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संदेश

कतका झन देखे हें-

बेटी-बहू

बेटी-बहू बेटी हमरे आज के, बहू कोखरो काल । बहू गढ़य परिवार ला, राखय जोर सम्हाल ।। राखय जोर सम्हाल, बहू जइसे हे चिरई । तिनका-तिनका जोर, खोंधरा ओखर बनई ।। सास-ससुर मां बाप, मान राखय जी तुहरे । सुग्घर बहू कहाय, मान तब बेटी हमरे ।।

नीति के दोहा

नीति के दोहा करना धरना कुछ नहीं, काँव-काँव चिल्लाय । खिंचे दूसर के पाँव ला, हक भर अपन जताय ।। अपन काम सहि काम नहीं, नाम जेखरे कर्म । छोड़ बात अधिकार के, काम करब हे धर्म ।। कहां कोन छोटे बड़े, सबके अपने मान । अपन हाथ के काम बिन, फोकट हे सब ज्ञान ।। जीये बर तैं काम कर, कामे बर मत जीय । पइसा ले तो हे बडे, अपन मया अउ हीय ।। ए हक अउ अधिकार मा, कोन बड़े हे देख । जान बचावब मारना, अइसन बात सरेख ।। -रमेश चौहान

भागही ये कोरोना

 भागही ये कोरोना (कुण्‍डलियॉं) रहना दुरिहा देह ले, रहि के मन के तीर । कोरोना के काल मा, होये बिना अधीर ।। होय बिना अधीर, संग अपने ला दे ना । दू भाखा तैं बोल, अकेलापन ला ले ना ।। तोर हाथ मा फोन, अपन संगी ला कह ना । हवन संग मा तोर, अकेल्ला मत तैं रहना ।। कोरोना के रोग ले, होबो हम दू-चार । मन ला मन ले जोड़ के, रहिना हे तइयार ।। रहिना हे तइयार, हराना हे जब ओला । तन ले रहिके दूर, खोलबो मन के खोला अपने आप सम्हाल, नई हे हमला रोना । जुरमिल करव उपाय, भागही ये कोरोना ।।

गावत हे फाग रे (घनाक्षरी छंद)

 गावत हे फाग रे (घनाक्षरी छंद) आमा मउराये जब, बउराये परसा हा,  भवरा हा मंडरा के, गावत हे फाग रे । झुमर-झुमर झूमे, चुमे गहुदे डारा ल, महर-महर करे, फूल के पराग रे ।। तन ला गुदगुदाये, अउ लुभाये मन ला  हिरदय म जागे हे, प्रीत अनुराग रे । ओ चिरई-चिरगुन, रूख-राई संग मिल, छेड़े हावे गुरतुर, मादर के राग रे ।। -रमेश चौहान

तुकांत गज़ल-भीतरे भीतर जरव मत

 भीतरे भीतर जरव मत (तुकांत गज़ल) भीतरे भीतर जरव मत बिन आगी के बरव मत अपन काम ले काम जरूरी फेर बीमरहा कस घर धरव मत जेला जे पूछय तेला ते पूछव राम-राम कहे बिन कोनो टरव मत चार दिन के जिंदगी चारठन गोठ  चार बरतन के ठेस लगे लडव मत काना-फुँसी कानों कान होथे दूसर के कान ला भरव मत आँखी के देखे धोखा हो सकथे अंतस के आँखी बंद करव मत -रमेश चौहान

ददरिया- ये फूल कैयना

 ददरिया- ये फूल कैयना हे गोडे मा चप्पल, अउ चप्पल मा हिल तैं मटकत रेंगत हस जावत हे मोर दिल, ये फूल कैयना हे हाथे मा मोबइल, बाजत हे घंटी हे हाथे मा मोबइल, बाजत हे घंटी स्कूटी मा उड़ावत हस, उड़ावत हे बंडी, ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... खुल्ला चुँदी.....बादर करयिा ....हाँ खुल्ला चुँदी बादर करयिा हाँ बादर करिया खुल्ला चुँंदी बादर करयिा हाँ बादर करिया आँखी मा समाये, मया के तरिया, ओ फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... नवा स्टेटस.... आजेच डारेस... हाँ नवा स्टेटस आजेच डारेस हाँ आजेच डारेस नवा स्टेटस आजेच डारेस हाँ आजेच  डारेस अइसे हे फोटु, कनेखी आँखी च मारे ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... मोरे ये नंबर..... सेवे कर ले...... हाँ मोरे ये नंबर सेवे कर ले हाँ सेवे कर ले मोरे ये नंबर सेवे कर ले हाँ सेवे कर ले रमेशे हे नाम, काने धर ले, ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी...

