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संदेश

कतका झन देखे हें-

बिचार

      1. कोनो काम छोटे बड़े नई होवय, जऊन काम म मन लगय ओही काम करव । बघवा कइसे छोटे बड़े शिकार म ध्यान लगाये हे, ऐमा जरूर विचार करव ।। 2. सिखे के कहू ललक होही, मनखे कोनो मेर ले रद्दा खोज लेही । भवरा जइसे फूल ऊपर होही, त मधु मधु मधुर परागेच ल पिही ।। 3. भगवान चंदन के फर फूर कहां बनाये हे, तभो चारो कोती खुशी बगराये हे । इही त्याग अऊ तपस्या ले, भगवान ऐला अपन माथे म चढ़ाय हे ।। 4. सज्जन पुरूष ओइसने होथे, जइसे होथे रूख । ठाड़हे च रहिथे चाहे बारीश होवय के धूप ।। दूसरेच बर फरथे अऊ फूलथे, चाहे जिनगी जावय सूख ।। 5. बगुला कइसे ध्यान लगाये हे, जम्मो इंद्रिल अपन काम म लाये हे । अइसने जऊन मनखे अपन काम म मन लगाये हे, जम्मो सुख ल पाये हे ।। 6. जेन करम के करे म  बडे ल नई दे सकय दोस ।   उही करम ल छोटे के करे म उतार देही रोस ।। 7. मुह ले निकले हर भाखा कोई न कोई बात होथे,   कोनो फूलवा के महक त कोनो दिल म  अघात होथे । 8. मोह जम्मो दुख के जर म हे, माया मन हे थांगा म ।   लालच म जेने  आये हे, तेने च ह फसे हे फांदा म ।। .............‘‘रमेश‘‘........................

विदेशी सिक्षा

 सिक्षा सिक्षा ये विदेशी सिक्षा से का होय ।  न कौढी के न काम के घुम घुम के बदनाम होय ।।  न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान ।  विदेसी सिक्षा लेवत हे अऊ विदेसी संस्कृति के अभिमान ।।  दाई-ददा मोर लईका पढथ हे कहिके नई कराव कुछु काम ।  नान्हेपन ले जांगर नई चलाय हे अब कोन जांगर ले होही काम ।।  पूजा-पाठ, कथा-भागवत सब ल देवत हे अंधविश्वास के नाम ।  लईका पढिस लिखिस  अऊ होगें कइसन ओ हर विदवान ।। पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया नई आवय कुछु काम  न पाइंच कहु काम धाम त परबुधिया होके होवथ हे बदनाम ।। गांव-गांव अऊ गली-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के भरमार हे  जेन कहावय भाई-दादा जेखर करम ले ये देश शरमसार हे ।।  सिरतुन कहव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला ।  इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला ।। ................‘‘रमेश‘‘........................

मोर मईया के जगराता हे

आगे आगे नवरात्रि तिहार, सब मिल के करव जयजय कार । मंदिर मंदिर दाई करत हे बिहार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो जलाव जोत मनौती, त कोनो करावय पूजा पाठ । कोनो गावय जसगीत मनोहर, त कोनो लेवय साट । भक्तन मन करत हे गोहार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो हवय निर्जला उपास, त कोनो लेवय फरहार । कोनो साधय जतंर मंतर, त कोनो करय करिया करंजस । भक्तन मन के हवय नाना प्रकार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो जावय माॅ के पहाडि़या, त कोनो बोवय घर म फुलवरिया । कोनो चढ़ाव धजा नरियर, त कोनो लावय फूल लाली पिरियर । कोनो चढ़ाव मईया ल सिंगार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो मांगय धन दोगनी, त कोनो मांगय काम म बरकत महारानी । कोनो मांगय आद औलाद, भक्तन मन के हे नाना फरियाद । कोनो चाहय केवल भक्ति तुहार, मोर मईया के जगराता हे । ....................‘‘रमेश‘‘..........................

