छोड़ दारु के फेशन, हे बड़ नुकसान ।
फेशन के चक्कर मा, हस तैं अनजान ।।
नशा नाश के जड़ हे, तन मन ला खाय ।
कोन नई जानय ये, हे सब भरमाय ।।
दारु नशा ले जादा, फेशन हे आज ।
पढ़े-लिखे अनपढ़ बन, करथे ये काज।।
कोन धनी अउ निर्धन, सब एके हाल ।
मनखे-मनखे चलथे, दरुहा के चाल ।।
नीत-रीत देखे मा, दोषी सरकार ।
चाल-चलन मनखे के, रखय न दरकार ।।
फेशन के चक्कर मा, हस तैं अनजान ।।
नशा नाश के जड़ हे, तन मन ला खाय ।
कोन नई जानय ये, हे सब भरमाय ।।
दारु नशा ले जादा, फेशन हे आज ।
पढ़े-लिखे अनपढ़ बन, करथे ये काज।।
कोन धनी अउ निर्धन, सब एके हाल ।
मनखे-मनखे चलथे, दरुहा के चाल ।।
नीत-रीत देखे मा, दोषी सरकार ।
चाल-चलन मनखे के, रखय न दरकार ।।
-रमेश चौहान
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