नवगीत मैं माटी के दीया वाह रे देवारी तिहार मनखे कस दगा देवत हस जीयत भर संग देहूँ कहिके सात वचन खाये रहेय । जब-जब आहूँ, तोर संग आहूँ कहिके मोला रद्दा देखाय रहेय कइसे कहँव तही सोच मोर अवरदा तेही लेवत हस मैं माटी के दीया अबला प्राणी का तोर बिगाड़ लेहूँ सउत दोखही रिगबिग लाइट ओखरो संताप अंतस गाड़ लेहूँ मजा करत तैं दुनिया मा अपने ढोंगा खेवत हस
मदिरालय (काव्य संग्रह)-डॉ. अशोक आकाश
-
Madiralaya-Book-Set-15.11.2024
[image: ylliX - Online Advertising Network]
[image: Loading]
3 घंटे पहले