सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

पहिली मुरकेटव, इखर टोटा

पहिली मुरकेटव, इखर टोटा (द्वितीय झूलना दंडक छंद) एक खड़े बाहिर, एक अड़े भीतर, बैरी दूनों हे, देष के गा । बाहिर ले जादा, भीतर के बैरी, बैरी ले बैरी, देष के गा ।। बाहिर ला छोड़व, भीतर ला देखव, पहिली मुरकेटव, इखर टोटा । बाहिर के का हे, भीतर ला देखत, पटाटोर जाही, धरत लोटा ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

मया बिना ये जिनगी कइसे

मया बिना ये जिनगी कइसे होथे, हवा बिना जइसे देह काया । रंग मया के एक कहां हे संगी, इंद्रधनुष जइसे होय माया ।। मया ददा-दाई के पहिली जाने, भाई-बहिनी घला पहिचाने । संगी मेरा तैं हर करे मितानी, तभो एकझन ला अपन जाने ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

टोकब न भाये

टोकब न भाये (करखा दंडक छंद) काला कहिबे, का अउ कइसे कहिबे, आघू आके, चिन्हउ कहाये । येही डर मा, आँखी-कान ल मूंदे, लोगन कहिथे, टोकब न भाये ।। भले खपत हे, मनखे चारों कोती, बेजा कब्जा, मनभर सकेले । नियम-धियम ला, अपने खुद के इज्जत, धरम-करम ला, घुरवा धकेले ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

कर मान बने धरती के

कर मान बने धरती के (खरारी छंद) कर मान बने, धरती के, देश प्रेम ला, निज धर्म बनाये । रख मान बने, धरती के, जइसे खुद ला, सम्मान सुहाये ।। उपहास करे, काबर तैं, अपन देश के, पहिचान भुलाये । जब मान मरे, मनखे के, जिंदा रहिके, वो लाश कहाये ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

सबो चीज के अपने गुण-धर्म

सबो चीज के अपने गुण धर्म, एक पहिचान ओखरे होथे । कोनो पातर कोनो रोठ, पोठ कोनो हा गुजगुज होथे । कोनो सिठ्ठा कोनो मीठ, करू कानो हा चुरपुर होथे । धरम-करम के येही मर्म, धर्म अपने तो अपने होथे ।। सबो चीज के अपने गुण दोश, दोष भर कोनो काबर देखे । गुण दूसर के तैंहर देख, दोष ला अपने रखत समेखे ।। मनखे के मनखेपन धर्म, सबो मनखे ला एके जाने । जीव दया ला अंतस राख, सबो प्राणी ला एके माने ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

करम बडे जग मा

करम बडे जग मा (दुर्मिल छंद) करम बड़े जग मा, हर पग-पग मा, अपन करम गति ला पाबे । कोने का करही, पेटे भरही, जभे हाथ धर के खाबे ।। काबर तैं बइठे, अइठे-अइठे, काम-बुता सब ला चाही । फोकट मा मांगे, जांगर टांगे, ता कोने हम ला भाही ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान यहां भी देख सकत हव

खेत-खार म जहर-महुरा

खेत-खार म जहर-महुरा (दंडकला छंद) कतका तैं डारे, बिना बिचारे, खेत-खार म जहर-महुरा । अपने मा खोये, तैं हर बोये, धान-पान य चना-तिवरा ।। मरत हवय निशदिन, चिरई-चिरगुन, रोगे-राई मा मनखे । मनखे सब जानय, तभो न मानय, महुरा ला डारय तनके ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

बर-पीपर के तुमा-कोहड़ा

बर-पीपर के तुमा-कोहड़ा (समान सवैया छंद) बर-पीपर के ओ रूख राई, धीरे-धरे तो बाढ़त जावय । बाढ़त-बाढ़त ठाड़ खड़ा हो, कई बरस ले तब इतरावय ।। तुमा-कोहड़ा नार-बियारे, देखत-देखत गहुदत  जावय । चारे महिना बड़ इतराये, खुद-बा-खुद ओ फेर सुखावय । -रमेशकुमार सिंह चौहान

अंगाकर रोटी

अंगाकर रोटी कड़क, सबला गजब मिठाय । घी-शक्कर के संग मा, सबला घात सुहाय ।। सबला घात सुहाय, ससनभर के सब खाथे । चटनी कूर अथान, संग मा घला सुहाथे ।। तहुँहर खाव ‘रमेश’, छोड़ के सब मसमोटी । जांगर करथे काम, खात अंगाकर रोटी ।। आघू पढ़व...

सुन रे भोला

बनव-बनव मनखे, सबझन तनके, माटी कस सनके, बाँह धरे । खुद ला पहिचानव, खुद ला मानव, खुद ला सानव, एक करे ।। ईश्वर के जाये, ये तन पाये, तभो भुलाये, फेर परे । तैं अलग मानथस, खुद ल जानथस, घात तानथस, अलग खड़े ।। आघू पढ़व

मोर दूसर ब्लॉग

  • भरत बुलन्दी की कविताएँ - भाई और खाई दीवारों पर तस्वीरों में भाई है।दिल में लेकिन लंबी गहरी खाई है।। बँटवारे में हमने सब कुछ बाँट लिया ।आखिर किसके हिस्से बूढ़ी माईं है।। उसकी नैया…
    14 घंटे पहले
  • अटल बिहारी वाजपेई - अटल अटल है आपका, ध्रुव तरा सा नाम । बोल रहा हर गांव में, पहुंच सड़क का काम ।। जोड़ दिए हर गांव को, मुख्य सड़क के साथ। गांव शहर से जब जुड़ा, कारज आया हाथ ।...
    1 वर्ष पहले
  • पूर्वोत्तर भारत का महत्व - पूर्वोत्तर भारत देश के पूर्वोत्तर भाग में स्थित है। यह आठ राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा से बना है। ...
    2 वर्ष पहले
  • परिवार का अस्तित्व - परिवार का अस्तित्व हम बाल्यकाल से पढ़ते आ रहे हैं की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं और समाज का न्यूनतम इकाई परिवार है । जब हम यह कहते हैं कि मनुष्य ...
    5 वर्ष पहले
  • चार बेटा राम के कौडी के ना काम के - चार बेटा राम के कौडी के ना काम के छोइहा नरवा के दूनों कोती दू ठन पारा नरवरगढ़ के । बुड़ती म जुन्ना पारा अउ उत्ती मा नवा पारा । जुन्नापारा मा गाँव के जुन...
    10 वर्ष पहले