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संदेश

कतका झन देखे हें-

-ःःमेघा काबर छाय हेःः-

    माघ के उतरति म अऊ बेरा के बूडती म,     मेघा काबर छाय हे ये बसंत बर काबर मंतियायें  हे ।     लूहूर तूहूर अपन बिदाई म आसू  बहावत हे,     सुरूर सुरूर पुरवाही ओखर साथ निभावत हे ।     अभी बरफ ह बरोबर टघले नईये,     ओला ये फेर काबर जमाय है ।     अभी अभी लइका के दाई सेटर ल संदूक म धरे हे,     तेला ये बादर रोगहा फेर निलकलवाये बर परे हे ।     ओनाहारी अभीच्चे फूल धरे हे तेंला ये काबर झर्राय हे ।     सुघ्घर सपना देखत किसान ल हिलोर के काबर जगायें है।         सावन भादों जब ऐखर जरूरत रहिस त अब्बड़ तरसाये हे ।     आज चनामन के माते हे फूल तेन ल झर्रायेबर आये हे ।     जइसे गांव के गौटिया काम म पइसा नई देवय,     अऊ अपन काम बर फोकट म दारू पियाये हे ।     ये बादर काम बर ठेंगा देखायें हे,     अऊ आज फोकट के बरसाय हे ।     ...................‘‘रमेश‘‘.........................

नान्हेपन म

नान्हेपन म ममादाई अब्बड किस्सा सुनावय, रात रात जाग के ओ ह हमला मनावय । कभु सुनावय किस्सा भोले बबा के नादानी, कभु सुनावय राजा रानी के सुघ्घर कहानी । कभु सुनावय कइसे ढेला पथरा निभाईन मितानी, कभु सुनावय भूत प्रेत अऊ राक्षस मन के शैतानी । ओखर हर किस्सा हमर आंखी म नवा चमक लावय, दाई ऊंघावत ऊंघावत हमला नवा किस्सा सुनावय । ओ जमाना म कहा टी.वी. अऊ सिनेमा के परदा, तब तो रहिस किस्सा अऊ नाचा पइखन के जादा दरजा । न चमक न दमक तभो अच्छा लगय हमर मन, आज चारो कोती के चमक दमक घलो उदास हे मोरो मन । .................‘‘रमेश‘‘.......................

//कोनो काही कहय //

कोनो प्रतिभा गुलाम नई होवय अमीरी के, रददा रोक नइ सकय कांटा गरीबी के । कोनो काही कहय चिखले म कमलदल ह खिलथे, अऊ हर तकलीफ ले जुझेच म सफलता ह मिलथे । हर खुशी कहां मिलथे अमीरी ले, कोनो खुशी कहां अटकथे गरीबी ले । कोनो काही कहय खुशी तो मनेच ले मिलथे, तभे तो मन चंगा त कठौति म गंगा कहिथे । सुरूज निकलथे दुनो बर, पुरवाही बहिथे दुनो बर । कोनो काही कहय बरसा घाम दुनो बर बरिसथे, जेखर जतका बर गागर ओतके पानी भरथे । अमीर सदा अमीर नई रहय गरीब सदा गरीबी नई सहय । कोनो काही कहय भाग करम के गुलाम रहिथे । सियान मन धन दोगानी ला हाथ के मइल कहिथे । सफल होय बर हिम्मत के दरकार हे, जेन सहय आंच तेन खाय पांच कहाय हे । कोनो काही कहय जांगर टोर जेन कमाथे, अपन मुठ्ठी म करम किस्मत ल पाथे । -रमेशकुमार सिंह चौहान

जइसन ल तइसन

               जइसन ल तइसनहम कहिथन कइसन, फेर लगते हे हमार सरकार ल नई भावय अइसन ।     कोनो हमर मुडी काटय,     अऊ हमन देखन कऊवां कुकुर असन,     भुकत हन ये तुहरे करे, ये तुहरे करे     फेर दुश्मन चलत हे हाथी असन । बहुत होगे अब चाबे नइ सकत त एक  बेर तो फुफकार, कही दे एक  बेर सौ सुनार के त एक  बेर लुहार ।     अभी कुछु नई कर सकेन त     हमार पिढी ला का सिखाबो,     दुश्मन काटे मुडी दु चार त     एक एक करके हमन मुडी ल दताबो । ................‘‘रमेश‘‘........................

