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मार्च, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

मनखे मनखे बाज

राजनीति के डोर मा, मनखे मन छंदाय । मनखे होगे जानवर, मनखेपन नंदाय ।। जात धरम हा मांस हे, मनखे मनखे बाज । आघू पाके मांस ला, चिथ चिथ के सब खाय ।। -रमेश चौहान

जय हो जय हो भारत माता

जय हो जय हो भारत माता, तोरे जस हम गावन । सुत उठ के बड़े बिहनिया हम, तोरे पांव पखारन । हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई, जैन बौद्ध सुत तोरे । अपन अपन सुर मा सउरय सब, दाई दाई मोरे । तोरे कोरा बइठे बइठे, जुरमिल हम इतरावन । जय हो जय हो भारत माता, तोरे जस हम गावन । जम्मू श्रीनगर मुड़ी तोरे, मुकुट हिमालय भाये। शिमला तोरे माथे बिन्दी, दुनिया ला चमकाये ।। नाक नई दिल्ली हे तोरे, नथली हम पहिरावन । जय हो जय हो भारत माता, तोरे जस हम गावन ।। उत्तरकाशी चंड़ीगढ़ हा, आंखी कारी कारी । जयपुर पटना गाल गुलाबी, मथुरा मुॅह अनुहारी । बाड़मेर कच्छ कोहिमा अउ, मणिपुर हाथ सवारन । जय हो जय हो भारत माता, तोरे जस हम गावन ।। गंगा चम्बल गोरस तोरे, अमृत ला छलकाये । छाती भोपाल रायपुर दिल, अन्न धन्न बगराये। तोरे गोरस पीये दाई, हमघात मेछरावन । जय हो जय हो भारत माता, तोरे जस हम गावन ।। (चम्बल-यमुना नदी के सहायक नदी) जगन्नाथ पेट बने हे, हरियर पर्वत साड़ी । जांघ शिमोगा संग कड़प्पा, माहे मदुरै माड़ी रामनाथपुरम संग कोल्लम, तरपौरी मनभावन जय हो जय हो भारत माता, तोरे जस हम गावन ।। मूर्ति गढ़े न मूर्ति पूजा

गांठ बांध ये गोठ ला

छोड़व जुन्ना गोठ, नवा रद्दा गढ़ना हे । लड़ई झगरा छोड़, आघु हमला बढ़ना हे । मोर धरम हे मोर, धर्म तोरे हा तोरे । अपन अपन ला मान, आन ला काबर घोरे । तोर कमाई तोर हे, दूसर के हा आन के । गांठ बांध ये गोठ ला, संगे खेलव तान के ।।

कुॅवा पार मा (युगल गीत)

नायिका- कुॅवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुॅवा पार मा कुॅवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुॅवा पार मा नायक- कुॅवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुॅवा पार मा कुॅवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुॅवा पार मा नायिका- सुरता आवत हावे संगी, बीते हमर कहानी । संग सहेली रहिन न कोनो, भरत रहंव मैं पानी ।। कोन डहर ले कब के आयो, खड़े रहे तैं भोला, कुॅवा पार मा कुॅवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुॅवा पार मा नायक- सुरता के कोठी के छबना, देखत हॅव मैं खोले । देख देख काली के बाते, मन हा मोरे डोले ।। तोरे मोरे आंखी कइसे, तोरे मोरे आंखी कइसे, चढ़े एक हिंडोला, कुॅवा पार मा कुॅवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुॅवा पार मा नायिका- भरत भरत पानी हउला मा, देखेंव तोर काया । देखत देखत कइसे संगी, जागे तोरे माया ।। आंखी मोरे खुल्ला रहिगे, ...... आंखी मोरे खुल्ला रहिगे, होष रहय ना मोला, कुॅवा पार मा कुॅवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुॅवा पार मा नायक- उतर सरग ले एक परी हा, भरत रहिस हे पानी । पाके आमा जइसे जेमा, छलकत रहिस जवानी ।। मारू

कोन बड़े बात हे

1- हरियर हरियर दिखथे दुनिया अपन चश्मा के रंग ले । लाली पीला घलो हवय बाबू देख तो दंग दंग ले । कर्तव्य हा शेष नाग कस बोहे हे ये धरती ला, काबर अपन बोझा घालहे राखे आने के संग ले ।। 2- मन के हारे ले, थिराय बर छांव चाही । मन ला कर पोठ, जीते बर दांव चाही ।। बैरी कहू सुरूज बनय त, तैं हनुमान बन, हर हालत मा अपन देश अउ गांव चाही ।। 3- पथरा ले रस्सी टूटय कोन बड़े बात हे । पथरा मारय टोरय, येही ओखर जात हे ।। रस्सी के आय जाय ले, पथरा मा निशान हे, रस्सी बर एखर ले अउ कोन बड़े बात हे ।

