सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

जय जय गुरूदेवा

जय जय गुरूदेवा, तोरे सेवा, करे जगत हा, पाँव धरे । गुरू तहीं रमेशा, तहीं महेशा, ब्रम्हा तहीं बन, जगत भरे ।। सद्गुरू पद पावन, पाप नशावन, दया जेखरे, पाप मिटे। गुरू के हे दाया, टूटे माया, मोह फाँस ले, शिष्य छुटे ।।

कविता

उभरे जब प्रतिबिम्ब हा, धर आखर के रूप । देखावत दरपण असन, दुनिया के प्रतिरूप ।। दुनिया के प्रतिरूप, दोष गुण ला देखाये । कइसे हवय समाज, समाजे ला बतलाये ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, शब्द जब घाते निखरे । मन के उपजे भाव, तभे कविता बन उभरे ।।2।।

दोहा-ददरिया

नायक हसिया धर कांदी लुये, तैं हर धनहा पार । गोई तोला देख के, आवत हवे अजार ।।   नायिका जा रे बिलवा भाग तैं, काबर आये हस पार । आवत हे मोरे ददा, पहिलि खुद ल सम्हार ।। नायक तोर मया ला पाय के, सुध बुध मैं भूलाय । काला संसो अउ फिकर, चाहे कोनो आय ।। नायिका धरे हवे लाठी ददा, आवत हाथ लमाय । छोड़ चटहरी भाग तैं, देही सबो भूलाय ।। नायक मया उलंबा होय हे, कहां हवे डर यार । तोला मे हर पाय बर, आय हवॅव ये पार ।।   नायिका जा जा जोही भाग तैं, तोरे मया अपार । तोरे घर ला मैं धनी, कर लेहूं ससुरार

कलाम ला सलाम

सुनले आज कलाम के, थोकिन तैं हर गोठ । जेन करे हे देश बर, काम बने तो पोठ ।। काम बने तो पोठ, करे हे ओ हमरे बर । बने मिसाइल मेन, बने ओ हमरे रहबर ।। षिक्षक बने महान,  ओखरे शिक्षा चुनले । हमरे भारत रत्न, रहिस शिक्षाविद सुुनले ।।         -रमेश चौहान

मुड धर कविता रोय

स्रोता बकता देख के, मुड धर कविता रोय । सुघ्घर कविता के मरम, जानय ना हर कोय ।। जानय ना हर कोय, अपन ओ जिम्मेदारी । दूअरथी ओ बोल, देत मारे किलकारी ।। ओखर होथे नाम, जेन देथे बड़ झटका । सुनत हवे सब हाॅस, मंच मा स्रोता बकता । आनी बानी गोठ कर, देखावत हे ठाठ एक गांठ हरदी धरे, मुसवा बइठे हाठ ।। मुसवा बइठे हाठ, भीड़ ला बने सकेले । जेखर बल ला पाय, होय बइला हूबेले ।। छटे सबो जब भीड़, फुटय ना मुॅह ले बानी । एके ठन हे गांठ, कहां हे आनी बानी ।। जइसे ओखर नाम हे, दिखे कहां हे काम । कड़हा कड़हा बेच के, पूरा मांगे दाम ।। पूरा मांगे दाम, अपन लेवाल ल पाये । मिलावटी हे झार, तभो सबला भरमाये ।। चिन्हे ना सब सोन, सोन पालिस हे कइसे । बेचे से हे काम, बेचा जय ओहर जइसे ।।

भारत माता तोर तो, परत हवन हम पांव

भारत माता तोर तो, परत हवन हम पांव । देवत रहिबे जियत भर, सुख अचरा के छांव ।। सुख अचरा के छांव, हमर मुड़ ढांके रहिबे । हमन हवन नादान, हमर गलती का कहिबे ।। कोरा मा हन तोर, हमर रखबे तैं बाता । लइका हन हम तोर, हमर तैं भारत माता । महतारी तैं तो हवस, सुख षांति के खान । कहां सृष्टि मा अउ हवय, तोरे असन महान ।। तोरे असन महान, जिहां जमुना गंगा हे । कहां हिमालय चोटि , जिहां कंचन जंगा हे ।। राम रहिम इक संग, करत तो हे बलिहारी ।। करत हवे जयकार, तोर जय हो महतारी ।। तोरे सेवा ला करत, जेन होय कुर्बान । लड़त लड़त तोर बर, गवाय जेन परान ।। गवाय जेन परान, वीर सेना के सेनानी । अइसन तोर सपूत, जेन दे हे कुर्बानी ।। सबो शहिद के पांव, परत हन हाथे जोरे । माथा अपन मढ़ाय, पांव मा दाई तोरे ।।