बिचार

      1. कोनो काम छोटे बड़े नई होवय, जऊन काम म मन लगय ओही काम करव । बघवा कइसे छोटे बड़े शिकार म ध्यान लगाये हे, ऐमा जरूर विचार करव ।। 2. सिखे के कहू ललक होही, मनखे कोनो मेर ले रद्दा खोज लेही । भवरा जइसे फूल ऊपर होही, त मधु मधु मधुर परागेच ल पिही ।। 3. भगवान चंदन के फर फूर कहां बनाये हे, तभो चारो कोती खुशी बगराये हे । इही त्याग अऊ तपस्या ले, भगवान ऐला अपन माथे म चढ़ाय हे ।। 4. सज्जन पुरूष ओइसने होथे, जइसे होथे रूख । ठाड़हे च रहिथे चाहे बारीश होवय के धूप ।। दूसरेच बर फरथे अऊ फूलथे, चाहे जिनगी जावय सूख ।। 5. बगुला कइसे ध्यान लगाये हे, जम्मो इंद्रिल अपन काम म लाये हे । अइसने जऊन मनखे अपन काम म मन लगाये हे, जम्मो सुख ल पाये हे ।। 6. जेन करम के करे म  बडे ल नई दे सकय दोस ।   उही करम ल छोटे के करे म उतार देही रोस ।। 7. मुह ले निकले हर भाखा कोई न कोई बात होथे,   कोनो फूलवा के महक त कोनो दिल म  अघात होथे । 8. मोह जम्मो दुख के जर म हे, माया मन हे थांगा म ।   लालच म जेने  आये हे, तेने च ह फसे हे फांदा म ।। .............‘‘रमेश‘‘........................

विदेशी सिक्षा

 सिक्षा सिक्षा ये विदेशी सिक्षा से का होय ।  न कौढी के न काम के घुम घुम के बदनाम होय ।।  न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान ।  विदेसी सिक्षा लेवत हे अऊ विदेसी संस्कृति के अभिमान ।।  दाई-ददा मोर लईका पढथ हे कहिके नई कराव कुछु काम ।  नान्हेपन ले जांगर नई चलाय हे अब कोन जांगर ले होही काम ।।  पूजा-पाठ, कथा-भागवत सब ल देवत हे अंधविश्वास के नाम ।  लईका पढिस लिखिस  अऊ होगें कइसन ओ हर विदवान ।। पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया नई आवय कुछु काम  न पाइंच कहु काम धाम त परबुधिया होके होवथ हे बदनाम ।। गांव-गांव अऊ गली-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के भरमार हे  जेन कहावय भाई-दादा जेखर करम ले ये देश शरमसार हे ।।  सिरतुन कहव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला ।  इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला ।। ................‘‘रमेश‘‘........................

मोर मईया के जगराता हे

आगे आगे नवरात्रि तिहार, सब मिल के करव जयजय कार । मंदिर मंदिर दाई करत हे बिहार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो जलाव जोत मनौती, त कोनो करावय पूजा पाठ । कोनो गावय जसगीत मनोहर, त कोनो लेवय साट । भक्तन मन करत हे गोहार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो हवय निर्जला उपास, त कोनो लेवय फरहार । कोनो साधय जतंर मंतर, त कोनो करय करिया करंजस । भक्तन मन के हवय नाना प्रकार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो जावय माॅ के पहाडि़या, त कोनो बोवय घर म फुलवरिया । कोनो चढ़ाव धजा नरियर, त कोनो लावय फूल लाली पिरियर । कोनो चढ़ाव मईया ल सिंगार, मोर मईया के जगराता हे । कोनो मांगय धन दोगनी, त कोनो मांगय काम म बरकत महारानी । कोनो मांगय आद औलाद, भक्तन मन के हे नाना फरियाद । कोनो चाहय केवल भक्ति तुहार, मोर मईया के जगराता हे । ....................‘‘रमेश‘‘..........................

