सावन तैं करिया बिलवा हस, तैं छलिया जस कृष्ण मुरारी । जोहत-जोहत रोवत हावँव, आत नई हस मोर दुवारी ।। बूँद कहां तरिया नरवा कुछु बोर कुवाँ नल हे दुखियारी । बावत धान जरे धनहा अब रोय किसान धरे मुड़ भारी ।। पीयब धोब-नहावब के अब संकट ले बड़ संकट भारी । बोर अटावत खेत सुखावत ले कइसे अब जी बनवारी । आवव-आवव बादर सावन संकट जीवन मा बड़ भारी ।। देर कहूँ अब तैं करबे तब। जीयत बाचब ना जग झारी ।।
छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा भाग-6.परिक्षित के गर्भ मा रक्षा
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‘छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे
कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के
छत्तीस...
2 दिन पहले