कभू आय कभू तो जाय, सुख बादर जेन कहाये।
सदा रहय नहीं गा साथ, दुख जतका घाम जनाये ।।
बने हवय इहां दिन रात, संघरा कहां टिक पाये ।
बड़े होय भले ओ रात, दिन पक्का फेर सुहाये ।।
छत्तीसगढ़ी भाषा अउ छत्तीसगढ़ के धरोहर ल समर्पित रमेशकुमार सिंह चौहान के छत्तीसगढ़ी छंद कविता के कोठी ( rkdevendra.blogspot.com) छत्तीसगढ़ी म छंद विधा ल प्रोत्साहित करे बर बनाए गए हे । इहॉं आप मात्रिक छंद दोहा, चौपाई आदि और वार्णिक छंद के संगेसंग गजल, तुकांत अउ अतुकांत कविता पढ़ सकत हंव ।
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