-ः मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव:ः-

जिहां चिरई-चिरगुन करे चांव-चांव, जिहां कऊंवा मन करें कांव-कांव । जिहां कोलिहा-कुकुर मन करे हांव-हांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । गाय बछरू कुकरा कुकरी अऊ छेरी पठरू, घर घर नरियावय मिमीयावय कुकरू कू कुकरू । दूध दूहे बर बइठे पहटिया दोहनी धरे उघरू, गाय चाटय पूछी उठाय दूघ पियत हे बछरू । बारी बखरी म बंधय कोनो रूखवा के छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । बाबूमन खेलय बाटी ईब्बा, नोनी मन खेलय फुग्गडी, कोनो खेलय तास चैसर त कोनो करय चारी-चुगली । पनिहारिन म करय हंसी ठिठोली मुडी म बोहें गगरी , जिहां के घर संग भावय परछी अंगना म लहरावय तुलसी । जिहां तुलसी के कतका मान , जेखर कतका सुघ्घर छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । गोरसी धरे बईठे बबा नातीमन ल धरे बुढ़ही दाई, नागर जोते ल गे हे ददा कांदी लुये बर दाई । चैपाल म बईठे पंच पटइल अऊ गौटिया, संग म बईठे पंडित बाबू जेखर हे चुटिया । गौतरिहा मन बैईठे सुघ्धर आमा के छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । मया म गावय करमा ददरिया, लइका होंय  म गावय सोहर, बिहाव म गावय भडौनी गीत, संग छोडवनी

माटी मा

लईकापन म खूब खेलेंव अऊ सनायेंव माटी मा । पुतरा पुतरी अऊ घरघुंदिया बनायेंव धुर्रा माटी मा ।। डंडा पंचरंगा अऊ भवरा बाटी खेलयेंव माटी मा घोर घोर रानी अऊ छपक छपक खेलयेंव माटी मा । जवानी म जांगर टोर कमायेंव मिल के माटी मा । मुंधरहा ले संझा तक नांगर जोतेयेंव माटी मा ।। ईटा भिथिया अऊ खपरा बनायंव माटी मा ।। सुघ्घर सुघ्घर घर कुरीया संवारेंव माटी मा । संगी जहुरिया अऊ सगा नाता बनायेंव माटी मा । दुनियादारी निभऐंव, गुलछर्रा उडायेंव माटी मा ।। आगे बुढापा कांपत हाथ गोड माढ़त नईये माटी मा । खांसी खखांर ला लुकावत हंव अब मैं माटी मा ।। बुढ़ापा के मोर संगी नाती मन खेलत हे माटी मा। कोनो सगा संगी नईये आंखी गडांयेंव हंव माटी मा ।। फूलत हे सास जीये के नइये आस समाना हे माटी मा । उतार दव खटिया सोवा दव मोला अब माटी मा ।।

हे जगत जननी महामाई

हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । मैं तोर नान्हे नादान लईका, अऊ तही मोर दाई । तोरेच किरपा म ये जिंनगी पाय हव । तोहीच ल अपन मन मंदिर म बसाय हव । श्रद्धा के फूल मईया तोला मै चढ़ाय हव । विश्वास के दिया मईया मै ह जलाय हव । तोरेच आशीषले ये दुनिया हे सुहाई । हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । जब ले होश सम्हालेव तब ले तोला जानेव । जिनगी के जम्मो दुख ल तोरे चैखट म लानेव । तोर नाम के सिवाय पूजा पाठ मैं नई जानेव । चंचल मन अऊ चंचल तन ऐला कहा सम्हालेव ।  क्षमा करिहव मोर जम्मो अपराध बिसराई ।  हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई ।   ...............रमेश...............

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