चित्र गुगल से साभार /तुकबंदी/ भाईदूज के दिन , मइके जाहूँ कहिके बाई बिबतियाये रहिस तिहार-बार के लरब ले झूकब बने अइसे सियानमन सिखाये रहिस जब मैं पहुँचेवँ ससुरार, गाँव मातर मा बउराये रहिस । घर मोहाटी देखेंवँ ऊहाँ सारा के सारा आये रहिस । भाईदूज के कलेवा झड़के, माथा मा चंदन-चोवा लगाये रहिस येहूँ जाके अपन भाई के पूजा कर दू-चारठन रसगुल्ला खवाय रहिस आज कहत हे भाई मोला सौ रुपया देइस अउ अपन सारा बर पेंट-कुरथा लाये रहिस -रमेश चौहान
लघु व्यंग्य आलेख: चित्र अथवा फोटो की सार्थकता
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प्रेम कहें, आकर्षण कहें या मोहित हो जाना कहें — आखिर यह होता क्यों है?महान
कवि कालिदास की नाट्य रचना ‘मालविकाग्निमित्र’ की कथा पढ़ते हुए मन में यह
विचार उत...
16 घंटे पहले