काला कहि अब संत रे, आसा गे सब टूट । ढोंगी ढ़ोंगी साधु हे, धरम करम के लूट ।। धरम करम के लूट, लूट गे राम कबीरा । ढ़ोंगी मन के खेल, देख होवत हे पीरा ।। जानी कइसे संत, लगे अक्कल मा ताला । चाल ढाल हे एक, संत कहि अब हम काला ।। होथे कइसे संत हा, हमला कोन बताय । रूखवा डारा नाच के, संत ला जिबराय ।। संत ला जिबराय, फूल फर डारा लहसे । दीया के अंजोर, भेद खोलय गा बिहसे ।। कह ‘रमेष‘ समझाय, जेन सुख शांति ल बोथे । पर बर जिथे ग जेन, संत ओही हा होथे । -रमेश चौहान 099770695454
“छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के उपरांत प्रकाशित पद्य साहित्य: एक शोधपरक अध्ययन”
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-रमेश चौहान छत्तीसगढ़ राज्य का गठन: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य 1 नवंबर 2000 को
छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित
किया गया...
15 घंटे पहले