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संदेश

कतका झन देखे हें-

दारुभठ्ठी बंद हो

दाई बहिनी गाँव के, पारत हे  गोहार । दारू भठ्ठी बंद हो, बचै हमर परिवार ।। बचै हमर परिवार, मंद मा मत बोहावय । लइका हमर जवान, इही मा झन बेचावय ।। जेखर सेती वोट, हमन दे हन गा भाई  । वादा अपन निभाव, कहत हे बहिनी दाई ।। -रमेश चौहान

नवगीत-चुनाव के बाद का बदलाही ?

चुनाव के बाद का बदलाही ? तुहला का लगथे संगी चुनाव के बाद का बदलाही डारा-पाना ले झरे रूखवा ठुड़गा कस मोरे गाँव काम-बुता के रद्दा खोजत, लइका भटके आने ठाँव लहुट के आही चूमे बर माटी का ठुड़गा उलहाही नदिया-नरवा बांझ बरोबर तरिया-परिया के छूटे पागी गली-गली गाँव-शहर मा बेजाकब्जा के लगे आगी सिरतुन कोनो हवुला-गईली लेके लगे आगी बुतवाही बघवा जइसे रहिस शिकारी अपन दमखम देखावय बंद पिंजरा मा बइठे-बइठे कइसे के अब मेछरावय धरे हाथ मा भीख के कटोरा का गरीबी छूटजाही -रमेशकुमार सिंह चौहान

नेता मन के दूध भात हे

नेता मन के दूध भात हे, बोलय झूठ लबारी । चाहय बैरी दुश्मन बन जय, चाहय त स॔गवारी ।। झूठ लबारी खुद के बिसरय,  बिसरय खुद के चोरी । चोर-चोर मौसेरे भाई,  करथे सीनाजोरी  ।। सरहा मछरी जेन न छोड़े, कान जनेऊ टांगे । खुद एको कथा न जानय,  प्रवचन गद्दी मांगे ।। खेत चार एकड़ बोये बर, बनहूं कहय गौटिया । काड़ छानही के बन ना पाये, बनही धारन पटिया ।। दाना अलहोरव सब चतुरा, बदरा बदरा फेकव । बने गाय गरुवा ला राखव, हरही-हरहा छेकव ।। -रमेश चौहान

मुक्तक

नेता मन के देख खजाना,  वोटर कहय चोर हे नेता  वोटर ले पूछत हे, का ये देश तोर हे वोट दारु पइसा मा बेचस, बेचस लोभ फेर मा सोच समझ के कोनो कहि दै,  कोन हराम खोर हे बंद दारु भठ्ठी होही कहिके, महिला हमर गाँव के वोट अपन सब जुरमिल डारिन, खोजत खुशी छाँव के रेट दारु  के उल्टा  बाढ़े,  झगरा आज बाढ़  गे गोठ लबारी लबरा हावय, नेता  हमर ठाँव के बिजली बिल हाँफ कहत कहत, बिजली ये हा हाँफ  होगे करजा माफ होइस के नहीँ, बेईमानी हा माफ होगे भाग जागीस तेखर जागीस, बाकी मन हा करम छढ़हा करजा अउ ये बिल  के चक्कर, अंजोरे हा साफ होगे फोकट के हा फोकट होथे सुख ले जादा  दुख ला बोथे जेन समय मा समझ ना पावय पाछू बेरा  मुड़  धर रोथे फोकट पाये के  लालच देखे, नेता पहिली  ले हुसियार  होगे । कोरी-खइखा मुसवा  ला देखे, नेता मन ह बनबिलार होगे लालच के घानी बइला फांदे, गुड़ के भेली बनावत मन भर वोटर एकोकन गम नई पाइस, कब ठाढ़े ठाढ़े  कुसियार होगे

जय-जय रघुराई

जय-जय रघुराई, रहव सहाई, तैं सुखदाई जगत कहै, मन भगत लहै । गुण तोरे गावय, तेन अघावय, सब सुख पावय दुख न सहै, जब चरण गहै ।। सब मरम लखावत, धरम बतावत, चरित देखावत पाठ गढे़, ये जगत कढ़े । जग रिश्तादारी, करत सुरारी, जगत सम्हारी जगत पढ़े, सब आघु बढ़े ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

अरे पुरवाही, ले जा मोरो संदेश

अरे पुरवाही, ले जा मोरो संदेश धनी मोरो बइठे, काबर परदेश अरे पुरवा…ही मोर मन के मया, बांध अपन डोर छोड़ देबे ओखरे , अचरा के छोर सुरुर-सुरुर मया, देवय सुरता के ठेस अरे पुरवा…ही जोहत हंवव रद्दा, अपन आँखी गाढ़े आँखी के पुतरी, ओखर मूरत माढ़े जा-जा रे पुरवाही, धर के मोरे भेस अरे पुरवा…ही मोरे काया इहां, उहां हे परान अरे पुरवाही, होजा मोरे मितान देवा दे ओला, आये बर तेश अरे पुरवा…ही -रमेश चौहान

पहिली मुरकेटव, इखर टोटा

पहिली मुरकेटव, इखर टोटा (द्वितीय झूलना दंडक छंद) एक खड़े बाहिर, एक अड़े भीतर, बैरी दूनों हे, देष के गा । बाहिर ले जादा, भीतर के बैरी, बैरी ले बैरी, देष के गा ।। बाहिर ला छोड़व, भीतर ला देखव, पहिली मुरकेटव, इखर टोटा । बाहिर के का हे, भीतर ला देखत, पटाटोर जाही, धरत लोटा ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

मया बिना ये जिनगी कइसे

मया बिना ये जिनगी कइसे होथे, हवा बिना जइसे देह काया । रंग मया के एक कहां हे संगी, इंद्रधनुष जइसे होय माया ।। मया ददा-दाई के पहिली जाने, भाई-बहिनी घला पहिचाने । संगी मेरा तैं हर करे मितानी, तभो एकझन ला अपन जाने ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

टोकब न भाये

टोकब न भाये (करखा दंडक छंद) काला कहिबे, का अउ कइसे कहिबे, आघू आके, चिन्हउ कहाये । येही डर मा, आँखी-कान ल मूंदे, लोगन कहिथे, टोकब न भाये ।। भले खपत हे, मनखे चारों कोती, बेजा कब्जा, मनभर सकेले । नियम-धियम ला, अपने खुद के इज्जत, धरम-करम ला, घुरवा धकेले ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

कर मान बने धरती के

कर मान बने धरती के (खरारी छंद) कर मान बने, धरती के, देश प्रेम ला, निज धर्म बनाये । रख मान बने, धरती के, जइसे खुद ला, सम्मान सुहाये ।। उपहास करे, काबर तैं, अपन देश के, पहिचान भुलाये । जब मान मरे, मनखे के, जिंदा रहिके, वो लाश कहाये ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

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