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संदेश

कतका झन देखे हें-

लोकतंत्र के देवता

रोजी-रोटी के प्रश्न के, मिलय न एक जवाब । भिखमंगा तो जान के, मुफत बांटथे जनाब ।। फोकट अउ ये छूट के, चलन करय सरकार । जेला देखव तेन हा, बोहावत हे लार । सिरतुन जेन गरीब हे, जानय ना कुछु ...

छत्तीसगढ़ी ला पोठ बनाव

भाषा अपन बिगाड़ मत, देखा- शे खी आन कहाये । देवनागरी के सबो,  बावन अक्षर घात सुहाये ।। छत्तीसगढ़ी  मा भरव,  सबो वर्ण ले शब्द बनाए । कदर बाढ़ही एखरे , तत्सम आखर घला चलाए ।। पढ़े- लि...

कभू आय कभू तो जाय

कभू आय कभू तो जाय, सुख बादर जेन कहाये। सदा रहय नहीं गा साथ, दुख जतका घाम जनाये ।। बने हवय इहां दिन रात, संघरा कहां टिक पाये । बड़े होय भले ओ रात, दिन पक्का फेर सुहाये ।।

कती खोजी

कती जाई कती पाई, खुशी के ओ ठिकाना ला । कती खोजी गँवाये ओ, हँसे के रे बहाना ला ।। फिकर संसो जिये के अब, नदागे लइकुसी बेरा । बुता खोजी हँसी खोजी, चलय कइसे नवा डेरा ।।

ये गाँव ए

ये गाँव ए भल ठाँव ए,  इंसानियत पलथे जिहां। हर राग मा अउ गीत मा, स्वर प्रेम के मिलथे इहां  ।। हे आदमी बर आदमी, धर हाथ ला सब संग मा । मनखे जियत तो हे जिहां, मिलके धरा के रंग मा । संतोष के अउ धैर्य के, ये पाठशाला  आय गा । मन शांति के तन कांति के, रुखवा जिहां लहराय गा ।। पइसा भले ना हाथ मा, जिनगी तभो धनवान हे । खेती किसानी के बुते, हर आदमी भगवान हे ।।

छोड़ शांति के खादी

घात प्रश्न तो आज खड़े हे, कोन देश ला जोरे । भार भरोसा जेखर होथे, ओही हमला टोरे ।। नेता-नेता बैरी दिखथे, आगी जेन लगाथे । सेना के जे गलती देखे, आतंकी ला भाथे ।। काला घिनहा-बने कहँव मैं, एके चट्टा-बट्टा । सत्ता धरके दिखे जोजवा, पाछू हट्टा-कट्टा ।। देश पृथ्ककारी के येही, रक्षा काबर करथे । बैरी मन के देख-रेख मा, हमरे पइसा भरथे ।। देश पृथ्ककारी हे जेने, ओला येही पोसे । दोष अपन तो देख सकय ना, दूसर भर ला कोसे ।। थांघा आवय आतंकी मन, पेड़ अलगाववादी । जड़ ले काटव अइसन रूखवा, छोड़ शांति के खादी ।।

जतेक हे अलगाववादी

जतेक हे अलगाववादी, देश अउ कश्मीर मा । सबो ल पोषत कोन हे गा, सोच तो तैं धीर मा । हमार ले तो टेक्स लेके, पेट ओखर बोजथे । नकाम सब सरकार लगथे, जेन ओला तो पोषथे ।।

एक जग के सार येही

राम सीता राम सीता, राम सीता राम राम । श्याम राधा श्याम राधा, श्याम राधा श्याम श्याम ।। नाम येही जाप कर ले, मोर मनुवा बात मान । एक जग के सार येही, नाम येही सार जान ।। -रमेश चौहान

अंग्रेजी के जरूरत कतका

अंग्रेजी के जरूरत कतका, थोकिन करव विचार । भाषा चाही के माध्यम गा, का हे येखर सार ।। मानत जानत हे दुनिया हा, अपने भाषा नेक । दूसर भाषा बाधा जइसे,  रद्दा राखे छेक ।। हर विचार हा अपने भाषा, होथे बड़का पोठ । अपन सोच हा दूसर भाषा, लगथे अड़बड़ रोठ ।। अपने भाषा के माध्यम मा, पढ़ई-लिखई  नेक । मूल सोच ला दूसर भाषा, राखे रहिथे छेक ।। दुनिया के भाषा अंग्रेजी, आथे बहुथे काम । भाषा जइसे येला सीखव, पावव जग मा नाम ।। अंग्रेजी माध्यम के चक्कर, हमला करे गुलाम । अपने भाषा अउ विचार मा, काबर कसे लगाम ।।

देखव शहर के गाँव मा

देखव शहर के गाँव मा, एके दिखे हे चाल ।। परदेश कस तो देश हा, कइसे कहँव मैं हाल।। अपने अपन मा हे मगन, बड़का खुदे ला मान । मतलब कहां हे आन ले, अपने अपन ला तान ।। फेशन धरे हे आन के,  अपने चलन ला टार । अपने खुशी ला देखथे, परिवार ला तो मार ।। दाई ददा बस पोसथे, लइका अपन सिरजाय । बड़का बढ़े जब बेटवा, दाई ददा बिसराय ।। बिगडे़ नई हे कुछु अभी, अपने चलन धर हाथ । जुन्ना अपन संस्कार धर, परिवार के धर साथ ।। भर दे खुशी ला आन के, पाबे खुशी तैं लाख । एही हमर संस्कार हे, एही हमर हे साख ।। -रमेश चौहान

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