छोड़ दारु के फेशन, हे बड़ नुकसान । फेशन के चक्कर मा, हस तैं अनजान ।। नशा नाश के जड़ हे, तन मन ला खाय । कोन नई जानय ये, हे सब भरमाय ।। दारु नशा ले जादा, फेशन हे आज । पढ़े-लिखे अनपढ़ बन, करथे ये काज।। कोन धनी अउ निर्धन, सब एके हाल । मनखे-मनखे चलथे, दरुहा के चाल ।। नीत-रीत देखे मा, दोषी सरकार । चाल-चलन मनखे के, रखय न दरकार ।। -रमेश चौहान
Protected: जरथुश्त्र: ईरान के महान् पैगम्बर और मज़द-उपासना के प्रवर्तक
-
There is no excerpt because this is a protected post.
6 दिन पहले