-ः मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव:ः-

जिहां चिरई-चिरगुन करे चांव-चांव, जिहां कऊंवा मन करें कांव-कांव । जिहां कोलिहा-कुकुर मन करे हांव-हांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । गाय बछरू कुकरा कुकरी अऊ छेरी पठरू, घर घर नरियावय मिमीयावय कुकरू कू कुकरू । दूध दूहे बर बइठे पहटिया दोहनी धरे उघरू, गाय चाटय पूछी उठाय दूघ पियत हे बछरू । बारी बखरी म बंधय कोनो रूखवा के छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । बाबूमन खेलय बाटी ईब्बा, नोनी मन खेलय फुग्गडी, कोनो खेलय तास चैसर त कोनो करय चारी-चुगली । पनिहारिन म करय हंसी ठिठोली मुडी म बोहें गगरी , जिहां के घर संग भावय परछी अंगना म लहरावय तुलसी । जिहां तुलसी के कतका मान , जेखर कतका सुघ्घर छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । गोरसी धरे बईठे बबा नातीमन ल धरे बुढ़ही दाई, नागर जोते ल गे हे ददा कांदी लुये बर दाई । चैपाल म बईठे पंच पटइल अऊ गौटिया, संग म बईठे पंडित बाबू जेखर हे चुटिया । गौतरिहा मन बैईठे सुघ्धर आमा के छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । मया म गावय करमा ददरिया, लइका होंय  म गावय सोहर, बिहाव म गावय भडौनी गीत, संग छोडवनी

माटी मा

लईकापन म खूब खेलेंव अऊ सनायेंव माटी मा । पुतरा पुतरी अऊ घरघुंदिया बनायेंव धुर्रा माटी मा ।। डंडा पंचरंगा अऊ भवरा बाटी खेलयेंव माटी मा घोर घोर रानी अऊ छपक छपक खेलयेंव माटी मा । जवानी म जांगर टोर कमायेंव मिल के माटी मा । मुंधरहा ले संझा तक नांगर जोतेयेंव माटी मा ।। ईटा भिथिया अऊ खपरा बनायंव माटी मा ।। सुघ्घर सुघ्घर घर कुरीया संवारेंव माटी मा । संगी जहुरिया अऊ सगा नाता बनायेंव माटी मा । दुनियादारी निभऐंव, गुलछर्रा उडायेंव माटी मा ।। आगे बुढापा कांपत हाथ गोड माढ़त नईये माटी मा । खांसी खखांर ला लुकावत हंव अब मैं माटी मा ।। बुढ़ापा के मोर संगी नाती मन खेलत हे माटी मा। कोनो सगा संगी नईये आंखी गडांयेंव हंव माटी मा ।। फूलत हे सास जीये के नइये आस समाना हे माटी मा । उतार दव खटिया सोवा दव मोला अब माटी मा ।।

हे जगत जननी महामाई

हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । मैं तोर नान्हे नादान लईका, अऊ तही मोर दाई । तोरेच किरपा म ये जिंनगी पाय हव । तोहीच ल अपन मन मंदिर म बसाय हव । श्रद्धा के फूल मईया तोला मै चढ़ाय हव । विश्वास के दिया मईया मै ह जलाय हव । तोरेच आशीषले ये दुनिया हे सुहाई । हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । जब ले होश सम्हालेव तब ले तोला जानेव । जिनगी के जम्मो दुख ल तोरे चैखट म लानेव । तोर नाम के सिवाय पूजा पाठ मैं नई जानेव । चंचल मन अऊ चंचल तन ऐला कहा सम्हालेव ।  क्षमा करिहव मोर जम्मो अपराध बिसराई ।  हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई ।   ...............रमेश...............

बचपना तो बचपना ये

आज मोर लइका दिन  भर, विडियो गेम म बिपतियाय हे, पढत न लिखत देख ओला, मोरो दिमाग ह मंतियाय हे । गुस्सा म ओला का कहव, का नई कहव कहिके गुनत हंव, लइका के दाई हर लईका ले, देवत हे गारी तेला सुनत हंव। गुनत गुनत मोर दिमाक म, मोरे बचपना के धुंधरा छाय हे, अऊ लइका बने के साध ले,एक बार फेर मोरो मन हरियाय हे ।। संतोश मन संग बांटी खेलंव, नेतू मन संग ईब्बा , सब लईका मिल के खेलेन, छु-छुवाल छिप्पा । नरवा मा पूरा आये हे, तऊंरे बर रवि राकेष ह बुलाये हे, मोरो मन ह ललचाय हे, फेर मोरो दाई ह मंतियाय हे ।।        तऊडे के बड साध , ओधा बेधा ले मैं गेंव भाग , पडहेना आगे राकेश के हाथ, होगे आज के साग । कूद -कूद  के खेलई अऊ कूद कूद के तवरईय , संगी मन के मोर घर अऊ, मोर उखर घर जवईय । बचपना तो बचपना ये, खेलई म अऊ सुघराये हे ऐही सोच सोच अब मोरो मन बने हरियाये हे ।।     रूपेश गनपत मोर स्कूल के संगी     पढ़े म नई करेन हम एको तंगी     हमू खेल कूद के पढ़े हन     अपन जिंनगी ला गढ़े हन बेटा मानव मोरो कहना, खेलव कूदव खोर अंगना तन मन बने रहिहीं, फेर पढ़व घला संगे संग ना बात मान के मोरो लइका, पुस्तक मा

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