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संदेश

कतका झन देखे हें-

ददरिया- ये फूल कैयना

 ददरिया- ये फूल कैयना हे गोडे मा चप्पल, अउ चप्पल मा हिल तैं मटकत रेंगत हस जावत हे मोर दिल, ये फूल कैयना हे हाथे मा मोबइल, बाजत हे घंटी हे हाथे मा मोबइल, बाजत हे घंटी स्कूटी मा उड़ावत हस, उड़ावत हे बंडी, ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... खुल्ला चुँदी.....बादर करयिा ....हाँ खुल्ला चुँदी बादर करयिा हाँ बादर करिया खुल्ला चुँंदी बादर करयिा हाँ बादर करिया आँखी मा समाये, मया के तरिया, ओ फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... नवा स्टेटस.... आजेच डारेस... हाँ नवा स्टेटस आजेच डारेस हाँ आजेच डारेस नवा स्टेटस आजेच डारेस हाँ आजेच  डारेस अइसे हे फोटु, कनेखी आँखी च मारे ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... मोरे ये नंबर..... सेवे कर ले...... हाँ मोरे ये नंबर सेवे कर ले हाँ सेवे कर ले मोरे ये नंबर सेवे कर ले हाँ सेवे कर ले रमेशे हे नाम, काने धर ले, ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मो

बसदेवा गीत- देखव कतका जनता रोठ

 बसदेवा गीत-देखव कतका जनता रोठ  (चौपई छंद) फोटो Youtube.com से सौजन्‍य सुनव सुनव गा संगी मोर ।  जेला देखव तेने चोर नेता अउ जनता के गोठ । काला कहि हे दूनों पोठ नेता रहिथे केवल चार । जनता होथे लाख हजार खेत बेच के लड़े चुनाव ।  पइसा बांटे गॉंवों गॉंव ओखर पइसा झोकय कोन । जनता बइठे काबर मोन दारू बोकरा कोने खाय । काला फोकेट ह बड़ भाय देवइया भर कइसे चोर । झोकइया के मंसा टोर देही तेन ह लेही काल । झोकइया के जीजंजाल नेता जनता के हे जाय । ओखर गोठ कोन सिरजाय जब जनता म आही सुधार । मिटजाही सब भ्रष्‍टाचार नेता के छोड़व अब गोठ । देखव कतका जनता रोठ जनतामन के करथन बात । ऊँखर मन मा का  जज्‍बात बीता-बीता ठउर सकेल । गली-खोर मा घर ला मेल खेत तीर के परिया जोत । नदिया-नरवा सब ल रपोट फोकट के पाये बर जेन । झूठ लबारी मारय तेन सरकारी चाउर झोकाय । दू के सोलह ओ ह बनाय नाम गरीबी रेखा देख । बड़हर मन के नाम सरेख सबले ऊँपर ओखर नाम । होथे पहिली ऊँखर काम आघू रहिथे बड़हर चार । पाछू बइठे हे हकदार मरगे नैतिकता के बात । जइसे होगे दिन मा रात काखर-काखर गोठ बतॉंव । काखर-काखर गारी खॉव दिखय न ओला अपने काम । लेथे ओ हर दूसर के नाम

चुन्दी : हेयर स्‍टाइल पर कविता

 चुन्दी (कुण्‍डलियां) चुन्दी बगरे हे मुड़ी, जस कोनो फड़बाज। लम्बा-लम्बा ठाढ़ हे, जइसे के लठबाज ।। जइसे के लठबाज, तने हे ठाढ़े-ठाढ़े । कंघी के का काम, सरत हे माढ़े-माढ़े ।। मुसवा दे हे चान, खालहे ला जस बुन्दी । आज काल के बात, मुड़ी मा बगरे चुन्दी ।। -रमेश चौहान

बिन काम-बुता हम तो मरबो

 बिन काम-बुता हम तो मरबो  (दुर्मिल सवैया) चल रे चल गा चल ना चल जी, कुछु काम-बुता हम तो करबो । पढ़ आखर चार भला दुनिया, हम काम बिना कइसे तरबो । बइठे-बइठे मिलही कुछु का ? पइसा बिन इज्जत का भरबो । पढ़ई-लिखई सब फोकट हे, बिन काम-बुता हम तो मरबो ।। पढ़ई-लिखई जरूरी जग मा, पर हे बिरथा सब काम बिना । पढ़ के हम आखिर का करबो बिन काम-बुता अउ दाम बिना ।। कुछु काम न आवय रे हमला अइसे पढ़ई  तन जान बिना । अँखिया अब खोल निटोर बने, धन हे जब आखर ज्ञान बिना ।। -रमेश चौहान

कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे (छप्‍पय छंद)

 कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे (छप्‍पय छंद) ये कोरोना रोग, लॉकडाउन ला लाये । रोजी-रोटी काम, हाथ ले हमर नगाये ।। रोग बड़े के दोख, सबो कोती ले मरना । जीना हे जब पोठ, रोग ले अब का डरना ।। कोरोना के ये कहर, काम-बुता ला तो छिने । बिना रोग के रोग मा, मरत ला कोन हा गिने ।। गिनत हवय सरकार, दिखय जेने हा आँखी । गिनय कोन गा आज, झरे कतका के पाँखी ।। कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे । खाली होगे हाथ, गीत काखर तैं गाबे ।। बिन पइसा के जिंनगी, मछरी तरिया पार के । जीना-मरना एक हे, पइसा बिन परिवार के । देवय कोने काम, काम चाही जी हम ला । काम नहींं ना दाम, कोन देखावय दम ला । अटके आधा सॉस, लॉकडान के मारे गा । डोंगा हे मझधार, कोन हम ला अब तारे गा ।। कोरोना के फेर मा, हमर लुटा गे नौकरी । काम चलाये बर हमर, बेचागे सब बोकरी ।।

जेखर बल परताप, टिके हे धरती तरिया

 कुण्‍डलियां तरिया भीतर तउरथे, जिंदा मछरी लाख । चार मरे मछरी लखत, डोलय काबर साख ।। डोलय काबर साख, देख बिगड़े ओ चारे । बिगड़े रद्दा रेंग, जेन रहिथे सब ला मारे । मनखे कई हजार, नई हे मन के करिया । जेखर बल परताप, टिके हे धरती तरिया ।। -रमेश चौहान

नीति के दोहा

 नीति के दोहा धरम करम के सार हे, जिये मरे के नेंग । जीयत भर करले करम, नेकी रद्दा रेंग ।। करम तोर पहिचान हे, करम तोर अभिमान । जइसे करबे तैं करम, तइसे पाबे मान ।। करे बुराई आन के, अपनो अवगुण देख । धर्म जाति के आदमी, गलती अपने सरेख ।। पथरा लकड़ी चेंदरा, अउ पोथी गुरू नाम । आस्था के सब बिम्ब हे, माने से हे काम ।। आस्था टोरे आन के, डफली अपन बजाय । तोरो तो कुछु हे कमी, ओला कोन बताय ।। मनखे ला माने कहाँ, मनखे मनखे एक । ऊँच-नीच घिनहा बने, सोच धरे हस टेक ।। बदला ले के भाव ले, ओखी जाथे बाढ़ । भुले-बिसरे भूल के, ओखी झन तैं काढ़  ।। -रमेश चौहान

दू-चारठन मुक्‍तक -नवा जनरेशन

दू-चारठन मुक्‍तक -नवा जनरेशन 1. लइका कुछ बात मानय नहीं (बहर-212 212 212) लइका कुछ बात मानय नहीं काम कुछु वो ह जानय नहीं मैं ददा का करॅंव सोच के कुछु करे बर कभू ठानय नहीं 2.तोर पूछी टेड़गा हे, मोर हा तो सोझ हे (बहर-2122 2122 21222 212) तोर पूछी टेड़गा हे, मोर हा तो सोझ हे गोठ गुरतुर मोर हे, तोर हा नुनझुर डोझ हे ये उखेनी आय तोरे, बात ला अब समझ सोच येही हा हमर बर, आज भारी बोझ हे 3.. संस्कृति हा नवा जनरेशन म मरगे टूरा मन नशा के टेशन म मरगे टूरी मन नवा के फेशन म मरगे काला का कही रे अपने ह बैरी संस्कृति हा नवा जनरेशन म मरगे

छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस

छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस  माटी के संस्कार मा,सबला होवय नाज ।। हमर राज छत्तीसगढ़,  दिवस स्थापना आज । दिवस स्थापना आज,  बधाई गाड़ा-गाड़ा । बने रहय संस्कार, जेखरे ये हा माड़ा ।। अपने बोली बोल, धरव अपने परिपाटी । तोरे ये संस्कार, तोर आवय ये माटी ।। -रमेश चौहान

गजल- "काम चाही काम चाही काम चाही आदमी ला"

 गजल बहर 2122 2122 2122 2122 काम चाही काम चाही काम चाही आदमी ला काम करके हाथ मा तो दाम आही आदमी ला काम ले तो आदमी के मान अउ सम्मान हे जेब खाली होय संगी कोन भाही आदमी ला कोढ़िया ला कोन भाथे कोन खाथे रोज गारी दाम मिलही जब नता मा तब सुहाही आदमी ला लोभ नो हय मोह नो हय काम जरूरी हे जिये बर  साँस बर जइसे हवा हे ये जियाही आदमी ला छोड़ फोकट के धरे के लोभ अपने काम मांगव लोभ फोकट के धरे मा लोभ खाही आदमी ला काम दे दौं काम दे दौं भीख झन दौं थोरको गा ये बुता हर पोठहर मनखे बनाही आदमी ला सिख हुनर तैं काम के गा तब न पाबे काम तैं हा लाख पोथी ले बने ये काम लाही आदमी ला -रमेश चौहान

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