तर्क ज्ञान विज्ञान कसौटी, पढ़ई-लिखई के जर आवय ।
काबर कइसे प्रश्न खड़ा हो, जिज्ञासा ला हमर बढ़ावय ।।
रटे-रूटाये तोता जइसे, अक्कल ला ठेंगा देखावय ।
डिग्री-डिग्री के पोथा धर के, ज्ञानी-मानी खुदे कहावय ।।
जिहां तर्क के जरूरत होथे, फांदे ना अक्कल के नांगर ।
आस्था ला टोरे-भांजे बर, अपन चलावत रहिथे जांगर ।।
ज्ञान परे आखर पोथी ले, कतको अनपढ़ ज्ञानी हावय ।
सृष्टि नियम विज्ञान खोजथे, ललक-सनक ला जेने भावय ।।
सुख बीजा विज्ञान खोचथे, भौतिक सुविधा ला सिरजावय ।
खुद करके देखय अउ जानय, वोही हा विज्ञान कहावय ।।
सृष्टि रीत जे जानय मानय, मानवता जे हर अपनावय ।
अंतस सुख के जे बीजा बोवय, वो ज्ञानी आदमी कहावय ।।
एक ध्येय ज्ञानी विज्ञानी के, मनखे जीवन डगर बहारय ।
एक लक्ष्य अध्यात्म धर्म के, मनखे मन के सोच सवारय ।।
अपन सुवारथ लाग-लपेटा, फेर कहां ले मनखे पावय ।
अपने घर परिवार बिसारे, अपने भर ला कइसे भावय ।।
काबर कइसे प्रश्न खड़ा हो, जिज्ञासा ला हमर बढ़ावय ।।
रटे-रूटाये तोता जइसे, अक्कल ला ठेंगा देखावय ।
डिग्री-डिग्री के पोथा धर के, ज्ञानी-मानी खुदे कहावय ।।
जिहां तर्क के जरूरत होथे, फांदे ना अक्कल के नांगर ।
आस्था ला टोरे-भांजे बर, अपन चलावत रहिथे जांगर ।।
ज्ञान परे आखर पोथी ले, कतको अनपढ़ ज्ञानी हावय ।
सृष्टि नियम विज्ञान खोजथे, ललक-सनक ला जेने भावय ।।
सुख बीजा विज्ञान खोचथे, भौतिक सुविधा ला सिरजावय ।
खुद करके देखय अउ जानय, वोही हा विज्ञान कहावय ।।
सृष्टि रीत जे जानय मानय, मानवता जे हर अपनावय ।
अंतस सुख के जे बीजा बोवय, वो ज्ञानी आदमी कहावय ।।
एक ध्येय ज्ञानी विज्ञानी के, मनखे जीवन डगर बहारय ।
एक लक्ष्य अध्यात्म धर्म के, मनखे मन के सोच सवारय ।।
अपन सुवारथ लाग-लपेटा, फेर कहां ले मनखे पावय ।
अपने घर परिवार बिसारे, अपने भर ला कइसे भावय ।।
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