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संदेश

कतका झन देखे हें-

आगी लगेे पिटरोल मा,

आगी लगेे पिटरोल मा, बरत हवय दिन राती । मँहगाई भभकत हवय, धधकत हे छाती ।। कोरोना के मार मा, काम-बुता लेसागे । अउ पइसा बाचे-खुचे, अब तो हमर सिरागे ।। मरत हवन हम अइसने, अउ काबर तैंं मारे ।  डार-डार पिटरोल गा, मँहगाई ला बारे ।। सुनव व्‍यपारी, सरकार मन,  हम कइसे के जीबो । मँइगाई के ये मार मा, का हम हवा ल पीबो ।।  जनता मरहा कोतरी,  मँहगाई के आगी । लेसत हे नेता हमर, बांधत कनिहा पागी ।।   कोंदा भैरा अंधरा, राज्‍य केन्‍द्र के राजा । एक दूसर म डार के, हमर बजावत बाजा ।। दुबर ल दू अषाढ़ कस, डहत हवय मँहगाई । हे भगवान गरीब के, तुँही ददा अउ दाई ।। -रमेश चौहान

चल देवारी मनाबो मया प्रीत घाेेर के

घनाक्षरी लिपे-पोते घर-द्वार, झांड़े-पोछे अंगना चुक-चुक ले दिखय, रंगोली खोर के । नवा-नवा जिंस-पेंट, नवा लइका पहिरे, उज्‍जर दिखे जइसे,  सूरुज ए भोर के ।। रिगबिग-रिगबिग, खोर-गली घर-द्वार रिगबिग दीया-बाती, सुरुज अंजोर के । मन भीतर अपन,  तैं ह संगी अब तो, रिगबिग दीया बार, मया प्रीत घाेेर के  ।।

हमू ल हरहिंछा जान देबे

 हमू ल हरहिंछा जान देबे    मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे । तै सुधरबे त वो । जीवन खो-खो खेल हे एक-दूसर ल खो ।। सेप्टिक बनाए बने करे, पानी, गली काबर बोहाय । अपन घर के हगे-मूते म हमला काबर रेंगाय ।। गली पाछू के ल सेठस नहीं, आघू बसे हस त शेर होगेस । खोर-गली ल चगलत हवस, अपन होके घला गेर होगेस । अपन दुवारी के खोर-गली कांटा रूंधे कस छेके हस । गाड़ा रवन रहिस हे बाबू, काली के दिन ल देखे हस ।। मनखे होबे कहूं तै ह संगी, हमू ल मनखे मान लेबे । अपन दुवारी के खोर-गली म, हमू ल हरहिंछा जान देबे ।। -रमेश चौहान

तीजा तिहार

तीजा तीज तिहार मा, मांगे हें अहिवात । दिन भर रहे उपास अउ, जागे वो हा रात । जागे वो हा रात, खुशी पति के हे मांगे । पत्नी के ये काम, जगत मा ऊंपर टांगे । सुनलव कहे "रमेश", ठेठरी धर छोड़व पीजा । अपन ह अपने होय, कहत हे हमरे तीजा ।।

आठे कन्‍हईया के गीत-भादो के महिना

आठे कन्‍हईया के गीत-भादो के महिना भादो के महीना, घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे, ये रात कारी कारी । कंस के कारागार, बड़ रहिन पहरेदार, चारो कोती चमुन्दा, खुल्ला नइये एकोद्वार । देवकी वासुदेव करे पुकार, हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये, करलव सनाथ । एक-एक करके छै, लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे, कइसे अपभ्रंस । आठवइया के हे बारी, कइसे करिन तइयारी, एखरे बर करे हे, आकाशवाणी ला चक्रधारी । मन खिलखिलावत हे, फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे, के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी-कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट, चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के, हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल, बड़ जोर के नींद आगे । देखत हे देवकी वासुदेव, त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे, ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटिक भर म होइस, उंहला परमपिता के भान, नाना भांति ले, करे लगिन उंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइया, जम्मो जीव के देखइया  धरती के भार हरइया, जीवन नइया के खेवइया । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान, बालक रूप म प्रगटे आज तो भगवान । प्रगट

ये राखी तिहार

 ये राखी तिहार ये राखी तिहार, लागथे अब, आवय नान्हे नान्हे मन के । भेजय राखी, संग मा रोरी, दाई माई लिफाफा मा भर के । माथा लगालेबे, तै रोरी भइया, बांध लेबे राखी मोला सुर कर के । नई जा सकंव, मैं हर मइके, ना आवस तहू तन के । सुख के ससुरार भइया दुख के मइके, रखबे राखी के लाज जब मै आवंह आंसू धर के ।

खेले बिजली खेल

 खेले बिजली खेल (कुण्डलियां) चमनी-कंड़िल हे नहीं, नइ हे माटीतेल । अंधियार तो घर परे, खेले बिजली खेल ।। खेले बिजली खेल, कहत मोला छू लेवव । खेलत छू-छूवाल, दॉव मोरे दे देदव ।। धन-धन हवय ‘रमेश’, टार्च मोबाइल ठिमनी ।। घर मा लाइन गोल, नई हे कंडिल-चिमनी ।।

बेटी-बहू

बेटी-बहू बेटी हमरे आज के, बहू कोखरो काल । बहू गढ़य परिवार ला, राखय जोर सम्हाल ।। राखय जोर सम्हाल, बहू जइसे हे चिरई । तिनका-तिनका जोर, खोंधरा ओखर बनई ।। सास-ससुर मां बाप, मान राखय जी तुहरे । सुग्घर बहू कहाय, मान तब बेटी हमरे ।।

नीति के दोहा

नीति के दोहा करना धरना कुछ नहीं, काँव-काँव चिल्लाय । खिंचे दूसर के पाँव ला, हक भर अपन जताय ।। अपन काम सहि काम नहीं, नाम जेखरे कर्म । छोड़ बात अधिकार के, काम करब हे धर्म ।। कहां कोन छोटे बड़े, सबके अपने मान । अपन हाथ के काम बिन, फोकट हे सब ज्ञान ।। जीये बर तैं काम कर, कामे बर मत जीय । पइसा ले तो हे बडे, अपन मया अउ हीय ।। ए हक अउ अधिकार मा, कोन बड़े हे देख । जान बचावब मारना, अइसन बात सरेख ।। -रमेश चौहान

भागही ये कोरोना

 भागही ये कोरोना (कुण्‍डलियॉं) रहना दुरिहा देह ले, रहि के मन के तीर । कोरोना के काल मा, होये बिना अधीर ।। होय बिना अधीर, संग अपने ला दे ना । दू भाखा तैं बोल, अकेलापन ला ले ना ।। तोर हाथ मा फोन, अपन संगी ला कह ना । हवन संग मा तोर, अकेल्ला मत तैं रहना ।। कोरोना के रोग ले, होबो हम दू-चार । मन ला मन ले जोड़ के, रहिना हे तइयार ।। रहिना हे तइयार, हराना हे जब ओला । तन ले रहिके दूर, खोलबो मन के खोला अपने आप सम्हाल, नई हे हमला रोना । जुरमिल करव उपाय, भागही ये कोरोना ।।

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