सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

लगही-लगही तब तो, गाँव हमर बढ़िया

//उड़ियाना-पद// लगही-लगही तब तो, गाँव हमर बढ़िया कान धरव ध्यान धरव, गोठ-बात मने भरव रखव-रखव साफ रखव, गाँव-गाँव तरिया ।। पानी के स्रोत रखव, माटी ला पोठ रखव जइसे के रखे रहिस, नंदलाल करिया ।। गाँव-गली चातर कर, लोभ-मोह ला झन धर बेजा कब्जा छोड़व, गाँव खार परिया ।। माथा ‘रमेश‘ हा धर, कहय दया अब तो कर गाय गरूवा बर दौ, थोड़-बहुत चरिया ।।

तीन छंद-कुण्डल-कुण्डलनि-कुण्डलियां

//कुण्डल// काम-बुता करव अपन, जांगर ला टोरे । देह-पान रखव बने, हाथ-गोड़ ला मोड़े ।। प्रकृति संग जुड़े रहव, प्रकृति पुरूष होके । बुता करब प्रकृति हमर, बइठव मत सोके ।। //कुण्डलनि // जांगर अपने टोर के, काम-बुता ला साज । देह-पान सुग्हर रहय, येही येखर राज ।। येही येखर राज, खेत मा फांदव नांगर । अन्न-धन्न अउ मान, बांटथे हमरे जांगर ।। //कुण्डलियां// अइठे-अइठे रहव मत, अपन पसीना ढार । लाख बिमारी के हवय, एकेठन उपचार ।। एकेठन उपचार, बनाही हमला मनखे । सुग्घर होही देह, काम करबो जब तनके ।। साहब बाबू होय, रहव मत बइठे-बइठे । अपने जांगर पेर, रहव मत अइठे-अइठे ।।

पानी जीवन आधार, जिंनगी पानी

पानी जीवन आधार, जिंनगी पानी । पानी हमरे बर आय, करेजा चानी ।। पानी बिन जग बेकार, जीव ना बाचे । जानत हे सब आदमी, बात हे साचे ।। बचा-बचा पानी कहत, चिहुर चिल्लाये । वाह वाहरे आदमी, कुछ ना  बचाये ।। काबर करथे आदमी, रोज नादानी । शहर-ष्श्हर अउ हर गाँव, एके कहानी ।। स्रोत बचाये ले इहां, बाचही पानी । कान खोल के गठियाव, गोठे सियानी ।। नदिया नरवा के रहे, बाचही पानी । तरिया खनवावव फेर, कर लौ सियानी ।। बोर भरोसा अब काम, चलय ना एको । भुइया सुख्खा हे आज, निटोरत देखो ।। बोर खने धुर्रा उड़य, मिलय ना पानी । हाल हवे बड़ बेहाल   कर लौ सियानी ।। -रमेश चौहान

दुई ढंग ले, होथे जग मा, काम-बुता

दुई ढंग ले, होथे जग मा, काम-बुता । हाथ-गोड़ ले, अउ माथा ले, मिले कुता ।। माथा चलथे, बइठे-बइठे, जेभ भरे । हाथ-गोड़ हा, देह-पान ला, स्वस्थ करे ।। दूनों मिल के, मनखे ला तो, पोठ करे । काया बनही, माया मिलही, गोड़ धरे । बइठइया मन, जांगर पेरव, एक घड़ी । जांगर वाले, धरव बुद्वि ला, जोड़ कड़ी ।।

सम्राट पृथ्‍वीराज चौहान (आल्‍हा धुन म गौरव गाथा)

सबले पहिली माथ नवावय, हाथ जोर के तोर गणेश । अपन वंश के गौरव गाथा, फेर सुनावत हवय ‘रमेश‘ ।। अपन देश अउ अपन धरम बर, जीना मरना जेखर काम । जब तक सूरज चंदा रहिथे, रहिथे अमर ओखरे नाम ।। पराक्रमी योद्धा बलिदानी, भारत के आखरी सम्राट । पृथ्वीराज अमर हावे जग, ऊँचा राखे अपन ललाट ।। जय हिन्दूपति जय दिल्लीपति, जय हो जय हो पृथ्वीराज । अद्भूत योद्धा तैं भारत के, तोरे ऊँपर सबला नाज ।। स्वाभिमान बर जीना मरना, जाने जेने एके काम । क्षत्रीय वर्ण चौहान कहाये, अग्नी वंशी जेखर नाम ।। आगी जइसे जेठ तिपे जब, अउ रहिस अंधियारी पाख । रहिस द्वादशी के तिथि जब, जनमे बालक पृथ्वीराज ।। कर्पूर देवी दाई जेखर, ददा रहिस सोमेश्वर राय । रहिस घात सुग्घर ओ लइका, सबके मन ला लेवय भाय ।। लइकापन मा शेर हराये, धरे बिना एको हथियार । बघवा जइसे तोरे ताकत, जाने तभे सकल संसार ।। रहे बछर ग्यारा के जब तैं, हाथ ददा के सिर ले जाय । अजमेर राज के ओ गद्दी, नान्हेपन ले तैं सिरजाय ।। अंगपाल दिल्ली के राजा, रिश्ता मा तो नाना तोर । ओखर पाछू दिल्ली गद्दी, अपन हाथ धर करे सजोर ।। एक संघरा दू-दू गद्दी, गढ़ दिल्ली अउ गढ़

