कइसे कहँव किसान ला, भुइया के भगवान । लालच के आगी बरय, जेखर छतिया तान ।। जेखर छतिया तान, भरे लालच झांकत हे । खातू माटी डार, रोग हमला बांटत हे ।। खेत म पैरा बार, करे मनमानी जइसे । अपने भर ला देख, करत हे ओमन कइसे ।। घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक । अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।। थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया । बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।। ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा । पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।। नैतिक अउ तकनीक के, कर लौ संगी मेल । मनखे हवय समाज के, खुद ला तैं झन पेल ।। खुद ला तैं झन पेल, अकेल्ला के झन सोचव । रहव चार के बीच, समाजे ला झन नोचव । सुनलव कहय ’रमेश’, देश के येही रैतिक । सब बर तैं हर जीय, कहाथे येही नैतिक ।। -रमेश चौहान
माँ, मिट्टी और मेहनत : रामेश्वर शर्मा की रचनाएँ
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ग़ज़ल जो जनहित में सृजन हो बस वही पुरनूर होता हैसृजक का लेख हो या गीत वह 
मशहूर होता है हक़ीक़त में अगर तुम प्यार करते हो सुनों यारोंजो दिल में प्यार 
बस जाए न फ...
1 दिन पहले