बसदेवा गीत- देखव कतका जनता रोठ

 बसदेवा गीत-देखव कतका जनता रोठ  (चौपई छंद) फोटो Youtube.com से सौजन्‍य सुनव सुनव गा संगी मोर ।  जेला देखव तेने चोर नेता अउ जनता के गोठ । काला कहि हे दूनों पोठ नेता रहिथे केवल चार । जनता होथे लाख हजार खेत बेच के लड़े चुनाव ।  पइसा बांटे गॉंवों गॉंव ओखर पइसा झोकय कोन । जनता बइठे काबर मोन दारू बोकरा कोने खाय । काला फोकेट ह बड़ भाय देवइया भर कइसे चोर । झोकइया के मंसा टोर देही तेन ह लेही काल । झोकइया के जीजंजाल नेता जनता के हे जाय । ओखर गोठ कोन सिरजाय जब जनता म आही सुधार । मिटजाही सब भ्रष्‍टाचार नेता के छोड़व अब गोठ । देखव कतका जनता रोठ जनतामन के करथन बात । ऊँखर मन मा का  जज्‍बात बीता-बीता ठउर सकेल । गली-खोर मा घर ला मेल खेत तीर के परिया जोत । नदिया-नरवा सब ल रपोट फोकट के पाये बर जेन । झूठ लबारी मारय तेन सरकारी चाउर झोकाय । दू के सोलह ओ ह बनाय नाम गरीबी रेखा देख । बड़हर मन के नाम सरेख सबले ऊँपर ओखर नाम । होथे पहिली ऊँखर काम आघू रहिथे बड़हर चार । पाछू बइठे हे हकदार मरगे नैतिकता के बात । जइसे होगे दिन मा रात काखर-काखर गोठ बतॉंव । काखर-काखर गारी खॉव दिखय न ओला अपने काम ...

चुन्दी : हेयर स्‍टाइल पर कविता

 चुन्दी (कुण्‍डलियां) चुन्दी बगरे हे मुड़ी, जस कोनो फड़बाज। लम्बा-लम्बा ठाढ़ हे, जइसे के लठबाज ।। जइसे के लठबाज, तने हे ठाढ़े-ठाढ़े । कंघी के का काम, सरत हे माढ़े-माढ़े ।। मुसवा दे हे चान, खालहे ला जस बुन्दी । आज काल के बात, मुड़ी मा बगरे चुन्दी ।। -रमेश चौहान

बिन काम-बुता हम तो मरबो

 बिन काम-बुता हम तो मरबो  (दुर्मिल सवैया) चल रे चल गा चल ना चल जी, कुछु काम-बुता हम तो करबो । पढ़ आखर चार भला दुनिया, हम काम बिना कइसे तरबो । बइठे-बइठे मिलही कुछु का ? पइसा बिन इज्जत का भरबो । पढ़ई-लिखई सब फोकट हे, बिन काम-बुता हम तो मरबो ।। पढ़ई-लिखई जरूरी जग मा, पर हे बिरथा सब काम बिना । पढ़ के हम आखिर का करबो बिन काम-बुता अउ दाम बिना ।। कुछु काम न आवय रे हमला अइसे पढ़ई  तन जान बिना । अँखिया अब खोल निटोर बने, धन हे जब आखर ज्ञान बिना ।। -रमेश चौहान

कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे (छप्‍पय छंद)

 कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे (छप्‍पय छंद) ये कोरोना रोग, लॉकडाउन ला लाये । रोजी-रोटी काम, हाथ ले हमर नगाये ।। रोग बड़े के दोख, सबो कोती ले मरना । जीना हे जब पोठ, रोग ले अब का डरना ।। कोरोना के ये कहर, काम-बुता ला तो छिने । बिना रोग के रोग मा, मरत ला कोन हा गिने ।। गिनत हवय सरकार, दिखय जेने हा आँखी । गिनय कोन गा आज, झरे कतका के पाँखी ।। कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे । खाली होगे हाथ, गीत काखर तैं गाबे ।। बिन पइसा के जिंनगी, मछरी तरिया पार के । जीना-मरना एक हे, पइसा बिन परिवार के । देवय कोने काम, काम चाही जी हम ला । काम नहींं ना दाम, कोन देखावय दम ला । अटके आधा सॉस, लॉकडान के मारे गा । डोंगा हे मझधार, कोन हम ला अब तारे गा ।। कोरोना के फेर मा, हमर लुटा गे नौकरी । काम चलाये बर हमर, बेचागे सब बोकरी ।।

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