सुन सुन ओ पगुराय

धर मांदर संस्कार के, तैं हर ताल बजाय । भइसा आघू बीन कस, सुन सुन ओ पगुराय ।। सुन सुन ओ पगुराय, निकाले बोजे चारा । दूसर बाचा मान, खाय हे ओ हर झारा ।। परदेषिया भगाय, हमर पुरखा हा मर मर । ओमन मेछरावत, ऊंखरे बाचा ला धर ।।

ठाने हन हम छोकरी

दुरगा चण्ड़ी के देस मा, नारी हवय महान । करत हवे सब काम ला, अबला झन तैं जान ।। अबला झन तैं जान, पुरूस ले अब का कम हे । देख ओखरे काम, पुरूस जइसे तो दम हे ।। धरती ले आगास, जेन लहराये झण्ड़ी । सेना पुलिस काम, करे बन दुरगा चण्ड़ी ।।  ठाने हन हम छोकरी, करना हे हर काम । माने जेला छोकरा, केवल अपने नाम ।। केवल अपने नाम, जगत मा हे अब करना । नई हवे मंजूर, पांव के दासी रहना ।। चार दुवारी छोड़, जगत ला अपने माने । कठिन कठिन हर काम, करे बर हम तो ठाने ।।

ना नर गरू ना नार

नारी ले नर होत हे, नर ले होये नार । नर नारी के मेल ले, बसे हवे संसार ।। बसे हवे संसार, कदर हे एक बराबर । ना नर गरू ना नार, अहम के झगरा काबर ।। अहम वहम तैं मेट, मया ला करके भारी । नारी बिन ना मर्द, मर्द बिन ना नारी ।। 

राम कथा -राम मनखे काबर बनीस

मनखे मनखे सब सुनय, राम कथा मन लाय । कहय सुनय हर गांव मा, मनखे मन हरसाय ।। मनखे मन हरसाय, राम के महिमा सुन सुन । जागे एक सवाल, मोर मन मा तो सिरतुन ।। खोजव बने जवाब, जेन जाने हव तनके । भवसागर मा राम, बने हे काबर मनखे ।। हेतु अनेका जनम के, कोनो कहय विचार । विप्र धेनु अरू संत हित, लिन्ह मनुज अवतार ।। लिन्ह मनुज अवतार, विजय जय ला तारे बर । मेटे बर तो पाप, रावणे ला मारे बर ।। नारद के ओ श्राप, घला हा बने लपेटा । काला कहि हम ठोस, जनम के हेतु अनेका ।। सतजुग त्रेता के कथा, तैं हर सबो सुनाय । कलजुग मा का काम के, कारण जेन बताय ।। कारण जेन बताय, देख ओला आंखी ले । चलत हवे विज्ञान, खोजथे सब साखी ले ।। येही जुग के नाम, हवय गा पापी कलजुग । खाय तभे पतिआय,  कहां बाचे हे सतजुग ।। मरयादा ला राम हा, जी  के तो देखाय । जइसे के विज्ञान हा, कारण देत जनाय ।। कारण देत जनाय, बने ओ काबर मनखे । मनखे के मरजाद, बनाये हे छन छन के ।। कसे कसौटी देख, राम के हर वादा । मनखे कइसे होय, होय कइसे  मरयादा ।। कारण केवल एक हे, जेखर बर ओ आय । मनखे बन भगवान हा, मनखे ला सीखाय ।। मनखे ला सीखाय, होय मनखे

बुड्ती हा लागत हे उत्ती

बुड़ती ले उत्ती डहर, चलत हवे परकास । भले सुरूज उत्ती उगय, अंतस धरे उजास । अंतस धरे उजास, कोन झांके हे ओला । आंखी आघू देख, सबो बदले हे चोला ।। चले भेडि़या चाल, बिसारे अपने सुरती । उत्ती ला सब छोड़, देखथे काबर बुड़ती ।। जेती ले निकले सुरूज, ऊंहा होय बिहान । बुड़े जिहां जाके सुरूज, रतिहा ऊंहा जान ।। रतिहा ऊंहा जान, जिहां सब बनावटी हे । चकाचैंध के घात, चीज सब सजावटी हे ।। पूछत हवे ‘रमेश‘,  तुमन जाहव गा केती । सिरतुन होय उजास, सुरूज हा होथे जेती ।। उत्ती के बेरा सुरूज, लगथे कतका नीक । उवत सुरूज ला देख के, आथे काबर छीक ।। आथे काबर छीक, करे कोनो हे सुरता । जींस पेंट फटकाय, छोड़ के अपने कुरता ।। सुरूज ढले के बाद, जले हे दीया बत्ती । बुड़ती नजर जमाय, खड़े काबर हे उत्ती ।।

