मोर मयारू गणेश
दोहा
सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर ।
पाँव परत हंँव तोर गा, विनती सुन ले मोर ।।
तोर शरण मा आया जे, ले श्रद्धा विश्वास ।
पूरा कर देथस सबो, उनखर जम्मो आस ।।
चौपाई
हे गौरा गौरी के लाला । हे प्रभु तैं हस दीन दयाला
सबले पहिली तोला सुमरन । तोरे गुण ला गा के झुमरन
बुद्धि तहीं हा सब ला देथस। दुख पीरा ला हर लेथस
तोरे जस ला वेदे गावय । भारी महिमा तोर बतावय
पहिली चक्कर तैं हा काटे । अपन ददा दाई के बांटे
तोर काम ले गदगद भोला । बना दिइस गा गणेश तोला
तोर नाम ले मुहरूत करथन । जीत खुशी ला ओली भरथन
काम-बुता सब सुग्घर होथे । हमरे बाधा मुँड़ धर रोथे
जइसन लम्बा सूड़े तोरे । लम्बा कर दव चिंतन मोरे
जइसन भारी पेटे तोरे । भारी कर दव विचार मोरे
भाथे गौरी दुलार तोला । ओइसने दव दुलार मोला
गुरूतुर मोदक भाये तोला । मीठ मीठ भाखा दे दव मोला
हे लंबोदर किरपा करदव । गलत सोच ला झट्टे हरदव
मनखे ला मनखे हम मानी । जगत जीव ला एके जानी
हे आखर के मोर देवता । मानव-मानव मोर नेवता
नाश करव प्रभु मोर कुमति के । अन्न-धन्न दौ देव सुमति के
अपने पुरखा अउ माटी के । अपने जंगल अउ घाटी के
धुर्रा माटी माथे पोतँव । अपने संस्कृति मा मैं सोचँव
नारद शारद जस ला गावय । सुन-सुन हमरे मन हरषावय
हे रिद्धी सिद्धी के दाता । अब दुख मेटव भाग्य विधाता
दोहा
भगत शरण जब-जब परय , मेटय सकल कलेश ।
सुख देवय पीरा हरय, मोर मयारू गणेश ।।
दोहा
सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर ।
पाँव परत हंँव तोर गा, विनती सुन ले मोर ।।
तोर शरण मा आया जे, ले श्रद्धा विश्वास ।
पूरा कर देथस सबो, उनखर जम्मो आस ।।
चौपाई
हे गौरा गौरी के लाला । हे प्रभु तैं हस दीन दयाला
सबले पहिली तोला सुमरन । तोरे गुण ला गा के झुमरन
बुद्धि तहीं हा सब ला देथस। दुख पीरा ला हर लेथस
तोरे जस ला वेदे गावय । भारी महिमा तोर बतावय
पहिली चक्कर तैं हा काटे । अपन ददा दाई के बांटे
तोर काम ले गदगद भोला । बना दिइस गा गणेश तोला
तोर नाम ले मुहरूत करथन । जीत खुशी ला ओली भरथन
काम-बुता सब सुग्घर होथे । हमरे बाधा मुँड़ धर रोथे
जइसन लम्बा सूड़े तोरे । लम्बा कर दव चिंतन मोरे
जइसन भारी पेटे तोरे । भारी कर दव विचार मोरे
भाथे गौरी दुलार तोला । ओइसने दव दुलार मोला
गुरूतुर मोदक भाये तोला । मीठ मीठ भाखा दे दव मोला
हे लंबोदर किरपा करदव । गलत सोच ला झट्टे हरदव
मनखे ला मनखे हम मानी । जगत जीव ला एके जानी
हे आखर के मोर देवता । मानव-मानव मोर नेवता
नाश करव प्रभु मोर कुमति के । अन्न-धन्न दौ देव सुमति के
अपने पुरखा अउ माटी के । अपने जंगल अउ घाटी के
धुर्रा माटी माथे पोतँव । अपने संस्कृति मा मैं सोचँव
नारद शारद जस ला गावय । सुन-सुन हमरे मन हरषावय
हे रिद्धी सिद्धी के दाता । अब दुख मेटव भाग्य विधाता
दोहा
भगत शरण जब-जब परय , मेटय सकल कलेश ।
सुख देवय पीरा हरय, मोर मयारू गणेश ।।
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