ये अचरज के बात हे

पेट भरे बर एक हा, हजम करे बर एक । दूनों रेंगय कोस भर, भोगय रोग हरेक ।। रोटी खोजय एक हा, बेरा खोजय एक । दूनों मेरा हे कमी, मनखे हवय जतेक ।। कइसन ये लाचार हे, परे रहय बीमार । कइसन ओ बीमार हे, बने रहय लाचार ।। -रमेश चौहान

//मया//

मन हा मया खोजथे, चारो खूंट । पाये बिना घूटके, महुरा घूंट ।। बने मया बर तन मन, मया म रंग । मनखे जीव जीव हा, होय न तंग ।। कइसन रंग मया के, कइसन रूप । खोजत हे गरीब मन, खोजय भूप ।। देखे मया कोन हा, छूये कोन । रग रग मा हवय घुरे, बन गुड़ गोन ।। मया हवय धरती मा, जस भगवान । देखय ना तो आंखी, सुने न कान । मया हमर सुभाव हे, घुसरे साॅस । मनखे मनखे ला ये, राखे फाॅस ।।

होरी गीत

होरी गीत(सार छंद)  होरी हे होरी हे होरी, रंग मया के होरी । अपन मया के रंग रंग दे, ये बालम बरजोरी ।। मया बिना जग सुन्ना लागे, जइसे  घर धंधाये । जतका रंग मया के होथे, मन मा मोर समाये ।। कतका दिन ले आरूग राखॅव, मया चबेना होगे । काली के फूल डोहड़ी हा, फूल कैयना होगे । मन के दरपण तैं हा बइठे, करे करेजा चोरी । होरी हे होरी हे होरी ........ साटी बिछिया खिनवा मोरे, दिन रात गोहराये । ऑंखी के आंजे काजर हा, मोही ला भरमाये ।। कतका दिन के रद्दा जोहत, बेरा अइसन आये । राधा के बनवारी कान्हा, बसुरी आज बजाये ।। ये मोरे तैं करिया बिलवा, रंग मोर मुॅह गोरी । होरी हे होरी हे होरी......

सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक

बड़े आदमी कोन हे, सोचे के हे बात । बात धरे हे एक झन, एक सुने बिन जात । जात एक रद्दा अपन, दूसर अंते जाय । जाय नही अइसन डहर, मनखे जेन बनात । छत्तीसगढ़ी बोल हे, बोरे-बासी भात । भात हमन ला घात हे, हमर पेट भर जात ।। जात जात के खाव मत, तोर पिराही पेट । पेट भरे बर सोच मत, खा ले बासी भात ।।

दरत हवय छाती मा कोदो

दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । हमरे घर मा संगे रहिके, मुॅह ले फोरय लाई ।। कोड़त हावे घर के भिथिया, हाथ धरे ओ साबर । ऐही घर मा पले बढ़े हे, बैरी होगे काबर ।। बात परोसी के माने हे, घर मा कोड़े खाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । हम जेला तो आमा कहिथन, ओ हर कहिथे अमली । घात करे बर बइठे रहिथे, ओढ़े ओ हर कमली । जुझय नही ओ बैरी मेरा, घर मा करे लड़ाई  । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । अपने घर ला फोर खड़े हे, तभो कहय मैं बेटा । मुॅह मा ओखर आगी लागे, घर हा फसे चपेटा । करे हवय ये बारे आगी, बैरी के अगुवाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । बेटा ओ तो ओखर  आवय, ये घर जेन बसाये । काखर फांदा फस के वो हर, आगी इहां लगाये । दाई के अचरा छोड़े अब, माने ना वो दाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । दाई के आॅखी ले झरथे, झरर झरर अब पानी । सहत हवे अंतस मा पीरा , सुन सुन जहर जुबानी । देख सकव ता देखव बेटा, दाई तोरे अकुलाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई ।

झूमरत गावय फाग

परसा फूले खार मा, आमा मउरे बाग । देखत झूमय कोयली, छेड़े बसंत राग ।। महुॅवा माते राग मा, नाचय सरसो फूल । मनखे मनखे गांव मा, झूमरत गावय फाग ।।

चाह करे मा राह हे

हाथ गोड़ सब मारथे, रखे जिये के चाह । चाह करे मा राह हे, ले नदिया के थाह ।। थाह हार के हे कहां, जब मन जावय हार । हार हारथे चाह ले, चाहत मेटय दाह ।।

आवय हमला लाज

मनखे मनखे जोर लव, अपने दिल के साज । साज बाज अइसे गढ़व, होवय सबके काज ।। काज एक जुरमिल करव, गढ़व देश के मान । मान जाय मा देश के, आवय हमला लाज ।

नाचत गात मनावत होरी (सवैया)

