हमू ल हरहिंछा जान देबे मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे । तै सुधरबे त वो । जीवन खो-खो खेल हे एक-दूसर ल खो ।। सेप्टिक बनाए बने करे, पानी, गली काबर बोहाय । अपन घर के हगे-मूते म हमला काबर रेंगाय ।। गली पाछू के ल सेठस नहीं, आघू बसे हस त शेर होगेस । खोर-गली ल चगलत हवस, अपन होके घला गेर होगेस । अपन दुवारी के खोर-गली कांटा रूंधे कस छेके हस । गाड़ा रवन रहिस हे बाबू, काली के दिन ल देखे हस ।। मनखे होबे कहूं तै ह संगी, हमू ल मनखे मान लेबे । अपन दुवारी के खोर-गली म, हमू ल हरहिंछा जान देबे ।। -रमेश चौहान
महाकुंभ 2025: प्रयागराज में आस्था और संस्कृति का महासंगम
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प्रयागराज, जिसे त्रिवेणी संगम के लिए जाना जाता है, इस वर्ष महाकुंभ के पावन
अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं, साधु-संतों और पर्यटकों का स्वागत कर रहा है।
महाकुंभ क...
2 हफ़्ते पहले