टेक्टर चाही खेत बर, झट्टे होही काम । नांगर बइला छोड़ दे, कहत हवय विज्ञान । कहत हवय विज्ञान, धरम प्रगती के बाधक । देवय कोन जवाब, मौन हे धरमी साधक । पूछत हवे "रमेश", गाय अब केती जाही । बइला ला सब छोड़, कहय जब टेक्टर चाही ।। -रमेश चौहान
भरत बुलन्दी की कविताएँ
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भाई और खाई दीवारों पर तस्वीरों में भाई है।दिल में लेकिन लंबी गहरी खाई है।।
बँटवारे में हमने सब कुछ बाँट लिया ।आखिर किसके हिस्से बूढ़ी माईं है।। उसकी
नैया…
6 दिन पहले