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संदेश

कतका झन देखे हें-

राउत दोहा बर दोहा-

तुलसी चौरा अंगना, पीपर तरिया पार । लहर लहर खेती करय, अइसन गांव हमार ।। गोबर खातू डार ले, खेती होही पोठ । लइका बच्चा मन घला, करही तोरे गोठ ।। गउचर परिया छोड़ दे, खड़े रहन दे पेड़ । चारा चरही ससन भर, गाय पठरू अउ भेड़ ।। गली खोर अउ अंगना, राखव लीप बहार । रहिही चंगा देह हा, होय नही बीमार  ।। मोटर गाड़ी के धुॅंवा, करय हाल बेहाल । रूख राई मन हे कहां, जंगल हे बदहाल ।। -रमेश चौहान

देवारी दोहा- देवारी के आड़ मा

दोहा चिट-पट  दूनों संग मा, सिक्का के दू छोर । देवारी के आड़ मा, दिखे जुआ के जोर ।। डर हे छुछवा होय के, मनखे तन ला पाय । लक्ष्मी ला परघाय के, पइसा हार गवाय ।। कोन नई हे बेवड़ा, जेती देख बिजार। सुख दुख ह बहाना हवय, रोज लगे बाजार ।। कहत सुनत तो हे सबो, माने कोने बात । सबो बात खुद जानथे, करय तभो खुद घात ।। -रमेश चौहान

अइसे दीया बार

अपने मन के कोनहा, अइसे दीया बार । रिगबिग रिगबिग तो दिखय, तोरे अवगुण झार ।। अपन कमी ला जान के, काही करव उपाय । बाचय मत एको अकन, मन मा तोरे समाय ।। देवारी दीया हाथ धर, अवगुण ला तैं मार । अपने मन के कोनहा... हमरे सुधरे मा जगत, सुधरय पक्का जान । छोड़ गरब गुमान अपन, छोड़ अपन अभिमान ।। अपन मया के बंधना, बांधव जी संसार ।। अपने मन के कोनहा... तोरे कस तो आन हे, सुघ्घर के इंसान । ना कोनो छोटे बड़े, ना कोनो हैवान ।। हवय भुले भटके भले, ओला तैं सम्हार । अपने मन के कोनहा... जाति पाति अउ पंथ के, कर देबो अब अंत । मनखे  हा मनखे रहय, मन से होबो संत ।। राम राज के कल्पना, करबो हम साकार । अपने मन के कोनहा...

जय जय हे धनवंतरी

जय जय हे धनवंतरी, दव हमला वरदान । स्वस्थ रहय तन मन हमर, स्वस्थ रहय सम्मान ।। धनतेरस के ये परब, आय जनम दिन तोर । हाथ जोड़ परनाम हे, विनती सुन ले मोर ।। भौतिकता के फेर मा, हम तोला बिसराय । जड़ी बुटी ला छोड़ के, धन के परब बनाय ।। हवय घोर गलती हमर, धरत हवन हम कान । आसो ले अब हर बरस, करबो तोरे मान ।। साफ सफाई राखबो, हम अपने घर द्वार । रखिहंव हमरे ध्यान तुम, होई मत बीमार ।।

दीया के दरद

माटी दीया हा कहय, काखर मेरा जांव । कोनो फटकय ना इहां, काला दरद बतांव ।   खाथें मोरे अन्न ला, सोथे मोरे छांव । मोरे कोरा छोड़ के, कहां करे हे ठांव ।। दीया बाती हा हवय, जस पानी मा मीन । रिगबिग ले बिजली बरे, फुटे फटाका चीन ।। पढ़े लिखे लइका इहां, बइठे आलू छील । काम करय ना चीन कस, देखत रहिथे झील ।। दर दर मांगय नौकरी, कागज ला देखाय । काम बुता जानय नही, कोने हुनर बताय ।। स्वाभिमान हा कति सुते, देश प्रेम बिसराय । माटी दीया बार लव, अपने मान जगाय ।।

देवारी

चिरई चिरगुन कस चहकय लइका । पाके आमा कस गमकय लइका । आगे    आगे      देवारी       आगे, कहि के बिजली कस दमकय लइका । खोर अंगना मा रंगोली पुरय लइका । ले सखी सहेली देखे बर जुरय लइका । रंग रंग के हे रंगोली सुघर अतका, देख फूल कस भवरा बन घुरय लइका ।। दीया म बाती ला बोरय लइका । बाती म आगी ला जोरय लइका ।। देवारी के अंजोरे बगरावय, देखव फटाका ला फोरय लइका । खोरे मा जब सिगबिग सिगबिग आगे लइका । चंदैनी कस रिगबिग रिगबिग छागे लइका । ऐती ओती चारो कोती कूदत नाचत, मुचमुच हासत सौंहे देवारी लागे लइका ।

दू ठन मुक्तक

1 गजल शेर के घला नियम होथे । लिखे बोले मा जिहां संयम होथे ।। रदिफ काफिया बिना जाने कतको गजलकार के इहां नजम होथे । 2 मन के पीरा हरय कोन । ठउरे ओखर भरय कोन ।। वो हर चलदिस जगत छोड़ । रहि के जींदा मरय कोन ।।

चुप हे ता सब कुछ बने

चुप हे ता सब कुछ बने, मुॅह खोलत बेकार । मनखे हिन्दूस्थान के, कबतक रहय गवार ।। सहत रहिन ता सब बने, जागे मा हे बेकार । का काठा अउ का पसर, मुठ्ठी बोलय झार ।। रहय दूध मा जल मिले, कहां हवय परहेज । पानी पानी दूध मा, दूध रहय निस्तेज ।। ओखर मैना पोसवा, बोलय ओखर गोठ । तोर खीर पातर हवय, ओखर नून ह पोठ ।। करिया कउॅंवा कोइली, दिखथे दूनो एक । बिन बोले गा ऊंखरे, काला कहि हम नेक ।।

आगे देवारी

आगे देवारी, हमर दुवारी, कर तइयारी, जोश भरे । जब सॉफ-सफाई, पाथे दाई, सॅउहे आथे, खुशी धरे ।। ये यचरा-कचरा, घुरवा डबरा, फेकव संगी, तुमन बने । घर-कुरिया पोतव, सुग्‍घर सोचव,  दाई आी, बने ठने।।

मँहगाई म देवारी कइसेे मनावँव

कहां कहां जावंव, कइसे लावंव, दीया बाती, तेल भरे । देख मँहगाई, कइसन भाई, जियरा छाती, मोर जरे ।। आसो देवारी, मोरे दुवारी, कइसे आही, सोच भरे । लइका का जानय, कइसे मानय, मँइगाई मा, ददा मरे ।।

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