सबो चीज के अपने गुण धर्म, एक पहिचान ओखरे होथे ।
कोनो पातर कोनो रोठ, पोठ कोनो हा गुजगुज होथे ।
कोनो सिठ्ठा कोनो मीठ, करू कानो हा चुरपुर होथे ।
धरम-करम के येही मर्म, धर्म अपने तो अपने होथे ।।
सबो चीज के अपने गुण दोश, दोष भर कोनो काबर देखे ।
गुण दूसर के तैंहर देख, दोष ला अपने रखत समेखे ।।
मनखे के मनखेपन धर्म, सबो मनखे ला एके जाने ।
जीव दया ला अंतस राख, सबो प्राणी ला एके माने ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
कोनो पातर कोनो रोठ, पोठ कोनो हा गुजगुज होथे ।
कोनो सिठ्ठा कोनो मीठ, करू कानो हा चुरपुर होथे ।
धरम-करम के येही मर्म, धर्म अपने तो अपने होथे ।।
सबो चीज के अपने गुण दोश, दोष भर कोनो काबर देखे ।
गुण दूसर के तैंहर देख, दोष ला अपने रखत समेखे ।।
मनखे के मनखेपन धर्म, सबो मनखे ला एके जाने ।
जीव दया ला अंतस राख, सबो प्राणी ला एके माने ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें