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संदेश

कतका झन देखे हें-

सावन

सावन तैं करिया बिलवा हस, तैं छलिया जस कृष्ण मुरारी । जोहत-जोहत रोवत हावँव, आत नई हस  मोर दुवारी ।। बूँद कहां तरिया नरवा कुछु बोर कुवाँ नल हे दुखियारी । बावत धान जरे धनहा अब रो...

चलना खेले ला जाबो रे

चल ना रे खेले ला जाबो  । अबे मजा अब्बड़ के पाबो ।। का राखे ये मोबाइल मा । बइठे-बइठे  ये स्टाइल मा ।। नदिया जाबो तरिया जाबो । कूद-कूद के खूब नहाबो ।। रेसटीप हम डूबे-डूबे । बने खेलबो हमन ह खूबे ।। ढेस पोखरा खोज-खोज के । खाबो अब्बड़ रोज-रोज के ।। का राखे ये मोबाइल मा । बइठे-बइठे  ये स्टाइल मा ।। गिल्ली-डंडा चल धर ना बे । टोड़ी मारत पादी पाबे ।। खट-उल मा कोनो हा चलही । खेले बर जब मन ह मचलही ।। खोर-गली दइहान चली हम । लइकापन के डार चढ़ी हम ।। का राखे ये मोबाइल मा । बइठे-बइठे  ये स्टाइल मा ।।

गणित बनाये के नियम

गणित बनाये के नियम, धर लौ थोकिन ध्यान । जोड़ घटाना सीख के, गुणा भाग ला जान ।। गुणा भाग ला जान, गणित के प्राण बरोबर । एक संग जब देख, चिन्ह ला सबो सरोबर ।। कोष्टक पहिली खोल, फेर "का" जे...

सास बहू के झगरा

आँखी तोरे फूट गे, दिखत नई हे काम । गोबर-कचरा छोड़ के, करत हवस आराम ।। करत हवस आ-राम दोखई, बइठे-बइठे । सुनत सास के, गारी-गल्ला, बहू ह अइठे ।। नई करँव जा, का करबे कर, मरजी मोरे । बइठे रहिहँव, चाहे फूटय, आँखी तोरे ।।

छोड़ दारु के फेशन

छोड़ दारु के फेशन, हे बड़ नुकसान । फेशन के चक्कर मा, हस तैं अनजान ।। नशा नाश के जड़ हे, तन मन ला खाय । कोन नई जानय ये, हे सब भरमाय ।। दारु नशा ले जादा, फेशन हे आज । पढ़े-लिखे अनपढ़ बन, करथे ये काज।। कोन धनी अउ निर्धन, सब एके हाल । मनखे-मनखे चलथे, दरुहा के चाल ।। नीत-रीत देखे मा, दोषी सरकार । चाल-चलन मनखे के, रखय न दरकार ।। -रमेश चौहान

देवनागरी मा लिखव

जनम भूमि अउ जननी, सरग जइसे । जननी भाखा-बोली, नरक कइसे ।। छत्तीसगढ़ी हिन्दी, लाज मरथे । जब अंग्रेजी भाखा, मुड़ी चढ़थे ।। देवनागरी लिपि के, मान कर लौ । तज के रोमन झांसा, मया भर लौ ।। कबतक सहत गुलामी, हमन रहिबो । कबतक दूसर भाखा, हमन कहिबो ।। देवनागरी मा लिख, हिम्मत करे । कठिन कहत रे येला, दिल नइ जरे ।। दुनिया देवय झासा, कठिन कहिके । तहूँ मगन हस येमा, मुड़ी सहिके ।। -रमेश चौहान

छत्तीसगढ़ी बरवै

छत्तीसगढ़ी बरवै छत्तीसगढ़ी अड़बड़, गुरतुर बोल । बोलव संगी जुरमिल, अंतस खोल ।। कहाँ आन ले कमतर, हवय मितान ।। अपने बोली-बतरस, हम गठियान ।। छोड़ चोचला अब तो, बन हुशियार । अपन गोठ हा अपने, हे कुशियार ।। पर के हा पर के हे, अपन न मान । अपने भाखा पढ़-लिख, हम गुठियान ।। अंग्रेजी मा फस के, हवस गुलाम । अपने भाखा बोलत, करलव काम ।।

बासी खाके दाई, काम-बुता मा जाहूँ

दे ना दाई मोला, दे ना दाई मोला, एक सइकमा बासी, अउ अथान चटनी । संग गोंदली दे दे, दे दे लाले मिरचा, रांधे हस का दाई, खेड़हा -खोटनी ।। बासी खाके दाई, काम-बुता मा जाहूँ, जांगर टोर कमाके, दू पइसा लाहूँ । दू-दू पइसा सकेल, सिरतुन मा ओ दाई, ये छितका कुरिया ला, मैं महल बनाहूँ ।। -रमेश चौहान

चल खेल हम खेलबो

चल चली खोर मा, बिहनिया भोर मा, गाँव के छोर मा, खेल हम खेलबो । मुबाइल छोड़ के, मन ला मरोड़ के, सबो ला जोड़ के, संग मा ढेलबो ।। चार झन संग मा, पचरंग रंग मा, खेल के ढंग मा, डंडा ल पेलबो । छू छू-छुवाल के, ओखरे चाल के, मन अपन पाल के, दाँव ला झेलबो ।। -रमेश चौहान

अपन बोली मा बोलव

//अपन बोली मा बोलव// (शुभग दंडक छंद)  मन अपन तैं खोल, कुछु फेर बोल, कुछु रहय झन पोल, निक लगय गा गोठ । खुद अपन ला भाख, खुद लाज ला राख, सब डहर ला ताक, सब करय गा पोठ । गढ अपन के बात, जस अपन बर भात, भर पेट सब खात, कर तुहूँ गा रोठ । गढ़ हमर छत्तीस, तब बोल मत बीस, मन डार मत टीस, अब बनव गा मोठ ।। -रमेश चौहान

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