दाई के गोरस सही, धरती के पानी । दाई ले बड़का हवय, धरती हा दानी ।। सहत हवय दूनो मनन, तोरे मनमानी । रख गोरस के लाज ला, कर मत नादानी ।। होगे छेदाछेद अब, धरती के छाती । कइसे बरही तेल बिन, जीवन के बाती ।। परत हवय गोहार सुन, अंतस मा तोरे । पानी ला खोजत हवस, गाँव-गली खोरे ।। रहिही जब जल स्रोत हा, रहिही तब पानी । तरिया नरवा बावली, नदिया बरदानी ।। पइसा के का टेस हे, पइसा ला पीबे । पइसा मा मिलही नही, तब कइसे जीबे ।।
छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा भाग-6.परिक्षित के गर्भ मा रक्षा
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‘छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे
कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के
छत्तीस...
5 दिन पहले