हे मइया महिमा तुहरे जग चार जुगे त्रिय काल समाये । वो तइहा अउ आज घला सब भक्त मिले तुहरे जस गाये । पार न पावय देवन सृष्टि म नेति कहे सब माथ नवाये । ये मनखे कइसे तुइरे जस फेर भला कुछु बात बताये ।। कोन रचे जग सृष्टिन सुंदर, लालन पालन कोन करे हे । कोन इहां उपजावय जीवन, काल धुरी भुज कोन धरे हे ।। जेखर ले उपजे विधि शंकर, जेन रमापति ला उपजाये । आदि अनंत न जेखर जानन, शक्ति उही हर काय कहाये ।। शैल सुता ह रचे जग सुंदर, लालन पालन गौरि करे हे । आदि उमा उपजावय जीवन, काल धुरी भुज कालि धरे हे ।। आदिच शक्ति ह तो विधि शंकर राम रमापति ला उपजाये । आदि अनंत पता नइ जेखर, शक्ति उही हर मातु कहाये ।। -रमेश चौहान मिश्रापारा, नवागढ जिला-बेमेतरा
शब्दों की सादगी में अनंत आकाश रचने वाले साहित्यकार
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विनोद कुमार शुक्ल (1 जनवरी 1937 – 23 दिसंबर 2025) हिंदी साहित्य के आकाश में
एक शांत, उजली और अत्यंत मानवीय रोशनी बुझ गई।छत्तीसगढ़ के गौरव, प्रसिद्ध
कवि, कथ...
14 घंटे पहले