देखा-देखी, अनदेखी सब जानथे ।
जी ले जांगर, बरपेली सब तानथे ।।
होके मनखे, चलत हवे जस भेड़िया ।
मे-मे दिनभर, नरियाथे जस छेरिया ।
अंग्रेजी के, बोली-बतरस बोलथें ।
छत्तीसगढ़ी, हिन्दी ला बड़ ठोलथें ।।
इज्जत अपने, अपन हाथ धर खोत हें ।
का अब कहिबे, काँटा ला खुद बोत हें ।।
गाँव देश के, गलती केवल देखथें ।
बैरी बानिक, आँखी निटोर सेकथें ।।
दूसर सुधरय, इच्छा सबझन राखथें ।
गोठ अपन के, अधरे अधर म फाँकथें ।।
चाट-चाट के, खावय दूसर के जुठा ।
झूठ-मूठ के, शान-शौकत धरे मुठा ।।
जागव-जागव, देखव-देखव गाँव ला ।
स्वाभिमान के, अपने सुग्घर छाँव ला ।।
आज सुधरबो, भूल-चूक सब छोड़ के ।
बंधे खूँटा, सकरी-साकर तोड़ के ।
देश गाँव के, रहन-सहन सब पोठ हे ।
गाँठ बाँधबो, येही सिरतुन गोठ हे ं।।
जी ले जांगर, बरपेली सब तानथे ।।
होके मनखे, चलत हवे जस भेड़िया ।
मे-मे दिनभर, नरियाथे जस छेरिया ।
अंग्रेजी के, बोली-बतरस बोलथें ।
छत्तीसगढ़ी, हिन्दी ला बड़ ठोलथें ।।
इज्जत अपने, अपन हाथ धर खोत हें ।
का अब कहिबे, काँटा ला खुद बोत हें ।।
गाँव देश के, गलती केवल देखथें ।
बैरी बानिक, आँखी निटोर सेकथें ।।
दूसर सुधरय, इच्छा सबझन राखथें ।
गोठ अपन के, अधरे अधर म फाँकथें ।।
चाट-चाट के, खावय दूसर के जुठा ।
झूठ-मूठ के, शान-शौकत धरे मुठा ।।
जागव-जागव, देखव-देखव गाँव ला ।
स्वाभिमान के, अपने सुग्घर छाँव ला ।।
आज सुधरबो, भूल-चूक सब छोड़ के ।
बंधे खूँटा, सकरी-साकर तोड़ के ।
देश गाँव के, रहन-सहन सब पोठ हे ।
गाँठ बाँधबो, येही सिरतुन गोठ हे ं।।
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