जनम भूमि अउ जननी, सरग जइसे ।
जननी भाखा-बोली, नरक कइसे ।।
छत्तीसगढ़ी हिन्दी, लाज मरथे ।
जब अंग्रेजी भाखा, मुड़ी चढ़थे ।।
देवनागरी लिपि के, मान कर लौ ।
तज के रोमन झांसा, मया भर लौ ।।
कबतक सहत गुलामी, हमन रहिबो ।
कबतक दूसर भाखा, हमन कहिबो ।।
देवनागरी मा लिख, हिम्मत करे ।
कठिन कहत रे येला, दिल नइ जरे ।।
दुनिया देवय झासा, कठिन कहिके ।
तहूँ मगन हस येमा, मुड़ी सहिके ।।
-रमेश चौहान
जननी भाखा-बोली, नरक कइसे ।।
छत्तीसगढ़ी हिन्दी, लाज मरथे ।
जब अंग्रेजी भाखा, मुड़ी चढ़थे ।।
देवनागरी लिपि के, मान कर लौ ।
तज के रोमन झांसा, मया भर लौ ।।
कबतक सहत गुलामी, हमन रहिबो ।
कबतक दूसर भाखा, हमन कहिबो ।।
देवनागरी मा लिख, हिम्मत करे ।
कठिन कहत रे येला, दिल नइ जरे ।।
दुनिया देवय झासा, कठिन कहिके ।
तहूँ मगन हस येमा, मुड़ी सहिके ।।
-रमेश चौहान
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