गजल- गाँव का कम हे शहर ले (बहर-2122 2122) गाँव का कम हे शहर ले देख ले चारों डहर ले ऊँहा के सुविधा इँहो हे आँनलाइन के पहर ले हे गली पक्की सड़क हा तैं हा बहिरी धर बहर ले ये कलेचुप तो अलग हे शोरगुल के ओ कहर ले खेत हरियर खार हरियर बचे हे करिया जहर ले ऊँचपुर कुरिया तने हे देख के तैं हा ठहर ले -रमेश चौहान
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
-
मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
1 हफ़्ते पहले