//कुण्डल//
काम-बुता करव अपन, जांगर ला टोरे ।
देह-पान रखव बने, हाथ-गोड़ ला मोड़े ।।
प्रकृति संग जुड़े रहव, प्रकृति पुरूष होके ।
बुता करब प्रकृति हमर, बइठव मत सोके ।।
//कुण्डलनि //
जांगर अपने टोर के, काम-बुता ला साज ।
देह-पान सुग्हर रहय, येही येखर राज ।।
येही येखर राज, खेत मा फांदव नांगर ।
अन्न-धन्न अउ मान, बांटथे हमरे जांगर ।।
//कुण्डलियां//
अइठे-अइठे रहव मत, अपन पसीना ढार ।
लाख बिमारी के हवय, एकेठन उपचार ।।
एकेठन उपचार, बनाही हमला मनखे ।
सुग्घर होही देह, काम करबो जब तनके ।।
साहब बाबू होय, रहव मत बइठे-बइठे ।
अपने जांगर पेर, रहव मत अइठे-अइठे ।।
काम-बुता करव अपन, जांगर ला टोरे ।
देह-पान रखव बने, हाथ-गोड़ ला मोड़े ।।
प्रकृति संग जुड़े रहव, प्रकृति पुरूष होके ।
बुता करब प्रकृति हमर, बइठव मत सोके ।।
//कुण्डलनि //
जांगर अपने टोर के, काम-बुता ला साज ।
देह-पान सुग्हर रहय, येही येखर राज ।।
येही येखर राज, खेत मा फांदव नांगर ।
अन्न-धन्न अउ मान, बांटथे हमरे जांगर ।।
//कुण्डलियां//
अइठे-अइठे रहव मत, अपन पसीना ढार ।
लाख बिमारी के हवय, एकेठन उपचार ।।
एकेठन उपचार, बनाही हमला मनखे ।
सुग्घर होही देह, काम करबो जब तनके ।।
साहब बाबू होय, रहव मत बइठे-बइठे ।
अपने जांगर पेर, रहव मत अइठे-अइठे ।।
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