नाचत गात मनावत होरी (सवैया) ढोलक मादर झांझ बजावत हाथ लमावत गावत फागे। मोहन ओ छलिया नट नागर रास रचावव रंग जमाके । आवव आवव भक्त बुलावत। गावत फाग उडावत रोरी । फागुन मा रसिया रस लावत नाचत गात मनावत होरी ।। हे सकलावत आवत जावय छांट निमार बनावत टोली । भांग धरे छलकावत जावत बांटत बांटत ओ हमजोली। रंगत संगत के दिखथे जब रंग लगाय करे मुॅह-जोरी छोट बड़े सब भेद भुलावत नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ धरे पिचका लइका मन रंग भरे अउ मारन लागे । आवय जावय जेन गलीन म ओहर तो मुॅह तोपत भागे । मारत हे पिचका मुॅह ऊपर ओ लइका मन हा बरजोरी  । आज बुरा मत मानव जी कहि नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ गुलाल धरे दउडावत नंनद देखत भागत भौजी । भागत देखत साजन आवय रंग मले मुॅह मा मन मौजी । रंगय साजन रंग म हाॅसत लागय ओ जस चांद चकोरी रंगय रंग दुनों इतरावत नाचत गात मनावत होरी ।।

दाेहा के मरम

कविता के हर शब्द मा, अनुशासन के बंद । आखर आखर के परख, गढ़थे सुघ्घर छंद ।। चार चरण दू डांड़ के, होथे दोहा छंद । तेरा ग्यारा होय यति, रच ले तै मतिमंद ।। विषम चरण के अंत मा, रगण नगण तो होय । तुक बंदी  सम चरण रख, अंत गुरू लघु होय ।। समुदर ला धर दोहनी, दोहा हा इतराय । अंतस बइठे जाय के, अपने रंग जमाय ।। बात बात मा बात ला, मनखे ला समझाय । दोहा अइसन छंद हे, जेला जन जन भाय ।। दोहा हिन्दी साहित्य के, बने हवय पहिचान । बीजक संत कबीर के, तुलसी मानस गान ।। छत्तीसगढ़ी मा घला, दोहा के हे मान । धनीधरम जी हे रचे, जाने जगत जहान ।। विप्र दलित मन हे रचे, रचत हवे बुधराम । अरूण निगग ला देख ले, रचत हवय अविराम  ।। बोली ले भासा गढ़ी, रखी सोच ला रोठ । शिल्प विधा मा हम रची, जुर मिल रचना पोठ ।। अनुसासन के पाठ ले, बनथे कोनो छंद । देख ताक के शब्द रख, बन जाही मकरंद ।। छोट बुद्धि तो मोर हे, करत हंवव परयास । चतुरा चतुरा बड़ हवय, लाही जेन उजास ।।

मया के रंग

लुहुर तुहुर मोरे मन होगे,तोरे बर रुझवाये । तोरे मुच मुच हँसना गोरी, मोला गजब सुहाये। बैइही बरन मोला लागे, सुन सुन भाखा तोरे । मया घोरे बोली हा तोरे, चिरे करेजा मोरे । कारी कारी चुन्दी तोरे, बादर बन के छाये । झाकत तोरे मुखड़ा गोरी, मोला बड़ भरमाये । आँखी आँखी म मया बोरे, अँखिया बाण चलाये । घायल हिरणीया मन मोरे, तड़प तड़प मर जाये ।। मोरे मन हा अंतस तोरे, बुड़े मया के दहरा । लहर लहर कतका लहराये, तोर मया के लहरा ।। तोर मया मा मन हा रंगे, जइसे दूध म पानी । तैं हर मोरे मन के राजा, मैं हर तोरे रानी ।।

नारी ले घर परिवार हे

//दोहा मुक्तक// 1. बड़ आंगा-भारू लगय, मनखे के संसार । पहिली नर भारी लगिन, अब तो लगथे नार ।। जेन सुवारी हा कहय, होथे ओही काम । जावर जीयर संग मा,बइठे अलगे डार । 2. बरगद हा छतनार हे, डारा पाना संग । गूॅथे माला फूल ले, मन मा भरे उमंग ।। लकड़ी गठरी पोठ हे, बंधे एके डोर । बसव एक परिवार मा, घोर मया के रंग ।। 3. नारी ले घर परिवार हे, नारी ले संसार । चाहे ओ उबार लय, के बोरय मझधार । नारी चाहय जोर लय, चाहय देवय टोर । बांध धरव ये गोठ ला, बेटी बहू हमार । 4. पोथी पतरा तैं पढ़े, पढ़े नही संस्कार । बने बनय कइसे तुहर, सास ससुर ससुरार ।। लइका बच्चा अउ धनी, अतके मा भूलाय । अइसन मा कइसे भला, बनही घर परिवार ।। 5. अलग अलग हे अंगरी, एक हाथ के तोर । तभो तोर ओ हाथ हे, राखे का तैं टोर ।। गुण अवगुण सब मा भरे, देखव सोच विचार । काबर मइके मा हवस, अपन धनी ला छोड़ ।। 6. पथरा मा मूर्ति गढ़व, जइसे तोरे सोच । साज सजावट कर बने, माथा कलगी खोच ।। जन्मजात तो पाय हव, हुनर गढ़े के झार । छिनी हथौड़ी हाथ धर, धीरे धीरे टोच ।।

मोर दूसर ब्लॉग