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संदेश

कतका झन देखे हें-

नाचा पेखन

चल जाबो देखन, नाचा पेखन, कतका सुघ्घर, होवत हे । जम्मो संगी मन, अब्बड़ बन ठन, हमन ल तो, जोहत हे ।। नाचत हे बढि़या, ओ नवगढि़या, परी हा मान, टोरत हे । जोकर के करतुत, हसाथे बहुत, सब्बो झन ला, मोहत हे ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

ये गोरी मोरे

ये गोरी मोरे, मुखड़ा तोरे, चंदा बानी, दमकत हे । जस फुलवा गुलाब, तन के रूआब, चारो कोती, गमकत हे ।। जब रेंगे बनके, तै हर मनके, गोड़ म पैरी, छनकत हे । सुन कोयल बोली, ये हमलोली, मोरे मनवा, बहकत हे ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

दोहा

1. आमा रस कस प्रेम हे, गोही कस हे बैर । गोही तै हर फेक दे, होही मनखे के खैर ।। 2. लालच अइसन हे बला, जेन परे पछताय । फसके मछरी गरी मा, अपन जाने गवाय ।। 3. अपन करम गति भोग बे, भोगे हे भगवान । बिंदा के ओ श्राप ले, बनगे सालिक राम ।। 4. करम बड़े के भाग हा, जोरव ऐखर  ताग । नगदी पइसा कस करम, कोठी जोरे  भाग ।। 5. लाश जरत तै देख के, का सोचे इंसान । ऐखर बारी हे आज गा, काली अपन ल जान ।। -रमेश

तांका

1.   झांक तो सही अपन अंतस ला फेर देखबे दुनिया के गलती कतका उथली हे । 2.   बारी बखरी खेत खार परिया घाट घठौन्धा कुॅंआ अऊ तरिया सरग कस गांव हे । 3.   हो जाथे मया बिना छांटे निमेरे काबर फेर खोजत हस जोही हाथ मा दिल हेरे ।

कोनो गांव नई जांव

हमर ममा गांव मा, होवत हे गा बिहाव । दाई अऊ बाई दुनो, कहत हे जाबो गांव ।। दाई कहे बाबू सुन, मोर ममा के नाती के । घात सुघ्घर आदत, का तोला बतांव ।। वो ही बाबू के बिहाव, होवत हे ग ना आज । मुंह झुंझूल ले जाबो, बाढ़ गे हे तांव ।। तोर सारी दुलौरीन, मोर ममा के ओ नोनी । घेरी घेरी फोन करे, भेजे मया ले बुलांव ।। मोटरा जोर मैं हर, करत हंव श्रृंगार । काल संझकेरहे ले, जाबो जोही ममा गांव ।। सियानीन मोटियारी, टूरा होवय के टूरी । सब्बो ला घाते भाथे, अपनेच ममा गांव ।। एके तारीक म हवे, दुनो कोती के बिहाव । सोच मा परे हवंव, काखर संग मैं जांव ।। दाई संग जाहूं मै ता, बाई ह बड़ रिसाही । गाल मुंह ल फुलेय, करही गा चांव चांव ।। बाई संग कहूं जाहूं, दाई रो रो देही गारी । ये टूरा रोगहा मन, डौकीच ला देथे भाव ।। बड़ मुश्किल हे यार, सुझत नई ये कुछु । काखर संग मैं जांव, काला का कहि मनांव ।। नानपन ले दाई के, घात मया पाय हंव । मन ले कहत हंव, दाई जिनगी के छांव ।। अब तो सुवारी बीना, जिनगी लागे बेमोल । जोही बीना जग सुन्ना, लगे जिनगी के दांव ।। छोड़ नई सकव मैं, दाई बाई दुनो ला तो । बि

मोर नोनी

खेलत घरघुन्दिया, गली खोर मोर नोनी । धुर्रा धुर्रा ले बनाय, घर चारो ओर नोनी ।। बना रंधनही खोली, आनी बानी तै सजाय । रांधे गढ़े के समान, जम्मा जोर जोर नोनी ।। माटी के दिया ह बने, तोर सगली भतली । खेल खेल म चुरय, साग भात तोर नोनी ।। सेकत चुपरत हे, लइका कस पुतरी । सजावत सवारत, चेंदरा के कोर नोनी ।। अक्ती के संझा बेरा, अंगना गाढ़े मड़वा । नेवता के चना दार, बांटे थोर थोर नोनी ।। पुतरा पुतरी के हे, आजे तो दाई बिहाव । दे हव ना टिकावन, कहे घोर घोर नोनी ।। कका ददा बबा घला, आवा ना तीर मा । दू बीजा चाऊर टिक, कहय गा तोर नोनी ।। माईलोगीन के बूता, ममता अऊ दुलार । नारीत्व के ये स्कूल मा, रोज पढ़े मोर नोनी

बनिहार

करय काम बनिहार हा, पसीना चूचवाय । अपन पेट ला वो भरय, दू पइसा म भुलाय ।। दू पइसा म भुलाय, अपन घर म खुश रहय रे । जग के चिंता छोड़, जगे बर वो जीयय रे ।। कइसे कहय ‘रमेश‘, रोज जीयय अऊ मरय । बिसार खुद के काम, रोज तोरे काम करय ।।

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