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संदेश

कतका झन देखे हें-

काटा म जब काटा चुभाबे

काटा म जब काटा चुभाबे, तभे निकलथे काटा पांव । कटे ल अऊ काटे ल परथे, त जल्दी भरते कटे घांव ।। लोहा ह लोहा ला काटथे, तब बनथे लोहा औजार । दुख दुख ला काटही मनखे, ऐखर बर तै रह तइयार ।। जहर काटे बर दे ल परथे, अऊ जहर के थोकिन डोज । गम भुलाय ल पिये ल परथे, गम के पियाला रोज रोज ।। प्रसव पिरा ला जेन ह सहिथे, तीनो लोक ल जाथे जीत । धरती स्वर्ग ले बड़े बनके, बन जाथे महतारी मीत ।। दरद मा दरद नई होय रे, दरद के होथे अपन भाव । दरद सहे म एक मजा होथे, जब दरद म घला होय चाव ।।

काबर करय दुख

मनखे काबर करय दुख, भूला के बिसवास। दुख के भीतर हवय सुख, इही जगत के आस ।। इही जगत के आस, रिकोथे तेन समोथे । हमर कहां अवकात, सबो ओही पुरोथे ।। घट घट जेखर वास, कोन ओला परखे । छोड़ संसो चिंता, करम भर कर मनखे।। ...........‘रमेश‘.................

हे जिबरावत गोरी

काजर आंजत मुंह सजावत देख लजावत दर्पण छोरी । केस सजावत फूल लगावत खुद ल देखत भावत छोरी । आवत जावत रेंगत कूदत नाचत गावत देखत गोरी । काबर मुंह बनावत मुंह लुकावत हे जिबरावत गोरी । ......................रमेश.....................

चार दिन के सगा घरोधिया होगे

चार दिन के सगा घरोधिया होगे । मोर घर के मन ह, परबुधिया होगे ।।1।। का जादू करंजस, अइसन होईस रे अपन समझेव, तेन बहुरूपिया होगे ।।2।। कोनो ल सुहावत नईये मोरो भाखा कइसन मोर लईका मन शहरिया होगे ।।3।। घात फबयत रहिस भाखा के लुगरा का करबे ओही लुगरा फरिया होगे ।।4।। मोर बडका बड़का रहिस महल अटारी, आज कइसन सकला के कुरिया होगे ।।5।। जेन लईका ल पढायेंव तेने कहा अड़हा लाज म मोर मुंह करिया करिया होगे ।।6।। अपन घर ल पहिचान बाबू सपना ले जाग देख निटोर के अब तो बिहनिया हो

मोर मयारू गणेश

मोर मयारू गणेश दोहा सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर । पाँव परत हंँव तोर गा, विनती सुन ले मोर ।। तोर शरण मा आया जे, ले श्रद्धा विश्वास । पूरा कर देथस सबो, उनखर जम्मो आस ।। चौपाई हे गौरा गौरी के लाला । हे प्रभु  तैं हस दीन  दयाला सबले पहिली तोला सुमरन । तोरे गुण ला गा के  झुमरन बुद्धि तहीं हा सब ला देथस। दुख पीरा ला हर लेथस तोरे जस ला वेदे गावय । भारी महिमा तोर बतावय पहिली चक्कर तैं हा काटे ।  अपन ददा दाई के बांटे तोर काम ले गदगद भोला । बना दिइस गा गणेश तोला तोर नाम ले मुहरूत करथन । जीत खुशी ला ओली भरथन काम-बुता सब सुग्घर होथे । हमरे बाधा मुँड़ धर रोथे जइसन लम्बा सूड़े तोरे । लम्बा कर दव चिंतन मोरे जइसन भारी पेटे तोरे । भारी कर दव विचार मोरे भाथे गौरी दुलार  तोला । ओइसने दव दुलार मोला गुरूतुर मोदक भाये तोला । मीठ मीठ भाखा दे दव मोला हे लंबोदर किरपा करदव । गलत सोच ला झट्टे हरदव मनखे ला मनखे हम मानी । जगत जीव ला एके जानी हे आखर के मोर देवता । मानव-मानव मोर नेवता नाश करव प्रभु मोर कुमति के । अन्न-धन्न दौ देव सुमति के अपने पुरखा अउ माटी के । अपने जंगल अउ

छत्तीसगढ़ी दोहा

छत्तीसगढ़ी दोहा    हर भाखा के कुछु न कुछु, सस्ता महंगा दाम ।    अपन दाम अतका रखव, आवय सबके काम ।।    दुखवा के जर मोह हे , माया थांघा जान ।    दुनिया माया मोह के, फांदा कस तै मान।।    ये जिनगी कइसे बनय, ये कहूं बिखर जाय ।    मन आसा विस्वास तो, बिगड़े काम बनाय ।। -रमेश चौहान .

