चित्र गुगल से सौजन्य एक अकेला आए जग मा, एक अकेला जाबे । जइसे करनी तइसे भरनी, अपन करम गति पाबे ।। माटी होही तोरे चोला, माटी मा मिल जाबे । नाम करम के जिंदा रहिही, जब तैं काम कमाबे ।। चरदिनिया ये संगी साथी, बने बने मा भाथे । चारा मनभर चरय बोकरा, फेर कहां मिमियाथे ।। हाथ-गोड़ के लरे-परे मा, संगी कोन कहाथे । अपन देह हा अपने ऊपर, पथरा असन जनाथे ।। कोन जनी गा काखर मेरा,, भरे हवय कोरोना । संगी साथी ला देखे मा तो, परही तोला रोना ।। भीड़-भाड़ ले दूरिया रही के, अपना हाथ ला धोना । रोग बड़े है दुनिया बोलय, मत तैं समझ खिलौना ।। -रमेश चौहान
लखनऊ की जीवंत सांस्कृतिक परम्परा है “मेटाफर लिटफेस्ट
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डॉ अलका सिंह, शिक्षक, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविधालय, लखनऊ
साहित्य संस्कृतियों का परिचायक है और संस्कृतियां साहित्य की श्रीवृद्धि करती
हैं।...
2 दिन पहले