दाई बेटा ले कहे

दाई बेटा ले कहे, तैं करेजा हस मोर । जब बेटा हा बाढ़ गे, सपना ला दिस टोर ।। सपना ला दिस टोर, आन ला जिगर बसाये । छोड़े घर परिवार, जवानी अपन देखाये ।। सुन लव कहे ‘रमेश‘, सोच के करव सफाई । दुनिया के भगवान, तोर बर तोरे दाई ।।

उठ तैं भिनसार

छोड़ अलाली जाग तैं, होगे हवय बिहान । चढ़त जात हे गा सुरूज, देख निहार मितान ।। देख निहार मितान, डोहड़ी घला फूलगे । चिरई चिरगुन बोल,  हवा मा कइसे मिलगे । हवा लगत हे नीक, नीक हे बादर लाली । उत्ती बेरा देख, जाग तैं छोड़ अलाली ।। कुकरा हा भिनसार के, बोलत हे गा बोल । जाग कुकरू कू जाग तैं, अपन निंद ला खोल ।। अपन निंद ला खोल, छोड़ खटिया पलंग गा । घूमव जाके खार, बनव संगी मतंग गा ।। कर लव कुछु व्यायाम, बात ला झन तो ठुकरा । घेरी घेरी बेर, कुकरू कू बोलत कुकरा ।। पुरवाही सुघ्घर चलत, गुदगुदात हे देह । तन मन पाये ताजगी, जेन करे हे नेह ।। जेन करे हे नेह, बिहनिया ले जागे हे । खुल्ला जगह म घूम, हवा ला जे पागे हे ।। धरती के सिंगार, सबो के मन ला भाही । उठ तैं भिनसार, चलत सुघ्घर पुरवाही ।।

बिचारा हा अनाथ बन

लइकापन ओ छोड़ के, बनगे हवय सियान । करय काम ओ पेट बर, देवय कोने ध्यान ।। देवय कोने ध्यान, बुता ओ काबर करथे । लइकामन ला छोड़, ददा हा काबर मरथे ।। सहय समय के मार, बिचारा हा अनाथ बन । करत करत काम, छुटे ओखर लइकापन ।।

कतका तैं इतराय हस

राम राम कह राम, जगत ले तोला तरना । आज नही ता काल, सबो ला तो हे मरना ।। मृत्युलोक हे नाम, कोन हे अमर जगत मा । जप ले सीताराम, मिले हे जेन फकत मा ।। अपन उमर भर देख ले, का खोये का पाय हस । लइका पन ले आज तक, कतका तैं इतराय हस ।।

अटकन बटकन दही चटाका

चौपाई छंद अटकन बटकन दही चटाका । झर झर पानी गिरे रचाका लउहा-लाटा बन के कांटा । चिखला हा गरीब के बांटा तुहुुर-तुहुर पानी हा आवय । हमर छानही चूहत जावय सावन म करेला हा पाके । करू करू काबर दुनिया लागे चल चल बेटी गंगा जाबो । जिहां छूटकारा हम पाबो गंगा ले गोदावरी चलिन । मरीन काबर हम अलिन-गलिन पाका पाका बेल ल खाबो । हमन मुक्ति के मारग पाबो छुये बेल के डारा टूटे । जीये के सब आसा छूटे भरे कटोरा हमरे फूटे । प्राण देह ले जइसे छूटे काऊ माऊ छाये जाला । दुनिया लागे घात बवाला -रमेश चौहान

हमर जुन्ना खेल

कुण्‍डलियां गिल्ली डंडा खेलबो, चल संगी दइहान । गोला घेरा खिच के, पादी लेबो तान । पादी लेबो तान, खेलबो सबो थकत  ले । देबोे संगी दांव, फेर तो हमन सकत ले ।।। अभी जात हन स्कूल, उड़ावा मत जी खिल्ली । पढ़ लिख के हम सांझ, खेलबो फेरे गिल्ली ।। चलव सहेली खेलबो, जुर मिल फुगड़ी खेल । माड़ी मोड़े देख ले, होथे पावे के मेल ।। होथे पांवे के मेल, करत आघू अउ पाछू । सांस भरे के खेल, काम आही ओ आघू ।। पुरखा के ये खेल, लगय काबर ओ पहेली । घर पैठा रेंगान, खेलबो चलव सहेेली ।। अटकन बटकन गीन ले, सबो पसारे हाथ । दही चटाका बोल के, रहिबो संगे साथ ।। रहिबो संगे साथ, लऊहा लाटा बन के । कांटा सूजी छांट, काय लेबे तैं तन के ।। कांऊ मांऊ बोल, कान धर लव रे झटकन । कतका सुघ्घर खेल, हवय गा अटकन बटकन ।। नेती भवरा गूंथ के, दे ओला तैं फेक । घूमे लगाय रट्ट हे, आंखी गड़ाय देख ।। आंखी गड़ाय देख, खेल जुन्ना कइसे हे । लकड़ी काढ़ बनाय,  बिही के फर जइसे हे ।। लगय हाथ के जादू, जेन हर तोरे सेती । फरिया डोरी सांट, बनाले तैं हर नेती ।। धर के डंडा हाथ मा, ऊपर तैं हर टांग । हम तो ओला कोलबो, जावय बने उचांग ।। जावय बने उचांग, फेर तो डंडा