हे गौरी के लाल

बुद्धि के देवइया अऊ पिरा के हरइया हे गज मुख  वाला । सबले पहिली तोला सुमिरव हे षंकर सुत गौरी के लाला ।। वेद पुरान जम्मो तोरे च गुन ल गाय हे, सबले पहिली श्रीगणेष कहव बताय हे । सभो देवता ले पहिली सुमिरन तोरे कहाये हे, हे परभू मोरो अंतस ह तोरे च गुन ल गाये हे । शुरू करत हव तोर नाम ले, ये कारज गृह जंजाला, हे गजानन दया करहू झन होवय कुछु गड़बड़ झाला । हे गौरी के लाला......... जइसे लंबा लंबा सूड़ तोरे, लंबा कर दव सोच ल मोरे । जइसन भारी पेट तोरे, गहरा बना दव विचार ल मोरे । अपन माटी अऊ अपन पुरखा के सेवा गावंव ले सुर लय ताल । हे एकदन्त एक्केच किरपा करहू बुद्धि ले झन रहव मै कंगाल ।। हे गौरी के लाल..... जइसे भाते उमा महेश के मया ह तोला, ओइसने अपन मया दे दव मोला । मिठ मिठ लाडू जइसे भाते तोला, ओइसने गुतुर गुतुर भाखा दे दव मोला । कुमति के नाश कर सुमति ले भर दौव मोरो भाल । हे आखर के देवता मोरो गीत ल लौव सम्हाल ।। हे गौरी के लाल............ दाई ल धरती ददा ल अकास कहिके कहाय गणेश, तोर ये बुद्धि ल जम्मो देवता ले बड़का कहे हे महेश । तोरे च शरण आये नारद अऊ सब देवता संग सुरेश

खुशी मनाओ भई आज खुशी मनाओं

भादो के महीना घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे रात कारी कारी । कंस के कारागार बड़ रहिन पहेरेदार, चारो कोती चमुन्दा हे खुल्ला नईये एकोद्वार । देवकी वासुदेव पुकारे हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये करलव सनाथ । एक एक करके छैय लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे कइसे अपभ्रंस । आठवईंया के हे बारी कइसे करव तइयारी, ऐखरे बर होय हे आकाशवाणी हे खरारी । मन खिलखिवत हे फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल बड़ जोर के निदं आगे । देखत हे देवकी वासुदेव त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटक भर म होइस परमपिता के ऊंहला भान, नाना भांति ले करे लगिन ऊंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइवा अव जम्मो जीव के देखइया अव, धरती के भार हरइया अऊ जीवन नइया के खेवइया अव । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान, बालक रूप म प्रगटे आज तो भगवान । प्रगटे आज

धरे कलम गुनत हंव का लिखंव

धरे कलम गुनत हंव का लिखंव लइकामन बर संस्कार के गीत लिखंव, कचरा बिनईया लइकामन के चित्र खिचंव । कोनो कोनो लइका विडि़यो गेम खेलय, कोनो कोनो लइका ठेला पेलय । कोनो कोनो कतका महंगा स्कूल म पढ़य, कोनो कोनो बचपन म जवानी ल गढ़य । कोखरो कोखरो के संस्कार ल, ददा दाई मन दे हे बिगाड़। कोखरो कोखरो ददा दाई मन, भीड़ा दे हे जिये के जुगाड़ । बड़ आंगाभारू लइकामन के संसार ऐमा मै नई सकंव, धरे कलम गुनत हंव अब का लिखंव । धरे कलम गुनत हंव का लिखंव लिखथे सब मया मिरीत के बोल, रखदंव महू अपन हिरदय ल खोल । करेन बिहाव तब ले मया करे ल जानेन, ददा दाई कहिदेइस तेने ल अपन मानेन । अब तो बर न बिहाव देखावत हे दिल के ताव, बाबू मन रंग रूप ल त नोनी मन धन दोगानी ल देवत हे कइसन के भाव । जेन भाग के करे बिवाह तेखर मन के दशा ल विचार, न ददा के न दाई के घिरर घिरर के जिये बर लाचार । बड़ आंगाभारू हे मया पिरित के संसार ऐमा मै नई सकंव, धरे कलम गुनत हंव अब का लिखंव । धरे कलम गुनत हंव का लिखंव कतको झन लिखत हे नेतागिरी म व्यंग, महू लिखतेव सोच के रहिगेव दंग । ऐ नेतामन कोन ऐ करिया अक्षर भईंस बरोबर, जम्मो झन

हरेली हे आज

हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई - लइका सियान जुरमिल के खुशी मनाव हरेली हे आज । अब आही राखी तिजा पोरा अऊ जम्मो तिहार हो गे अगाज । चलव संगी धो आईय नागर कुदरा अऊ जम्मो औजार । बोवईय झर गे निदईय झर गे झर गे बिआसी के काज । हमर खेती बर देवता सरीखे नागर गैती हसिया, इखर पूजा पाठ करके चढ़ाबो चिला रोटी के ताज । लिम के डारा ले पहटिया करत हे घर के सिंगार । लोहार बाबू खिला ले बनावत हे मुहाटी के साज ।। ढाकत हे मुड़ी ल मछरी जाली ले गांव के मल्लार । ये छत्तीसगढ़ म हर तिहार के हे छत्तीस अंदाज ।। बारी बखरी दिखय हरियर, हरियर दिखय खेत खार । चारो कोती हरियर देख के हमरो मन हरियर हे आज ।। तरूवा के पानी गोड़इचा म आगे आज । माटी के सोंधी सोंधी महक के इही हे राज । गांव के अली गली म ईखला चिखला । चलव सजाबो गेडी के सुघ्घर साज ।। जम्मो लइका जवान मचलहीं अब तो , बजा बजा के गेड़ी के चर चर आवाज ।। चलो संगी खेली गेड़ी दउड अऊ खेली नरियर फेक, जुर मिल के खेली मन रख के हरियर हरियर आज । ................‘‘रमेश‘‘...........

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