हम बनबो, मनखे

भानु छंद हम बनबो, मनखे होके मनखे आज । हम जानब, कइसन हावय येखर राज । कहिथे गा, सबो देव-धामी येखर दास । सब तरसय, मनखे तन पाये बर खास ।।

सिन्धु छंद

नवा रद्दा चलव संगी हमन गढ़बो । डगर रेंगत सबो ढिलवा हमन चढ़बो ।। परता हवय जउन खेती हमन करबो । जउन कोठी हवय खाली हमन भरबो ।।

सही उमर मा बिहाव कर ले

भूख लगे मा खाना चाही, प्यास लगे  मा तो पानी । सही उमर मा बिहाव करले, जागे जब तोर जवानी ।। सही समय मा खातू-माटी, धान-पान ला तो चाही । खेत जरे मा बरसे पानी,  कइसे के सुकाल लाही । अपन गोड़ मा खड़ा होत ले,  आधा उमर पहागे गा। तोर जवानी ये चक्कर मा,  अपने अपन सिरागे गा ।। नवा जमाना के फेशन मा, लइका अपने ला माने । धरे जवानी सपना देखे, तभो उमर ला तैं ताने ।। दू पइसा हे तोर कमाई,  अउ-अउ के लालच जागे । येही चक्कर मा तो संगी,  तोर जवानी हा भागे ।। कुँवर-बोड़का बइठे-बइठे, कोन कहाये  सन्यासी । भीष्म प्रतिज्ञा कर राखे का, देखाथे जेन उदासी ।। -रमेश चौहान

कतका दुकला हे परे

अमृतध्वनि-कुण्डलियां कतका दुकला हे परे, दुल्हा मन के आज । पढ़े लिखे बाबू खिरत, आवत मोला लाज ।। आवत मोला, लाज बहुत हे, आज बतावत । दस नोनी मा, एके बाबू, पढ़ इतरावत ।। बाबू मन हा, पढ़े नई हे, नोनी अतका । बाबू मन ला, काम-बुता के, चिंता कतका ।। चिंता कतका आज हे, देखव सोच बिचार । टूरा पढ़ई छोड़थे, बारहवी के पार । बारहवी के पार, पढ़य ना टूरा जादा । पढ़े-लिखे बेगार, आज आधा ले जादा । मन मा अइसे सोच, पढ़य ना बाबू अतका । करथे कुछु भी काम, धरे हे चिंता कतका ।।

आज सुधरबो, भूल-चूक सब छोड़ के

देखा-देखी, अनदेखी सब जानथे । जी ले जांगर, बरपेली सब तानथे ।। होके मनखे, चलत हवे जस भेड़िया । मे-मे दिनभर, नरियाथे जस छेरिया । अंग्रेजी के, बोली-बतरस बोलथें । छत्तीसगढ़ी, हिन्दी ला बड़ ठोलथें ।। इज्जत अपने, अपन हाथ धर खोत हें । का अब कहिबे, काँटा ला खुद बोत हें ।। गाँव देश के, गलती केवल देखथें । बैरी बानिक, आँखी निटोर सेकथें ।। दूसर सुधरय, इच्छा सबझन राखथें । गोठ अपन के, अधरे अधर म फाँकथें ।। चाट-चाट के, खावय दूसर के जुठा । झूठ-मूठ के, शान-शौकत धरे मुठा ।। जागव-जागव, देखव-देखव गाँव ला । स्वाभिमान के, अपने सुग्घर छाँव ला ।। आज सुधरबो, भूल-चूक सब छोड़ के । बंधे खूँटा, सकरी-साकर तोड़ के । देश गाँव के, रहन-सहन सब पोठ हे । गाँठ बाँधबो, येही सिरतुन गोठ हे ं।।

मोर दूसर ब्लॉग