वाह रे तैं तो मनखे

मनखे काबर तैं करे, अइसन कोनो काम । जगह जगह ला छेक के, अपन बिगाड़े धाम ।। अपन बिगाड़े धाम, कोन ला हे गा भाये । चाकर रद्दा छोड़, कोलकी जउन बसाये ।। रोके तोला जेन, ओखरे बर तैं सनके । मनखे मनखे कहय, वाह रे तैं तो मनखे ।। कइसे ये दुनिया हवय, बनथे खुद निरदोस । अपन आप ला छोड़ के, दे दूसर ला दोस ।। दे दूसर ला दोस, दोस ला अपन लुकावै घेरी बेरी दोस, जमाना के बतलावै ।। होवत दुरगति गांव, बनेे सब पथरा जइसे । पथरा के भगवान, देख मनखे हे कइसे ।।

अंधा हे कानून हा

अंधा हे कानून हा, कहिथे मनखे झार । धरे तराजू हाथ मा, खड़े हवय दरबार ।। खड़े हवय दरबार, बांध आंखी मा पट्टी । धनी गुणी के खेल, बने हे जइसे बट्टी ।। समझय कहां गरीब, हवय ये कइसन धंधा । मनखे मनखे देख, जेन बन जाथे अंधा ।। -रमेश चौहान

जगत अच्छा हे कइसे

जइसे दुनिया  हे बने, ओइसने हे आज । अपन सोच अनुसार तैं, करथस अपने काज ।। करथस अपने काज, सही ओही ला माने । दूसर के ओ सोच, कहां तैं हर पहिचाने ।। अंतस अपने झांक, जगत अच्छा हे कइसे । जगत दिखे हे साफ, सोच हे तोरे जइसे ।।

लख चौरासी तैं भटक

लख चैरासी तैं भटक, पाय मनुज के देह । ऐती-तेती देख झन, कर ले प्रभु मा नेह ।। का लेके तैं आय हस, का ले जाबे साथ । आना खाली हाथ हे, जाना खाली हाथ ।। अगम गहिर जग रीत हे, निभा सकय ना जीव । राम राम भज राम तैं, भजे हवय गा सीव ।। कहे हवय सतसंग के, घाते महिमा संत । संत चरण मा जायके, अपन बना ले कंत ।।

छोड़ जगत के आस ला

दुनिया मा तैं आय के, माया मा लपटाय । असल खजाना छोड़ के, नकली ला तैं भाय ।। असल व्यपारी हे कहां, नकली के भरमार । कोनो पूछय ना असल, जग के खरीददार ।। का राखे हे देह के, माटी चोला जान । जाना चोला छोड़ के, झन कर गरब गुमान ।। कागज के डोंगा बनक, बने देह हा तोर । नदिया के मजधार मा, देही तोला बोर ।। परे विपत मा देख ले, आथे कोने काम ।। छोड़ जगत के आस ला, भज ले सीताराम ।

मेेनी हेप्पी बड्ड डे

मोर छोटे भाई के पुुत्र के काल 7-6-15 के  जनम दिन रहिस......... --------------------------------- दोहा गीत  मेेनी हेप्पी बड्ड डे, आज जनम दिन तोर । तोर जनम दिन आज हे, बेटा मोरे लाल । बड़े बाढ़ तैं एक दिन, करबे खूब कमाल ।। चारो कोती एक दिन, होही तोरे सोर ।। मेेनी हेप्पी बड्ड डे,......... बेटा राजा मोर तैं, चांद सुरूज तो आस । चमकत रहिबे जस सुरूज, जीवन के आगास ।। बने रहय हर हाल मा, खिल-खिल हॅॅसना तोर । मेेनी हेप्पी बड्ड डे,........ गाड़ा गाड़ा आसिसे, तोला हम तो देत । लाख बरीसे ले उमर, जम्मा खुसी समेट ।। होवय गा फुरमान सब,  जम्मा असीस मोर ।। मेेनी हेप्पी बड्ड डे,........ -रमेश चौहान

