आठे कन्हईया के गीत-भादो के महिना
भादो के महीना, घटा छाये अंधियारी,
बड़ डरावना हे, ये रात कारी कारी ।
कंस के कारागार, बड़ रहिन पहरेदार,
चारो कोती चमुन्दा, खुल्ला नइये एकोद्वार ।
देवकी वासुदेव करे पुकार, हे दीनानाथ,
अब दुख सहावत नइये, करलव सनाथ ।
एक-एक करके छै, लइका मारे कंस,
सातवइया घला होगे, कइसे अपभ्रंस ।
आठवइया के हे बारी, कइसे करिन तइयारी,
एखरे बर करे हे, आकाशवाणी ला चक्रधारी ।
मन खिलखिलावत हे, फेर थोकिन डर्रावत हे,
कंस के काल हे, के पहिली कस एखरो हाल हे ।
ओही समय चमके बिजली घटाटोप,
निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप ।
बिजली अतका के जम्मो के आंखी-कान मुंदागे,
दमकत बदन चमकत मुकुट, चार हाथ वाले आगे ।
देवकी वासुदेव के, हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे,
जम्मो पहरेदारमन ल, बड़ जोर के नींद आगे ।
देखत हे देवकी वासुदेव, त देखत रहिगे,
कतका सुघ्घर हे, ओखर रूप मनोहर का कहिबे ।
चिटिक भर म होइस, उंहला परमपिता के भान,
नाना भांति ले, करे लगिन उंखर यशोगान ।
तुहीमन सृष्टि के करइया, जम्मो जीव के देखइया
धरती के भार हरइया, जीवन नइया के खेवइया ।
मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान,
बालक रूप म प्रगटे आज तो भगवान ।
प्रगटे आज तो भगवान मंगल गाओ,
खुशी मनाओ भई आज खुशी मनाओ ।
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