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संदेश

कतका झन देखे हें-

ददरिया- "मोरे गाँव मा"

दुवारी मा चौरा, चौरा म घर चातर होगे साकुर, अब धंधा के मर । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा गली ला छेके, मन भर के लइका खेले नई सकयं, अब बने तन के । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा खेत तीर परिया, परिया तीर खेत खेत खेते हवय, परिया ला तो देख । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा नदिया के पीरा, सुनय अब कोन नदिया के पैरी, काबर होगे मोन । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा बस्ती मा तरिया, तरिया मा बस्ती लइका तउरय कहाँ, अब अपने मस्ती । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा गाय बर चरिया, चरिया बर गाय कोठा होगे सुन्ना, बछरू नई नरियाय । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा -रमेश चौहान

गणेश चालीसा

-दोहा-  सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर ।  परथ हवं मैं पांव गा, विनती सुन ले मोर ।।  जय गणपति गणराज जय, जय गौरी के लाल ।  बाधा मेटनहार तैं, हे प्रभु दीनदयाल ।।  चौपाई   हे गौरा-गौरी के लाला । हे प्रभू तैं दीन दयाला  सबले पहिली तोला सुमरँव । तोरे गुण ला गा के झुमरँव  तही बुद्धि के देवइया प्रभु । तही विघन के मेटइया प्रभु  तोरे महिमा दुनिया गावय । तोरे जस ला वेद सुनावय  देह रूप गुणगान बखानय । तोर पॉंव मा मुड़ी नवावय  चार हाथ तो तोर सुहावय । हाथी जइसे मुड़ हा भावय  मुड़े सूंड़ मा लड्डू खाथस । लइका मन ला खूबे भाथस  सूपा जइसे कान हलावस । सबला तैं हा अपन बनावस  चाकर माथा चंदन सोहय । एक दांत हा मन ला मोहय  मुड़ी मुकुट के साज सजे हे । हीरा-मोती घात मजे हे  भारी-भरकम पेट जनाथे । हाथ जोड़ सब देव मनाथे  तोर जनम के कथा अचंभा ।अपन देह ले गढ़ जगदम्‍बा  सुघर रूप अउ देके चोला । अपन शक्ति सब देवय तोला  कहय दुवारी पहरा देबे । कोनो आवय डंडा लेबे  गौरी तोरे हे महतारी । करत रहे जेखर रखवारी  देवन आवय तोला जांचे । तोरे ले एको ना बाचे  तोर संग सब हारत जावय । आखिर मा शिव शंकर आवय  होवन लागे घोर लड़ाई । करय सब

जब ले आए कोरोना (कुकुभ छंद)

चाल बदल गे ढाल बदल गे, जब ले आए कोरोना । काम बंद हे दाम बंद हे, परगे हे  हमला रोना ।। काम-बुता के लाले परगे, कइसे अब होय गुजारा । कतका  हम डर्रावत रहिबो, परय न पेट म जब चारा । रोग बड़े हे के पेट बड़े, संसो  हे गा बड़ भारी ।  कोरोनो-कोरोना चिहरत, कभू मिटय न अंधियारी ।। घर मा घुसरे-घुसरे संगी,  दू पइसा घला न आवय । काम-बुता बिन पइसा नइ हे, पइसा बिन कुछु ना भावय ।। दूनों कोती ले मरना हे, कइसे के जीबो संगी । घुसर-घुसरे घर मा मरबो, बाहिर कोरोना जंगी ।। ऊँपर वाले कुछु तो सोचव , कइसन हे तोर तमासा । जीयन देबे ता जीयन दे,  टूटत हे तोरे आसा ।।

शिव-शिव शिव अस (डमरू घनाक्षरी)

डमरू घनाक्षरी (32 वर्ण लघु) सुनत-गुनत चुप, सहत-रहत गुप दुख मन न छुवत, दुखित रहय तन । बम-बम हर-हर, शिव चरण गहत, शिव-शिव शिव अस, जग दुख भर मन ।। समय-समय गुन, परख-परख रख भगत जुगल कर, शिव पद रख तन । हरियर-हरियर, ठउर-ठउर सब हरियर-हरियर, दिखय सबन मन ।। -रमेश चैहान

सस्‍ता ल नहीं अपन ल देख

सस्ता मा समान बेच, लालच देखावत हे, हम बिसावत हन के, हमला बिसावत हे  । धरे हन मोबाइल,  चाइना हम हाथ मा, ओही मोबाइल बीच,  चीन डेरूवावत  हे । बात-बात मा चाइना, हर काम मा चाइना सस्‍ता के ये चक्‍कर ह, चक्‍कर बनावत हे । सस्‍ता के ये चक्‍कर म, अपनेे ला झन बेच अपनो ल देख संगी, तोला ओ बिगाड़त हे ।

मजदूर काबर मजबूर हे

जांगर टोर-जेन हा, खून पसीना बहाये, ओही मनखे के संगी, नाम मजदूर हे । रिरि-रिरि दर-दर, दू पइसा पाये बर ओ भटका खायेबर, आज मजबूर हे । अपन गाँव गली छोड़, अपने ले मुँह मोड़ जाके परदेश बसे, अपने ले दूर हे । सुख-दुख मा लहुटे, फेर शहर पहुटे हमर बनिहार के, एहिच दस्तूर हे ।। कोरोना माहामारी के, मार पेट मा सहिके का करय बिचारा, गाँव कोती आय हे । करे बर बुता नहीं, खाये बर कुछु नहीं डेरा-डंडी छोड़-छाड, दरद देखाय हे । नेता हल्ला-गुल्ला कर, अपने रोटी सेकय दूसर के पीरा मा, राजनीति भाय हे । येखर-वोखर पाला, सरकार गेंद फेकत अपने पूछी ल संगी, खुदे सहराय हे । -रमेश चौहान

पानी ले हे हमरे जिनगानी, पानी आज बचावव

सार छंद

कोरोना आये, चेत हराये

गैसटिक बर घरेलू नूसखा

कोरोना (सार छंद)

चित्र गुगल से सौजन्य एक अकेला आए जग मा,  एक अकेला जाबे । जइसे करनी तइसे भरनी, अपन करम गति पाबे ।। माटी होही तोरे चोला, माटी मा मिल जाबे । नाम करम के जिंदा रहिही, जब तैं काम कमाबे ।। चरदिनिया ये संगी साथी, बने बने मा भाथे । चारा मनभर चरय बोकरा, फेर कहां मिमियाथे ।। हाथ-गोड़ के लरे-परे मा, संगी कोन कहाथे ।  अपन देह हा अपने ऊपर, पथरा असन जनाथे ।। कोन जनी गा काखर मेरा,, भरे हवय कोरोना । संगी साथी ला देखे मा तो,  परही तोला रोना ।। भीड़-भाड़ ले दूरिया रही के, अपना हाथ ला धोना । रोग बड़े है दुनिया बोलय, मत तैं समझ खिलौना ।। -रमेश चौहान

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