जांगर टोर-जेन हा, खून पसीना बहाये, ओही मनखे के संगी, नाम मजदूर हे । रिरि-रिरि दर-दर, दू पइसा पाये बर ओ भटका खायेबर, आज मजबूर हे । अपन गाँव गली छोड़, अपने ले मुँह मोड़ जाके परदेश बसे, अपने ले दूर हे । सुख-दुख मा लहुटे, फेर शहर पहुटे हमर बनिहार के, एहिच दस्तूर हे ।। कोरोना माहामारी के, मार पेट मा सहिके का करय बिचारा, गाँव कोती आय हे । करे बर बुता नहीं, खाये बर कुछु नहीं डेरा-डंडी छोड़-छाड, दरद देखाय हे । नेता हल्ला-गुल्ला कर, अपने रोटी सेकय दूसर के पीरा मा, राजनीति भाय हे । येखर-वोखर पाला, सरकार गेंद फेकत अपने पूछी ल संगी, खुदे सहराय हे । -रमेश चौहान
“छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के उपरांत प्रकाशित पद्य साहित्य: एक शोधपरक अध्ययन”
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-रमेश चौहान छत्तीसगढ़ राज्य का गठन: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य 1 नवंबर 2000 को
छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित
किया गया...
11 घंटे पहले