बिन काम-बुता हम तो मरबो
(दुर्मिल सवैया)
चल रे चल गा चल ना चल जी,
कुछु काम-बुता हम तो करबो ।
पढ़ आखर चार भला दुनिया,
हम काम बिना कइसे तरबो ।
बइठे-बइठे मिलही कुछु का ?
पइसा बिन इज्जत का भरबो ।
पढ़ई-लिखई सब फोकट हे,
बिन काम-बुता हम तो मरबो ।।
पढ़ई-लिखई जरूरी जग मा,
पर हे बिरथा सब काम बिना ।
पढ़ के हम आखिर का करबो
बिन काम-बुता अउ दाम बिना ।।
कुछु काम न आवय रे हमला
अइसे पढ़ई तन जान बिना ।
अँखिया अब खोल निटोर बने,
धन हे जब आखर ज्ञान बिना ।।
-रमेश चौहान
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