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संदेश

कतका झन देखे हें-

कोरोना के कहर-काठी-माटी हा बिगड़त हे (सार छंद)

सार छंद कोरोना के कहर देख के, डर हमला लागे । गाँव-गाँव अउ शहर-शहर मा, कोराना हा छागे ।। सब ला एके दिन मरना हे, नहीं मरब ले डर गा । फेर मरे के पाछू मरना, मन काँपे थर-थर गा काठी-माटी हा बिगड़त हे, कोनो तीर न जावय । पिण्डा-पानी के का कहिबे, कपाल क्रिया न पावय ।। धरम-करम हे जियत-मरत के, काला कोन बतावय । अब अंतिम संस्कार करे के,  कइसे धरम निभावय ।। कभू-कभू तो गुस्सा आथे, शंका मन उपजाथे । बीमारी के करे बहाना, बैरी हा डरूवाथे ।। बीमरहा हे जे पहिली ले, ओही हर तो जाथे । बने पोठलगहा मनखे मन, येला मार भगाथे । हमरे संस्कार रहय जींदा, मरे म घला सुहाथे ।। -रमेश चैहान

ददरिया- "मोरे गाँव मा"

दुवारी मा चौरा, चौरा म घर चातर होगे साकुर, अब धंधा के मर । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा गली ला छेके, मन भर के लइका खेले नई सकयं, अब बने तन के । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा खेत तीर परिया, परिया तीर खेत खेत खेते हवय, परिया ला तो देख । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा नदिया के पीरा, सुनय अब कोन नदिया के पैरी, काबर होगे मोन । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा बस्ती मा तरिया, तरिया मा बस्ती लइका तउरय कहाँ, अब अपने मस्ती । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा गाय बर चरिया, चरिया बर गाय कोठा होगे सुन्ना, बछरू नई नरियाय । मोरे गाँव मा मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा -रमेश चौहान

गणेश चालीसा

-दोहा-  सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर ।  परथ हवं मैं पांव गा, विनती सुन ले मोर ।।  जय गणपति गणराज जय, जय गौरी के लाल ।  बाधा मेटनहार तैं, हे प्रभु दीनदयाल ।।  चौपाई   हे गौरा-गौरी के लाला । हे प्रभू तैं दीन दयाला  सबले पहिली तोला सुमरँव । तोरे गुण ला गा के झुमरँव  तही बुद्धि के देवइया प्रभु । तही विघन के मेटइया प्रभु  तोरे महिमा दुनिया गावय । तोरे जस ला वेद सुनावय  देह रूप गुणगान बखानय । तोर पॉंव मा मुड़ी नवावय  चार हाथ तो तोर सुहावय । हाथी जइसे मुड़ हा भावय  मुड़े सूंड़ मा लड्डू खाथस । लइका मन ला खूबे भाथस  सूपा जइसे कान हलावस । सबला तैं हा अपन बनावस  चाकर माथा चंदन सोहय । एक दांत हा मन ला मोहय  मुड़ी मुकुट के साज सजे हे । हीरा-मोती घात मजे हे  भारी-भरकम पेट जनाथे । हाथ जोड़ सब देव मनाथे  तोर जनम के कथा अचंभा ।अपन देह ले गढ़ जगदम्‍बा  सुघर रूप अउ देके चोला । अपन शक्ति सब देवय तोला  कहय दुवारी पहरा देबे । कोनो आवय डंडा लेबे  गौरी तोरे हे महतारी । करत रहे जेखर रखवारी  देवन आवय तोला जांचे । तोरे ले एको ना बाचे  तोर संग सब हारत जावय । आखिर मा शिव शंकर आवय  होवन लागे घोर लड़ाई । करय सब

जब ले आए कोरोना (कुकुभ छंद)

चाल बदल गे ढाल बदल गे, जब ले आए कोरोना । काम बंद हे दाम बंद हे, परगे हे  हमला रोना ।। काम-बुता के लाले परगे, कइसे अब होय गुजारा । कतका  हम डर्रावत रहिबो, परय न पेट म जब चारा । रोग बड़े हे के पेट बड़े, संसो  हे गा बड़ भारी ।  कोरोनो-कोरोना चिहरत, कभू मिटय न अंधियारी ।। घर मा घुसरे-घुसरे संगी,  दू पइसा घला न आवय । काम-बुता बिन पइसा नइ हे, पइसा बिन कुछु ना भावय ।। दूनों कोती ले मरना हे, कइसे के जीबो संगी । घुसर-घुसरे घर मा मरबो, बाहिर कोरोना जंगी ।। ऊँपर वाले कुछु तो सोचव , कइसन हे तोर तमासा । जीयन देबे ता जीयन दे,  टूटत हे तोरे आसा ।।

शिव-शिव शिव अस (डमरू घनाक्षरी)

डमरू घनाक्षरी (32 वर्ण लघु) सुनत-गुनत चुप, सहत-रहत गुप दुख मन न छुवत, दुखित रहय तन । बम-बम हर-हर, शिव चरण गहत, शिव-शिव शिव अस, जग दुख भर मन ।। समय-समय गुन, परख-परख रख भगत जुगल कर, शिव पद रख तन । हरियर-हरियर, ठउर-ठउर सब हरियर-हरियर, दिखय सबन मन ।। -रमेश चैहान

सस्‍ता ल नहीं अपन ल देख

सस्ता मा समान बेच, लालच देखावत हे, हम बिसावत हन के, हमला बिसावत हे  । धरे हन मोबाइल,  चाइना हम हाथ मा, ओही मोबाइल बीच,  चीन डेरूवावत  हे । बात-बात मा चाइना, हर काम मा चाइना सस्‍ता के ये चक्‍कर ह, चक्‍कर बनावत हे । सस्‍ता के ये चक्‍कर म, अपनेे ला झन बेच अपनो ल देख संगी, तोला ओ बिगाड़त हे ।

मजदूर काबर मजबूर हे

जांगर टोर-जेन हा, खून पसीना बहाये, ओही मनखे के संगी, नाम मजदूर हे । रिरि-रिरि दर-दर, दू पइसा पाये बर ओ भटका खायेबर, आज मजबूर हे । अपन गाँव गली छोड़, अपने ले मुँह मोड़ जाके परदेश बसे, अपने ले दूर हे । सुख-दुख मा लहुटे, फेर शहर पहुटे हमर बनिहार के, एहिच दस्तूर हे ।। कोरोना माहामारी के, मार पेट मा सहिके का करय बिचारा, गाँव कोती आय हे । करे बर बुता नहीं, खाये बर कुछु नहीं डेरा-डंडी छोड़-छाड, दरद देखाय हे । नेता हल्ला-गुल्ला कर, अपने रोटी सेकय दूसर के पीरा मा, राजनीति भाय हे । येखर-वोखर पाला, सरकार गेंद फेकत अपने पूछी ल संगी, खुदे सहराय हे । -रमेश चौहान

पानी ले हे हमरे जिनगानी, पानी आज बचावव

सार छंद

कोरोना आये, चेत हराये

गैसटिक बर घरेलू नूसखा

मोर दूसर ब्लॉग