//किसानी के पीरा//
खेत पार मा कुंदरा, चैतू रखे बनाय ।
चौबीसो घंटा अपन, वो हर इहें खपाय ।।
हरियर हरियर चना ह गहिदे । जेमा गाँव के गरूवा पइधे
हट-हट हइरे-हइरे हाँके । दउड़-दउड़ के चैतू बाँके
गरूवा हाकत लहुटत देखय । दल के दल बेंदरा सरेखय
आनी-बानी गारी देवय । अपने मुँह के लाहो लेवय
हाँफत-हाँफत चैतू बइठे । अपने अपन गजब के अइठे
बड़बड़ाय वो बइहा जइसे । रोक-छेक अब होही कइसे
दू इक्कड़ के खेती हमरे । कइसे के अब जावय समरे
कोनो बांधय न गाय-गरूवा । सबके होगे हरही-हरहा
खूब बेंदरा लाहो लेवय । रउन्द-रउन्द खेत ल खेवय
कइसे पाबो बिजहा-भतहा । खेती-पाती लागय रटहा
ओही बेरा पहटिया, आइस चैतू तीर ।
राम-राम दूनों कहिन, बइठे एके तीर ।।1।।
चैतू गुस्सा देख पहटिया । सोचय काबर बरे रहटिया
पूछत हवय पहटिया ओला । का होगा हे आजे तोला
कइसे आने तैं हा लागत । काबर तैं बने नई भाखत
तब चैतू हर तो बोलय । अपने मन के भड़ास खोलय
भोगत हन हम तुहर पाप ला । अउ गरूवा के लगे श्राप ला
गरूवा ला तुमन छेकव नही । खेती-पाती ल देखव नही
देखव देखव हमर हाल ला । गाय-गरूवा के ये चाल ला
अपन प्राण कस राखे म घला । कतका बाचे हे देख भला
गुजर-बसर अब कइसे होही । अइसन खेती कोने बोही
कहूं बनी-भूती ला करबो । कइसनो होय पेटे भरबो
करब कहूं आने बुता, खेती-पाती छोड़ ?
धान-पान आही इहां, बादर छप्पर तोड़ ??2??
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http://www.gurturgoth.com/kisan-ke-pira/
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