला पगार । फलनिया ह बनवाय हे, मोरो मन ललचाय हे, पूरा कर दौ ना जी मोरो साध, होही तुहार बड़ उपकार, मिलईया हे मोला पगार । ददा गो कापी पेन सिरागे हे, स्कूल के फिस ह आगे हे, लइकामन करत हे पुकार, मिलईया हे मोला पगार । मोर स्कूल बस्ता ह चिरागे हे, पेंट कुरता ह जुन्नागे हे, लइकामन करत हे मनुहार, मिलईया हे मोला पगार । रंधनही कुरीया ह चिल्लावत हे, घेरी घेरी चेतावत हे, सिरागे हे चाऊर दार, मिलईया हे मोला पगार । पाछू महिना बड़ सधायेंव, अपन बर मोटर साइकिल ले आयेंव, दुवारी म खड़े हे लगवार, मिलईया हे मोला पगार । का करव कइसे करव कहिके गुनत हव, अपने माथा ल अपने हाथ म धुनत हव, काबर एतके तनखा देते सरकार, मिलईया हे मोला पगार । .......‘‘रमेश‘‘...........

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