पहिली मुरकेटव, इखर टोटा (द्वितीय झूलना दंडक छंद) एक खड़े बाहिर, एक अड़े भीतर, बैरी दूनों हे, देष के गा । बाहिर ले जादा, भीतर के बैरी, बैरी ले बैरी, देष के गा ।। बाहिर ला छोड़व, भीतर ला देखव, पहिली मुरकेटव, इखर टोटा । बाहिर के का हे, भीतर ला देखत, पटाटोर जाही, धरत लोटा ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
2 घंटे पहले