पहिली मुरकेटव, इखर टोटा
(द्वितीय झूलना दंडक छंद)
एक खड़े बाहिर, एक अड़े भीतर, बैरी दूनों हे, देष के गा ।
बाहिर ले जादा, भीतर के बैरी, बैरी ले बैरी, देष के गा ।।
बाहिर ला छोड़व, भीतर ला देखव, पहिली मुरकेटव, इखर टोटा ।
बाहिर के का हे, भीतर ला देखत, पटाटोर जाही, धरत लोटा ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
(द्वितीय झूलना दंडक छंद)
एक खड़े बाहिर, एक अड़े भीतर, बैरी दूनों हे, देष के गा ।
बाहिर ले जादा, भीतर के बैरी, बैरी ले बैरी, देष के गा ।।
बाहिर ला छोड़व, भीतर ला देखव, पहिली मुरकेटव, इखर टोटा ।
बाहिर के का हे, भीतर ला देखत, पटाटोर जाही, धरत लोटा ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
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