हमू ल हरहिंछा जान देबे मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे । तै सुधरबे त वो । जीवन खो-खो खेल हे एक-दूसर ल खो ।। सेप्टिक बनाए बने करे, पानी, गली काबर बोहाय । अपन घर के हगे-मूते म हमला काबर रेंगाय ।। गली पाछू के ल सेठस नहीं, आघू बसे हस त शेर होगेस । खोर-गली ल चगलत हवस, अपन होके घला गेर होगेस । अपन दुवारी के खोर-गली कांटा रूंधे कस छेके हस । गाड़ा रवन रहिस हे बाबू, काली के दिन ल देखे हस ।। मनखे होबे कहूं तै ह संगी, हमू ल मनखे मान लेबे । अपन दुवारी के खोर-गली म, हमू ल हरहिंछा जान देबे ।। -रमेश चौहान
छत्तीसगढ़ का गोदना- डुमन लाल ध्रुव
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छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति अत्यंत समृद्ध जीवंत और विविध रूपों से परिपूर्ण है।
यहां की मिट्टी, भाषा, लोकगीत, लोकनृत्य, वेशभूषा और आभूषण सभी में जनजीवन की
सादग...
5 घंटे पहले