सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

गणित बनाये के नियम

गणित बनाये के नियम, धर लौ थोकिन ध्यान । जोड़ घटाना सीख के, गुणा भाग ला जान ।। गुणा भाग ला जान, गणित के प्राण बरोबर । एक संग जब देख, चिन्ह ला सबो सरोबर ।। कोष्टक पहिली खोल, फेर "का" जेन तनाये । भाग गुणा तब जोड़, घटा के गणित बनाये ।। -रमेश चौहान

सास बहू के झगरा

आँखी तोरे फूट गे, दिखत नई हे काम । गोबर-कचरा छोड़ के, करत हवस आराम ।। करत हवस आ-राम दोखई, बइठे-बइठे । सुनत सास के, गारी-गल्ला, बहू ह अइठे ।। नई करँव जा, का करबे कर, मरजी मोरे । बइठे रहिहँव, चाहे फूटय, आँखी तोरे ।।

छोड़ दारु के फेशन

छोड़ दारु के फेशन, हे बड़ नुकसान । फेशन के चक्कर मा, हस तैं अनजान ।। नशा नाश के जड़ हे, तन मन ला खाय । कोन नई जानय ये, हे सब भरमाय ।। दारु नशा ले जादा, फेशन हे आज । पढ़े-लिखे अनपढ़ बन, करथे ये काज।। कोन धनी अउ निर्धन, सब एके हाल । मनखे-मनखे चलथे, दरुहा के चाल ।। नीत-रीत देखे मा, दोषी सरकार । चाल-चलन मनखे के, रखय न दरकार ।। -रमेश चौहान

देवनागरी मा लिखव

जनम भूमि अउ जननी, सरग जइसे । जननी भाखा-बोली, नरक कइसे ।। छत्तीसगढ़ी हिन्दी, लाज मरथे । जब अंग्रेजी भाखा, मुड़ी चढ़थे ।। देवनागरी लिपि के, मान कर लौ । तज के रोमन झांसा, मया भर लौ ।। कबतक सहत गुलामी, हमन रहिबो । कबतक दूसर भाखा, हमन कहिबो ।। देवनागरी मा लिख, हिम्मत करे । कठिन कहत रे येला, दिल नइ जरे ।। दुनिया देवय झासा, कठिन कहिके । तहूँ मगन हस येमा, मुड़ी सहिके ।। -रमेश चौहान

छत्तीसगढ़ी बरवै

छत्तीसगढ़ी बरवै छत्तीसगढ़ी अड़बड़, गुरतुर बोल । बोलव संगी जुरमिल, अंतस खोल ।। कहाँ आन ले कमतर, हवय मितान ।। अपने बोली-बतरस, हम गठियान ।। छोड़ चोचला अब तो, बन हुशियार । अपन गोठ हा अपने, हे कुशियार ।। पर के हा पर के हे, अपन न मान । अपने भाखा पढ़-लिख, हम गुठियान ।। अंग्रेजी मा फस के, हवस गुलाम । अपने भाखा बोलत, करलव काम ।।

बासी खाके दाई, काम-बुता मा जाहूँ

दे ना दाई मोला, दे ना दाई मोला, एक सइकमा बासी, अउ अथान चटनी । संग गोंदली दे दे, दे दे लाले मिरचा, रांधे हस का दाई, खेड़हा -खोटनी ।। बासी खाके दाई, काम-बुता मा जाहूँ, जांगर टोर कमाके, दू पइसा लाहूँ । दू-दू पइसा सकेल, सिरतुन मा ओ दाई, ये छितका कुरिया ला, मैं महल बनाहूँ ।। -रमेश चौहान

चल खेल हम खेलबो

चल चली खोर मा, बिहनिया भोर मा, गाँव के छोर मा, खेल हम खेलबो । मुबाइल छोड़ के, मन ला मरोड़ के, सबो ला जोड़ के, संग मा ढेलबो ।। चार झन संग मा, पचरंग रंग मा, खेल के ढंग मा, डंडा ल पेलबो । छू छू-छुवाल के, ओखरे चाल के, मन अपन पाल के, दाँव ला झेलबो ।। -रमेश चौहान

अपन बोली मा बोलव

//अपन बोली मा बोलव// (शुभग दंडक छंद)  मन अपन तैं खोल, कुछु फेर बोल, कुछु रहय झन पोल, निक लगय गा गोठ । खुद अपन ला भाख, खुद लाज ला राख, सब डहर ला ताक, सब करय गा पोठ । गढ अपन के बात, जस अपन बर भात, भर पेट सब खात, कर तुहूँ गा रोठ । गढ़ हमर छत्तीस, तब बोल मत बीस, मन डार मत टीस, अब बनव गा मोठ ।। -रमेश चौहान

प्रभु तोर सिखावन, हम सब अपनावन

//उद्धत दंडक// जय राम रमा पति, कर विमल हमर मति, प्रभु बन जावय गति, जगत कर्म प्रधान । सतकर्म करी हम, जब तलक रहय दम, अइसन दौ दम-खम, जगत पति भगवान ।। जग के तैं पालक, भगतन उद्धारक, कण-कण के कारक, धरम-करम सुजान । प्रभु तोर सिखावन, हम सब अपनावन, मन ला कर पावन, अपन चरित बनान ।। -रमेश चौहान

दारुभठ्ठी बंद हो

दाई बहिनी गाँव के, पारत हे  गोहार । दारू भठ्ठी बंद हो, बचै हमर परिवार ।। बचै हमर परिवार, मंद मा मत बोहावय । लइका हमर जवान, इही मा झन बेचावय ।। जेखर सेती वोट, हमन दे हन गा भाई  । वादा अपन निभाव, कहत हे बहिनी दाई ।। -रमेश चौहान

मोर दूसर ब्लॉग