पइसा धरे खरीद

दुनिया के हर चीज ला, पइसा धरे खरीद । कहिथे गा धनवान मन, हाथे धरे रसीद ।। हाथ धरे रसीद, कहे मनखे तक बिकथे । नैतिकता ला आज, जगत मा कोने रखथे ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, मया तो हे बैगुनिया । दया मया भगवान, बिके ना कोनो  दुनिया ।। -रमेश चौहान

आंसू ढारे देख

जबतक बिहाव होय ना, बेटा तबतक तोर । आय सुवारी ओखरे, बिसरे तोरे सोर ।। बिसरे तोरे सोर, अपन ओ मया भुलाये । रीत जगत के जान , ददा काबर झल्लाये । देखव जगत ‘रमेश‘, तोर बेटी हे कबतक । आंसू ढारे देख, चले स्वासा हे जबतक ।।

सावन झूला झूलबो

सावन झूला झूलबो, बांधे अमुवा डार । पुरवाही सुघ्घर चलत, होके देख मतंग । चल ओ राधा गोमती, मीना ला कर संग । मितानीन हे संग मा, धरे सहेली चार ।। सावन...... झिमिर झिमिर पानी गिरे, नाचे मनुवा मोर । चीं-चीं चिरई हा करत, देवत मधुरस घोर । हरियर हरियर हे गजब, चारो कोती खार  ।। सावन.... छुये हवा जब देह ला, रोम रोम खिल जाय । झूला झूलत देख के, कोन नई हरसाय ।। सरर सरर झूला चले, चुनरी उड़े हमार ।। सावन.... महर महर ममहाय हे, कतका फूले फूल । भवरा बइठे फूल मा, रस चूहे मा मसगूल ।। देख सखी तै संग मा, आके संग हमार ।। सावन.....

कब बोवाही धान

हवय अहंदा खेत हा, कब बोवाही धान । रोज रोज पानी गिरे, मुड़ धर कहे किसान । मुड़ धर कहे किसान, रगी अब तो कब होही । बता ददा भगवान, धान किसान कब बोही ।। कइसन लीला तोर, लगे काहेक छदंहा । बरसे पानी रोज, खेत हा हवय अहंदा ।।

पाना डारा ले लगे

पाना डारा ले लगे, नाचय कतका झूम । हरियर हरियर रंग ले, मन ला लेवय चूम ।। मन ला लेवय चूम, जेन देखय जी ओला । जब ले छोड़े पेड़, परे हे पाना कोला ।। खूंदय कचरय देख, आदमी मन अब झारा । कचरा होगे नाम, रहिस जे पाना डारा ।।

ये दुनिया कइसन हवय

पाना डारा ले लगे, नाचय कतका झूम । हरियर हरियर रंग ले, मन ला लेवय चूम ।। मन ला लेवय चूम, जेन देखय जी ओला । जब ले छोड़े पेड़, परे हे पाना कोला ।। खूंदय कचरय देख, आदमी मन अब झारा । कचरा होगे नाम, रहिस जे पाना डारा ।। ये दुनिया कइसन हवय, जानत नइये कोन । रंगे जग के रंग मा, साधे चुप्पा मोन ।। साधे चुप्पा मोन, मजा दुनिया के लेवत । आके जीवन सांझ, दोस दुनिया ला देवत ।। कइसन के रे आज, जमाना पल्टी खाये । सुनलव कहत ‘रमेश‘, करम फल तै तो पाये ।।

कथे काला गा सिक्छा

पढ़े लिखे मन ध्यान दौ, बतावव एक बात । का मतलब ऐखर हवय, मोला समझ न आत ।। मोला समझ न आत, कथे काला गा सिक्छा । नैतिकता के संग, मिले कोनो ला दिक्छा ।। दुनिया भर के ग्यान, सकेले सिखे पढ़े मन  । अपने सब संस्कार, बिसारे पढ़े लिखे मन ।।

संगी चल चल खेत मा

संगी चल  चल खेत मा, बोये बर गा धान । राग पाग सुघ्घर लगत, कहत हवंय किसान ।। कहत हवय किसान, हाथ बइला मा फेरत। धरे बीजहा धान, दुवारी मा नागर हेरत ।। भरही कइसे पेट, करे मा आज लफंगी । आज कमा के काल, खाय ला पाबो संगी ।।

मोर दूसर ब्लॉग