नई होय छोटे बड़े, जग के कोनो काम । जेमा जेखर लगे मन, ऊही ले लौ दाम ।। सक्कर चाही खीर बर, बासी बर गा नून । कदर हवय सबके अपन, माथा तै झन धून ।। निदा निन्द ले धान के, खातू माटी डार । पढ़ा लिखा लइका ल तै, जीनगी ले सवार।। महर महर चंदन करय, अपने बदन गलाय । आदमी ला कोन कहय , देव माथे चढ़ाय ।। सज्जन मनखे होत हे, जइसे होथे रूख । फूलय फरय दूसर बर, चाहे जावय सूख ।। जम्मो इंद्रिल करय बस, बगुला ह करे ध्यान । जेन करय काम अइसन, ओखर होवय मान ।।
समृद्ध बस्तर, शोषित बस्तर- श्रीमती शकुंतला तरार
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श्रीमती शकुंतला तरार,एक ऐसी कवयित्री जो बस्तर में जन्मीं और बस्तर को ही
अपनी कलम का केन्द्र बनाया।सोचिए — जिस धरती पर जन्म हुआ, उसी पर इतनी गहराई
से लिखा क...
1 दिन पहले