रहत-रहत हमला, परगे आदत, हरदम रहत गुलाम । रहिस हमर जीवन, काम-बुता सब, मुगल आंग्ल के नाम ।। बड़ अचरज लगथे, सुनत-गुनत सब, सोच आन के लाद । कहिथन अब हम सब, होगे हन गा, तन मन ले आजाद ।।
पुस्तक समीक्षा: ”कर्ण हूॅुं मैं” लेखक-श्री पवन प्रेमी जी, समीक्षक-डुमन लाल
ध्रुव
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भावों के अनुभव संसार को, यथार्थ के अन्तश्चेतना काव्य संग्रह – कर्ण हूं मैं
– डुमन लाल ध्रुव राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारी एवं साहित्य के समदर्शी कवि
श्री पव...
3 दिन पहले